सार
विस्तार
यह आदेश इसलिए विशेष है, क्योंकि संरक्षक और प्रतिपाल्य अधिनियम-1890 के प्रहवधानों के तहत ये मान्यता थी कि घर से निकाली हुई पत्नी किसी अन्य शहर (मायके) में हो और उसके बच्चे यदि पति के पास हों तो उसे अपने नाबालिक बच्चों को प्राप्त करने के लिए पति के शहर में मुकदमा दायर करना पड़ेगा। कुटुंब न्यायालय में भी यही मान्यता थी। जिसे एक ताजा आदेश में बदल दिया गया। अधिवक्ता पंकज दुबे ने उक्त जानकारी दी।
कुटुंब न्यायालय ने सुना तर्क
उन्होंने बताया कि जबलपुर निवासी स्वाति परते के प्रकरण में अदालत ने पूर्व में उसके आवेदन को यह कहकर निरस्त कर दिया था कि पति नागपुर में है, अत: वह अपनी दोनों नाबालिग बेटियों की अभिरक्षा के लिए नागपुर जाकर वहां मुकदमा दायर करें। जिसके बाद स्वाति ने नए सिरे से विशेष आवेदन प्रस्तुत किया। जिस पर बहस के दौरान दलील दी गई कि स्वाति परते के बच्चों को जबलपुर का सामान्य रहवासी माना जाए और वाद यहीं चलाया जाए। कुटुंब न्यायालय ने तर्क सुनने के बाद न केवल मांग मंजूर कर ली बल्कि नागपुर निवासी पति को जबलपुर बुला लिया।