भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया को लेकर जितनी भी उम्मीदें थीं उन सभी को यह फिल्म अपनी शुरुआत के 20 मिनट में ही पानी में बहा देती है. फिल्म में ढेरों खामियां हैं, जो इसे देखना आपके लिए हर मिनट के साथ मुश्किल करती है. कहानी के बारे में बात करें तो भुज की शुरुआत में दिए डिस्क्लेमर में साफ कर दिया गया है कि यह फिल्म काल्पनिक है और इसका सच्चाई से कोई वास्ता नहीं है. आगे क्या है इस फिल्म में जानें हमारे रिव्यू में.
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर बॉलीवुड हर साल एक से बढ़कर एक फिल्म रिलीज करता है, जिनका इंतजार दर्शकों को बेसब्री से होता है. इस साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दो फिल्में रिलीज हुई हैं. एक है शेरशाह और दूसरी भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया. शेरशाह का रिव्यू हम आपको पहले ही दे चुके हैं और भुज के बारे में क्या कहा जाए, यह सोचने के लिए मुझे अपने दिमाग पर बहुत जोर डालना पड़ रहा है. तकरीबन दो घंटे की इस फिल्म को देखने के बाद मुझे लग रहा है कि मेरे साथ बहुत बड़ा मजाक हुआ है. सच कहूं तो यह फिल्म ही किसी मजाक से कम नहीं है.
भुज: द प्राइड ऑफ इंडिया को लेकर जितनी भी उम्मीदें थीं उन सभी को यह फिल्म अपनी शुरुआत के 20 मिनट में ही पानी में बहा देती है. फिल्म में ढेरों खामियां हैं, जो इसे देखना आपके लिए हर मिनट के साथ मुश्किल करती है. कहानी के बारे में बात करें तो भुज की शुरुआत में दिए डिस्क्लेमर में साफ कर दिया गया है कि यह फिल्म काल्पनिक है और इसका सच्चाई से कोई वास्ता नहीं है.
क्या है फिल्म की कहानी?
फिल्म की कहानी शुरू होती है 1971 के इंडो-पाक वॉर के समय में अजय देवगन के नरेशन से, जो बताते हैं कि ईस्ट पाकिस्तान और वेस्ट पाकिस्तान अलग हो गए हैं और पाकिस्तानी सेना, बंगाली मुसलमानों पर जुल्म कर रही हैं. पाकिस्तानी राष्ट्रपति याह्या खान, भारत के भुज एयरबेस पर कब्जा करने और ईस्ट पाकिस्तान को हथियाने का प्लान बनाते हैं और भुज एयरबेस पर हमला करने के लिए अपने फाइटर जेट्स भेजते हैं. इस हमले में भुज एयरबेस को बड़ा नुकसान पहुंचा है, जिससे जल्द से जल्द उबरना बेहद जरूरी है, क्योंकि पाकिस्तानी सेना कब्जा करने के लिए निकल चुकी है.
ये है फिल्म के किरदार
अजय देवगन इस फिल्म में एयर फाॅर्स के स्कवॉड्रन लीडर विजय कार्णिक के किरदार में है, जिनपर हमले में नष्ट हुई एयरस्ट्रिप को ठीक करवाने पाकिस्तानी सेना को रोकने की जिम्मेदारी है. इस मिशन में उनके साथ मिलिट्री अफसर आर के नायर (शरद केलकर), रणछोड़दास पग्गी (संजय दत्त), फ्लाइट लेफ्टिनेंट विक्रम सिंह बाज (एमी विर्क) संग अन्य हैं. वहीं नोरा फतेही भारतीय जासूस है, जो पाकिस्तानी कमांडर के घर में होनी वाली मीटिंग्स के बारे में भारत की इंटेलिजेंस एजेंसी को खबरें देती हैं.
फिल्म भुज है कॉमेडी
हां, सही में फिल्म में ऐसे सीन्स हैं, जिन्हें देखकर आपकी हंसी नहीं रुकेगी. अगर मुझे कोई पहले कहता कि फिल्म भुज एक कॉमेडी है तो मैं ये नहीं मानती, लेकिन अब जब मैंने यह फिल्म देख ली है तो सच्चाई मेरी आंखों के सामने हैं. परफॉरमेंस के बारे में ज्यादा बात नहीं की जा सकती. बस इतना जान लीजिए कि शरद केलकर और एमी विर्क का काम अच्छा है. एक एक्टर जिसे इस फिल्म से बॉलीवुड में डेब्यू करने का मौका मिला है वह हैं प्रणिता सुभाष. मुझे यह बात बिल्कुल समझ नहीं आई कि आखिर प्रणिता ने भुज को अपना डेब्यू क्यों चुना? क्योंकि इस फिल्म में उनके गिने-चुने सीन्स तो हैं ही, साथ ही पूरी फिल्म में उनका एक भी डायलॉग नहीं है. यहां तक कि प्रणिता जिस गाने में हैं, उसमें भी लिप सिंक तक नहीं कर रहीं. उनका फिल्म में होना या ना होना एक समान है. बॉलीवुड में डेब्यू के हिसाब से इससे बुरा शायद ही कुछ और होगा.