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लालू के करीबी रघुवंश प्रसाद का इस्तीफा, RJD को चुनाव में कहीं महंगा न पड़ जाए

बिहार विधानसभा चुनाव के ऐलान से पहले आरजेडी में सियासी भूचाल आ गया है. आरजेडी के 5 एमएलसी ने पार्टी छोड़ जेडीयू का दामन थाम लिया. साथ ही आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. लालू प्रसाद यादव के करीबी रघुवंश प्रसाद का इस्तीफा देना पार्टी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है.

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक बिसात बिछाई जाने लगी है. चुनाव के ऐलान से पहले आरजेडी में सियासी भूचाल आ गया है. आरजेडी के 5 एमएलसी ने पार्टी छोड़ जेडीयू का दामन थाम लिया. इतना ही नहीं आरजेडी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. लालू प्रसाद यादव के करीबी रघुवंश प्रसाद का इस्तीफा देना पार्टी के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है.

रघुवंश प्रसाद पूर्व सांसद रामा सिंह को आरजेडी में शामिल किए जाने को लेकर नाराज चल रहे हैं. हालांकि, इससे पहले भी रघुवंश प्रसाद कई बार नाराज हो चुके हैं, लेकिन हर बार लालू उन्हें मना ले जाते हैं. इसी साल फरवरी में लालू यादव ने नाराज रघुवंश से जेल में ही मुलाकात की थी और समझाया था कि आप पार्टी के वरिष्ठ हैं, आप ही नाराज हो जाएंगे तो कैसे काम चलेगा?

रघुवंश प्रसाद आरजेडी के चुनिंदा नेताओं में से है, जिन्होंने पार्टी को बुलंदी पर पहुंचाने में अहम भूमिका अदा की है. रघुवंश आरजेडी के उन गिने-चुने नेताओं में से एक हैं जिनपर कभी भी भ्रष्टाचार या गुंडागर्दी के आरोप नहीं लगे.

लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद पार्टी में वरिष्ठ नेताओं की कमी हो गई है. रघुवंश प्रसाद ही वह चेहरा माने जाते हैं जो पार्टी के उम्रदराज कार्यकर्ताओं को पार्टी के साथ जोड़े रखने में अहम भूमिका अदा करते रहे हैं. ऐसे में उनकी नाराजगी आरजेडी और तेजस्वी यादव के लिए काफी मंहगी पड़ सकती है.

समाजवादी नेता रघुवंश प्रसाद ने गणित में एमएससी और पीएचडी किया है. उन्होंने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्‍व में हुए आंदोलनों में भाग लेना शुरु कर दिया था.1973 में उन्‍हें संयुक्‍त सोशलिस्‍ट पार्टी का सचिव नियुक्त किया गया. रघुवंश प्रसाद 1977 में पहली मर्तबा विधायक बने थे. बेलसंड से उनकी जीत का सिलसिला 1985 तक चलता रहा. इस बीच 1988 में कर्पूरी ठाकुर का अचानक निधन हो गया.

बिहार में जगन्नाथ मिश्र की सरकार थी. लालू प्रसाद यादव कर्पूरी के खाली जूतों पर अपना दावा जता रहे थे. रघुवंश प्रसाद सिंह ने इस गाढ़े समय में लालू का साथ दिया. यहां से लालू प्रसाद यादव और रघुवंस प्रसगा बीच की करीबी शुरू हुई. 1990 में बिहार विधानसभा के लिए चुनाव हुए. रघुवंश प्रसाद सिंह के सामने खड़े थे कांग्रेस के दिग्विजय प्रताप सिंह. इस चुनाव में रघुवंश प्रसाद सिंह 2,405 वोटों से हार गए.

