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अब ब्रह्मपुत्र बेसिन में भारत से भिड़ना चाह रहा है चीन, जानें- क्या है ड्रैगन का ड्राउट प्लान?

थिंक टैंक के अनुसार, भारत और चीन के बीच ऊर्जा परिवर्तन और क्षेत्रीय राजनीतिक शक्ति के लिए बढ़ती प्रतिस्पर्धा की वजह से दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय तनाव कम करने के बजाय और बढ़ने की संभावना है।

लंबे समय से यह चर्चा होती रही है कि चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर बड़ी बांध परियोजनाओं और जलविद्युत संयंत्रों का निर्माण करने की कोशिशों में लगा है लेकिन चीन ने हर बार उन दावों का खंडन किया है। नीदरलैंड की थिंकटैंक संस्था यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज (European Foundation for South Asian Studies (EFSAS) ने अपनी हालिया स्टडी रिपोर्ट में कहा है कि चीन ब्रह्मपुत्र बेसिन पर आधिपत्य जमाने की रणनीति बना रहा है।

थिंक टैंक के अनुसार, भारत और चीन के बीच ऊर्जा परिवर्तन और क्षेत्रीय राजनीतिक शक्ति के लिए बढ़ती प्रतिस्पर्धा की वजह से दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय तनाव कम करने के बजाय और बढ़ने की संभावना है।

थिंक टैंक ने कहा है कि चीन के लिए ऊर्जा उत्पादन के तौर-तरीकों में परिवर्तन करना उसके भारी विकास मॉडल और विनिर्माण उद्योग के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। चीन का अधिकांश ऊर्जा उत्पादन जीवाश्म ईंधन के दोहन से होता है, इसलिए उस पर पूरी दुनिया का भी दबाव है कि वह ग्रीन ईनर्जी का उत्पादन करे और पर्यावरण प्रदूषण के स्तर को कम करे। इसलिए चीन जीवाश्म ईंधन पर अपनी अत्यधिक निर्भरता को कम कर नवीकरणीय ऊर्जा की ओर एक बदलाव की रणनीति में व्यस्त है।

थिंक टैंक के मुताबिक, चीन की इसी ऊर्जा परिवर्तन रणनीति (बिजली उत्पादन के लिए जीवाश्म आधारित प्रणालियों की बजाय अक्षय ऊर्जा पर जोर) की वजह से चीन और भारत के बीच ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली में टकराव के आसार बढ़ गए हैं क्योंकि दोनों ही देश इस क्षेत्र में हरित ऊर्जा के उत्पादन की रणनीति पर काम कर रहे हैं।

यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज (ईएफएसएएस) के अनुसार, ब्रह्मपुत्र बेसिन में चीन की नवीकरणीय ऊर्जा की प्राथमिकताएं उसकी रणनीतिक, सामरिक, आर्थिक और मध्यावधि राजनीतिक उद्देश्यों से भी जुड़ी हुई हैं।

हाल ही में,चीन ने घोषणा की कि वह 2060 तक कार्बन तटस्थता का लक्ष्य रखेगा और ऊर्जा नवाचार में सबसे आगे रहना चाहता है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने घोषणा की कि चीन 2030 से पहले अपने उत्सर्जन को अधिकतम करने की कोशिश करेगा। यह चीन की एक अत्यधिक महत्वाकांक्षी लक्ष्य है जिसके लिए उसे नवीनीकरणीय ऊर्जा में काफी निवेश करना पड़ सकता है।

इस बीच, भारत ने साल 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन बिजली उत्पादन का लक्ष्य 40 प्रतिशत रखा है। साल 2010 से 2018 के बीच, भारत ने अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को दोगुना कर दिया है। चीन की तुलना में भारत पवन और सौर ऊर्जा उत्पादन में अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। EFSAS की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास पाँचवीं सबसे बड़ी जलविद्युत क्षमता है।

भारत भी जलविद्युत क्षमता के लिए ब्रह्मपुत्र नदी घाटी पर अपनी निर्भरता बढ़ा रहा है। ऐसे में इस क्षेत्र में चीन और भारत के बीच टकराव बढ़ने के आसार हैं। EFSAS के अनुसार, नई दिल्ली ब्रह्मपुत्र नदी पर चीन के बढ़ते प्रभाव के प्रति सतर्क हो गया है। बांग्लादेश भारत की चिंताओं को कम करने में मददगार साबित हो सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यारलुंग जांग्बो नदी (ब्रहम्पुत्र का तिब्बती भाग) पर चीन की जलविद्युत परियोजनाएं ब्रह्मपुत्र नदी को भारत में एक मौसमी नदी में परिवर्तित कर देगी, जिसका परिणाम भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में सूखे (Draught) के रूप में सामने आ सकता है।