उज्जैन। मंगलवार 25 मार्च को प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का 60 वां जन्मदिन है। यानी हमारे मुख्यमंत्री ने जन्म से अब तक सूर्यनारायण की 60 परिक्रमा पूर्ण कर ली। 60 बसंत की बहार के छूअन का अहसास किया। सबसे बड़ी विशेष बात यह कि अब डॉ. मोहन यादव के कुशल नेतृत्व में संपूर्ण मध्यप्रदेश विकास लोक की गाथा रचने लगा है। आज से 60 वर्ष पहले जब स्व. श्री पूनमचंद यादव के घर नन्हा बालक मोहन का जन्म हुआ, तब किसी ने कल्पना भी नहीं की कि होगी कि यह बालक बड़ा होकर प्रदेश का नेतृत्व करेगा। गोस्वामी तुलसीदासजी ने एक पंक्ति में कहा है प्रारब्ध पहले रचा, पीछे रचा शरीर। यानी जन्म से पहले ही हमारा भाग्य रच दिया गया। बालक मोहन के साथ भी कुछ ऐसा ही रहा। जन्म के कई वर्षों बाद प्रदेश का नेतृत्व उनके हाथ में होना विधाता ने पहले ही रच दिया था। आवश्यकता सिर्फ बालक मोहन द्वारा किए जा रहे प्रयासों की थी। इसमें वे पीछे नहीं हटे। छात्र राजनीति में ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में विभिन्न पदों पर सुशोभित हुए। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में राष्ट्रीय महामंत्री के दायित्व का निर्वहन किया। माधव विज्ञान महाविद्यालय में वर्ष 1982 में डॉ. यादव छात्र संघ के सह सचिव तथा 1984 में छात्रसंघ अध्यक्ष निर्वाचित हुए। तब वे मात्र 17 और 19 वर्ष के ही थे।
राजनीतिक पथ पर मोहन अग्रसर होते रहे। थमने का काम नहीं था, रूकने का नाम नहीं था। चलते-चलते संघ और भारतीय जनता युवा मोर्चा में भी विभिन्न दायित्वों का निर्वहन किया और धीरे-धीरे राजनीति के शिखर की ओर अग्रसर होते रहे। भारतीय जनता पार्टी में भी वे प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य व भाजपा के अखिल भारतीय सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के सह संयोजक रह चुके हैं।
वर्ष 2004 में वे उज्जैन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बने। उनके अध्यक्ष बनने के बाद शहरवासियों को उज्जैन विकास प्राधिकरण के कार्यों का पता चला तथा उन्होंने इसे एक नयी पहचान दी। प्राधिकरण अध्यक्ष रहते हुए कई बड़े रहवासी परियोजनाओं की शुरुआत करना, खेल, धर्म के क्षेत्र में प्राधिकरण द्वारा कार्य करना प्रमुख रहे। इंदौर रोड पर बड़ा मुख्य द्वार भी शहर में इंदौर मार्ग से प्रवेश करने वाले लोगों को उज्जैन के वैभव की झलक दिखा रहा है। आखिर उच्च शिक्षित होने का लाभ शहरवासियों को डॉ मोहन यादव के उज्जैन विकास प्राधिकरण अध्यक्ष बनने से ही मिलने लगा था।
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के कुशल नेतृत्व से प्रदेश में बह रही विकास की बयार
उन्नति के पथ पर डा. मोहन यादव की यात्रा यहीं नहीं थमी। वर्ष 2010 तक उज्जैन विकास प्राधिकरण अध्यक्ष का पद सुशोभित करने के पश्चात वर्ष 2011 से 13 तक मध्यप्रदेश पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष के पद को सुशोभित किया। मध्यप्रदेश में पर्यटन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने पर राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत भी किया गया। उपलब्धियों की डगर पर चलना अब भी जारी था। वर्ष 2013 में पहली बार विधानसभा सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए। इसके पश्चात वर्ष 2020 में उच्च शिक्षा मंत्री बने। डॉ. मोहन यादव के उच्च शिक्षित होने का लाभ उच्च शिक्षा मंत्री के रूप में पूरे प्रदेश को मिला। उच्च शिक्षा मंत्री रहते हुए मप्र में राष्ट्रीय शिक्षा नीति का सफल क्रियान्वयन किया और प्रदेश में 54 नए महाविद्यालयों की स्थापना की। बीएससी, एलएलबी, एमबीए तक शिक्षित व राजनीति शास्त्र में पीएचडी उपाधि प्राप्त डॉ. मोहन यादव ने 13 दिसंबर वर्ष 2023 में प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की और पूरे प्रदेश को विकास की डगर पर अग्रसर करना शुरू कर दिया। सारथी यदि कुशल हो तो रथ पर सवार व्यक्ति को कहीं परेशानी नहीं होती। यही स्थिति प्रदेश की भी बन चुकी