नेपाल के श्री पशुपतिनाथ मंदिर के पुजारी और पुरोहित महाकाल लोक में मूर्तियों के गिरने की घटना को लेकर बहुत नाराज है,नेपाल में बाबा विश्वनाथ काशी और महाकालेश्वर को लेकर बहुत ही गहरी आस्था है।
राजनयिक कारणों यहाँ मुखरता कम है,लेकिन लोग निजी चर्चा में प्रतिक्रिया व्यक्त करते है।
नेपाल के प्रधानमंत्री के भारत दौरे को लेकर खासकर उज्जैन में महाकाल मंदिर में दर्शन के लिए जाने की सूचना से नेपाली जनमानस गदगद है।
नेपाली जनता भारत के साथ है,चीन के बढ़ते प्रभुत्व को स्वीकार नही कर पा रही है। चीन यहाँ इंफ्रास्ट्रक्चर और हेरिटेज संपदा में आर्थिक और तकनीकी सहयोग कर रहा है। सरकार पर भी उसका गहरा प्रभाव है,हालांकि यहाँ इस समय बहुदलीय गठबंधन की सरकार है पर भारत समर्थक नेपाली कांग्रेस प्रमुख भूमिका में नही है।
नेपाली व्यापर-व्यवसाय पूरी तरह भारत पर निर्भर है,सांस्कृतिक और धार्मिक समानता है,नेपाली जनता भारत को सहोदर(बड़ा भाई) मानती है। नेपाल का मीडिया भी भारत समर्थक है। करीब एक दशक से यहाँ यूरोपियन यूनियन और क्रिस्चियन लॉबी सक्रिय है इसे अमेरिका का भी सहयोग प्राप्त है।
इस लॉबी के कारण ईसाई धर्मांतरण के मामले विवादित रहे है। नेपाली जनता क्रिश्चियन लॉबी को लेकर बहुत गुस्से में है। इस लॉबी का आर्थिक दबदबा है,यहाँ के कई राजनेता उनको मदद करते है। यहाँ भी वोटबैंक और तुष्टिकरण जैसी बुराईयां लोकतंत्र में आ चुकी है।
नेपाल में नगरों में स्थानीय प्रशासन बहुत अच्छा है,नगरपालिका का काम सीखने लायक है। पूरे काठमांडू महानगर में इंदौर जैसी सफाई है,कोई होर्डिंग्स नही है। यातायात अच्छा है। चीन के आर्थिक सहयोग के भार से दबा होने के कारण यहाँ महँगाई बहुत है। टेक्सी बहुत महंगी है,खानपान महंगा है,कोई भी मिठाई 1500 रुपए किलो से कम नही है।
इस समय नेपाल में भारतीय पर्यटकों को करेंसी की समस्या से भी दो चार होना पड़ रहा है।
यहाँ के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर मानी एक्सचेंज वाले भारतीय मुद्रा एक्सचेंज नही करते है।
बाज़ार में भारत के एक रुपए के डेढ़ रुपए मिल रहे है, पहले व्यापारी-दुकानदार भारतीय रुपए स्वीकार करते थे पर नोटबन्दी के बाद उपजी परिस्थितियों के कारण अब भारतीय मुद्रा खासकर 500 के नोट स्वीकार नही कर रहे है। कुछ लोग 100 और 200 के नोट ले लेते है।
नेपाल-भारत सम्बन्धों का आधार हमेशा हिन्दू धर्म रहा है,नेपाल वास्तविक हिन्दू राष्ट्र है,दिल्ली और काठमांडू के सम्बंध इस समय खट्टे मीठे है,भारत से जो मदद की उम्मीद नेपाल करता है,उतना सहयोग नही मिल रहा है,हालांकि ऊर्जा, गैस और बांध निर्माण में हम सहयोग कर रहे है पर इस समय याराना कम लग रहा है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए यहाँ बहुत आदर है पर नेपाली जनता को लगता है कि मोदी जी बनारस के सांसद होने के बाद भी हमारी उतनी चिंता नही कर रहे है जिसकी उन्हें अपेक्षा है। यहाँ यह जानना जरूरी है कि नेपाल की राजनीति हमेशा बनारस से ही तय होती रही है। नेपाल के सारे बड़े नेता यही पढ़े है।
इस समय नेपाल को भारत की बहुत जरूरत है,मोदी जी से यहाँ की जनता चाहती है कि वो उनके साथ खड़े रहे,यहाँ की सरकार भले ही चीन उन्मुख है पर जनता भारत के ही साथ है। भारत- नेपाल सम्बन्धो का कोई राजनयिक आधार नही हो सकता है,यहाँ के लोग आशाभरी नजरों से केवल भारत को ही देखते है।
बहरहाल नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प दहल कमल प्रचंड का उज्जैन में स्वागत होना चाहिए इस आशा के साथ कि ड्रैगन का साथ परस्पर सहयोग का नही एकतरफा डर का होता है,भारत हमेशा बड़ा भाई बना रहेगा,सरकार किसी की भी रहे।
काठमांडू से प्रकाश त्रिवेदी की रपट