आर.डी.गार्डी मेडिकल कॉलेज के मामले में अभी तक प्रशासन ऊँट पर बैठकर बकरी चराने जैसा रवैया अख्तियार किए हुए था। जनप्रतिनिधि भी जंगल मे बन्दर राजा की तरह प्रयास कर रहे थे। पीड़ित चिल्ला रहे थे और मीडिया लगातार खामियां उजागर कर रहा था। कुछ अधिकारी झूठे बयान दे रहे थे। यानी सब कुछ गड़बड़झाला जैसा था।
जब लगा कि उज्जैन में कोई सुनेगा नही तो मुख्यसचिव इक़बाल सिंह बैस, अतिरिक्त मुख्यसचिव स्वास्थ्य मोहम्मद सुलेमान और भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग के प्रवक्ता लव अग्रवाल को तथ्यात्मक जानकारी दी गई।
राजनीतिक स्तर पर स्वास्थ्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा को सच्चाई से अवगत कराया गया उन्होंने तत्काल एक्शन भी लिया।
दुःखद बात यह रही कि उज्जैन के जनप्रतिनिधियों जिनमे केंद्रीय मंत्री तक शामिल है उनकी भूमिका संतोषजनक नही रही।
केवल सांसद अनिल फिरोजिया लगातार यह मुद्दा उच्च स्तर पर उठाते रहे। अब जब भारी दबाब मे कलेक्टर शशांक मिश्रा ने आर.डी.गार्डी प्रबंधन को सख्त नोटिस जारी किया तो सभी इसका श्रेय लेने लगे।
जब सोशल मीडिया पर इस कॉलेज के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. वी.के.महाडिक की कई लापरवाहियों को उठाया गया तो मीडिया को और पत्रकारों को निशाना बनाया गया।
यह बात सही है कि कोरोना संकट में भारत सरकार के द्वारा जारी तय मानकों के अनुरूप रेड हॉस्पिटल या तो सिविल हॉस्पिटल हो सकता था या गार्डी मेडिकल कॉलेज।
प्रशासन ने गार्डी कॉलेज चुना। सरकार ने अनुमति दी लेकिन आदतन गार्डी कॉलेज के प्रबंधन का रवैया मनमाना ही रहा। कॉलेज प्रबंधन ने कोरोना पीड़ितों के इलाज के लिए तय प्रोटोकॉल का लगातार उल्लंघन किया। प्रशासन भी कॉलेज प्रबंधन के उच्च संपर्कों के कारण लाचार बना रहा।
कॉलेज के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. वी.के.महाडिक पर अपने कोरोना संदिग्ध भाई को लोक डाउन के दौरान इंदौर से उज्जैन लाने के आरोप लगे,उनके कोरोना संदिग्ध होने की बात छिपाई गई,बाद में जब बात बड़ी तो डॉ. महाडिक को उनके घर पर सपरिवार कोरेन्टीन किया गया।
इस जानकारी को भी प्रशासन से छिपाया। अतरिक्त कलेक्टर क्षितिज सिंघल में तो बयान ही दे दिया कि किसी को भी कोरेन्टीन नही किया गया है।
यहाँ भी प्रशासन मीडिया को नकारता रहा।
डॉ. महाडिक के कोरोना पीड़ित भतीजे को घर से बाहर निकालकर ग्रीन हॉस्पिटल चेरिटेबल ले जाकर एक्सरे कराया गया,मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने अनुमति दी। जब बात बड़ी तो सब पल्ला झाड़ने लगे जबकि यह महामारी एक्ट का खुला उलंघन था।
दबाब बढ़ने पर कलेक्टर ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी को नोटिस दिया पर उसे सार्वजनिक नही किया गया। उल्टे मीडिया ने जब पूछा तो उसे नकार दिया गया।
कुल मिलाकर कोरोना संक्रमण बढ़ाने के सारे कृत्य करने के बाद भी कॉलेज प्रबंधन और डॉ. महाडिक निरापद बने रहे। पता नही क्यो प्रशासन मूकदर्शक बना रहा,पंगु साबित हुआ।
नोटिस जारी होने के बाद इस पूरे घटनाक्रम में कुछ सवाल के जबाब नही मिले है।
किस कारण प्रशासन कॉलेज प्रबंधन की लापरवाही की अनदेखी करता रहा?कोरोना प्रोटोकॉल का पालन नही करने की जानकारी आने के बाद भी किस कारण कार्यवाई नही हुई?
डॉ. महाडिक पर स्वयं वरिष्ठ डॉक्टर होने के बाद भी जो पेशेगत गलतियां की गई उन पर कौन कार्यवाई करेगा?
किसके कहने पर प्रशासन लचर बना रहा उसने सही फीडबैक भी उच्च स्तर पर नही दिया?
प्रशासन को इस पूरे प्रकरण में अपनी और से वस्तुस्थिति सार्वजनिक करनी चाहिए। छन छन कर तो बहुत सी जानकारी पब्लिक डोमेन में आ चुकी हैं।
कोरोना संक्रमण बढ़ाने में कॉलेज प्रबंधन की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। अपने मेडिकल स्टाफ को जान खतरे में डालने के लिए भी कार्यवाई होनी चाहिए।
बहरहाल अभी तो केवल नोटिस जारी हुआ है देखना है कितना सुधार होता है और कितनी कार्यवाई होती है।
प्रकाश त्रिवेदी