है। मुख्यमंत्री यदि योग्य, कर्त्तव्यनिष्ठ, विकासोन्मुखी प्रवृत्ति धारण किए हुए हो तो प्रदेशवासियों की निश्चिंतता सहसा ही प्रकट होती है। यदि हमें किसी बड़े लक्ष्य को हासिल करना है तो एक कदम बढ़ाना जरूरी होता है और निरंतर आगे बढ़ते रहना पड़ता है। प्रदेश के लाखों बेरोजगारों को रोजगार दिलाने, प्रदेश में उद्योगों को पोषित करने, तकनीक के क्षेत्र में प्रदेश को ध्वज वाहक बनने का लक्ष्य साधना हर किसी के लिए इतना आसान नहीं है और यह काम चुटकियों में होने जैसा भी नहीं है। कठिन ही सही, पर असंभव नहीं के ध्येय को धारण कर देश में मध्यप्रदेश को विकास की प्रतिस्पर्धा में अव्वल लाने का लक्ष्य हमारे मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने धारण किया है। जिस तरीके से प्रदेश में हर संभाग में उद्योगों की स्थापना शुरू हुई है, इससे प्रदेश में लाखों युवाओं का पलायन रूकना शुरू हुआ है और अपने ही शहर में उन्हें रोजगार मिलना शुरू हो गया। कहते हैं कर्मशील को भविष्य की चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती। कर्म करते रहो। यही हमें प्रदेश में कहीं न कहीं देखने को मिलता है।
मुख्यमंत्री बनने के बाद डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन में लगने वाले सिंहस्थ के कार्यों को भी अपनी प्राथमिकता में रखा। इसके लिए करोड़ों रुपये का बजट भी रखा गया है। सिंहस्थ में श्रद्धालुओं को स्नान के लिए परेशानी न हो, इसके लिए शिप्रा के दोनों किनारों पर 29 किलोमीटर से अधिक के पक्के घाट का निर्माण करने की योजना लाई गई। इसका लाभ यह रहेगा कि सिंहस्थ में करोड़ों श्रद्धालुओं को एक ही स्थान पर स्नान करने की बजाए पूरे 29 किलोमीटर तक के क्षेत्र में स्नान करने का लाभ मिलेगा।
इससे भीड़ पर भी नियंत्रण रहेगा। बीते 1992 से सिंहस्थ में कभी गंभीर, कभी नर्मदा के जल से सिंहस्थ का स्नान किया गया। इतने वर्षों में इस बार पहली बार ऐसा होगा कि शिप्रा के जल से ही सिंहस्थ में स्नान होगा। इसके लिए मुख्यमंत्री ने कान्ह क्लोज डक्ट परियोजना को अमलीजामा पहनाया। उद्योगों को बढावा देने के लिए क्षैत्रीय औद्योगिक समिट की शुरुआत की और क्षैत्रीय विकाय की अवधारणा को नई दिशा दी।
बीते दिनों भोपाल में हुई ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट ने भी देशभर के उद्योगपतियों का दिल जीता। औद्योगिक क्रांति की गाथा रचने वाले मुख्यमंत्री ने प्रदेश में सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध बनाने के लिए विक्रमोत्सव का भी 125 दिन तक आयोजन शुरू किया। प्रतिदिन कला के क्षेत्र में समृद्धि अपनी गाथा बयान कर रही है। भगवान श्री कृष्ण के मध्यप्रदेश आगमन के पथ को भी श्रीकृष्ण पाथेय के रूप में विकसित कर अमिट निशानी प्रदेश को मिलने वाली है। उज्जैन के आसपास के सभी पहुंच मार्गों को चौड़ा करने, उज्जैन-इंदौर के बीच फोरलेन को सिक्स लेन में बदलने से दोनों शहरों के मध्य व्यापार, व्यवसाय में तेजी से वृद्धि होगी। प्रदेश की पहली मेडिसिटी का लाभ तो संभवत: पूरे प्रदेश को ही मिलेगा। स्वास्थ्य के क्षेत्र में उपयोग में आने वाले अधिकांश उपकरण यहीं तैयार होने लगेंगे। आईटी पार्क की भी शहर में शुरुआत की गई। इससे तकनीक का ज्ञान रखने वाले युवाओं का पलायन रूकेगा। चूंकि श्री महाकाल लोक बनने के बाद शहर विकास की डगर पर फर्राटा मारने लगा है, साथ ही शहर ने बीते कई वर्षों में बाहर से आने वाले करोड़ों श्रद्धालुओं का स्वागत भी किया है। यही कारण रहा कि प्रदेश में सर्वाधिक पर्यटक उज्जैन में ही आए। प्रतिदिन लाखों की संख्या में उज्जैन आ रहे पर्यटकों को देखते हुए मुख्यमंत्री ने उज्जैन में चिड़ियाघर शुरू करने की भी योजना को अमलीजामा पहनाने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है । अब कुछ ही वर्षों में उज्जैन को भी एक चिड़ियाघर मिल जाएगा। साथ ही एयरपोर्ट के लिए भी उज्जैन में प्रयास जारी है। आने वाले समय में इतना तो तय है कि प्रदेश का हर नागरिक यही कहेगा कि आज का समय मध्यप्रदेश का स्वर्णीम काल है।