रघुवंश चुनाव हार गए थे लेकिन सूबे में जनता दल चुनाव जीतने में कामयाब रहा. लालू प्रसाद यादव नाटकीय अंदाज में मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे. लालू को 1988 में रघुवंश प्रसाद सिंह द्वारा दी गई मदद याद थी और लिहाजा उन्हें विधान परिषद भेज दिया गया. 1995 में लालू मंत्रिमंडल में मंत्री बना दिए गए. ऊर्जा और पुनर्वास का महकमा दिया गया.

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तेजस्वी, लालू यादव, रघुवंश प्रसाद

1996 के लोकसभा चुनाव में बिहार के वैशाली से लालू यादव के कहने पर रघुवंश प्रसाद सिंह लोकसभा चुनाव लड़कर संसद पहुंचे. केंद्र में जनता दल गठबंधन सत्ता में आई. देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बने. रघुवंश बिहार कोटे से केंद्र में राज्य मंत्री बनाए गए. पशु पालन और डेयरी महकमे का स्वतंत्र प्रभार. अप्रैल 1997 में देवेगौड़ा को एक नाटकीय घटनाक्रम में प्रधानमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी. इंद्र कुमार गुजराल नए प्रधानमन्त्री बने और रघुवंश प्रसाद सिंह को खाद्य और उपभोक्ता मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई.

रघुवंश प्रसाद सिंह 1996 में केंद्र की राजनीति में आ चुके थे लेकिन उन्हें असली पहचान मिली 1999 से 2004 के बीच. 1999 के लोकसभा चुनाव में शरद यादव और लालू प्रसाद यादव आमने सामने थे. बिहार की सबसे चर्चित सीट से शरद यादव जीतने में कामयाब रहे. 1999 में जब लालू प्रसाद यादव हार गए तो रघुवंश प्रसाद को दिल्ली में राष्ट्रीय जनता दल के संसदीय दल का अध्यक्ष बनाया गया. केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. रघुवंश प्रसाद सिंह विपक्ष की बेंच पर बैठे थे. संसद की कार्यवाही में जाते हुए रघुवंश प्रसाद सिंह को अरुण जेटली ने रोक लिया. मुस्कुराते हुए बोले, ‘तो कैसा चल रहा है वन मैन ऑपोजिशन?’

रघुवंश प्रसाद सिंह को समझ में नहीं आया. अरुण जेटली ने उस दिन का एक अंग्रेजी अखबार उनकी खिसका दिया. अखबार में चार कॉलम में रघुवंश प्रसाद की प्रोफाइल छपी थी. इसका शीर्षक था, ‘वन मैन ऑपोजिशन.’ 1999 से 2004 के रघुवंश प्रसाद संसद के सबसे सक्रिय सदस्यों में से एक थे. उन्होंने एक दिन में कम से कम 4 और अधिकतम 9 मुद्दों पर अपनी पार्टी की राय रखी थी. यह एक किस्म का रिकॉर्ड था. उस दौर में वाजपेयी सरकार को घेरने में रघुवंश प्रसाद सिंह सबसे आगे नजर आते थे. इस तरह से उन्होंने केंद्रीय राजनीति में अपनी मजबूत पहचान बनाई.

मनरेगा की नींव रखी

2004 में केंद्र में यूपीए सरकार की सत्ता में वापसी हुई. 22 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी और यूपीए में कांग्रेस के बाद सबसे बड़ी पार्टी थी. इस लिहाज से उसके खाते में दो कैबिनेट मंत्रालय आए. पहला रेल मंत्रलय जिसका जिम्मा लालू प्रसाद यादव के पास था. दूसरा ग्रामीण विकास मंत्रालय जिसका जिम्मा रघुवंश प्रसाद सिंह के पास आया. रघुवंश प्रसाद सिंह ने मनरेगा कानून को बनवाने और पास करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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रघुवंश प्रसाद सिंह

हालांकि, उस मनमोहन सरकार के मंत्रिमंडल के कई सदस्य मनरेगा के खिलाफ खड़े थे और वो इसे सरकार पर बोझ बढ़ाने वाला कह रहे थे. ऐसे में रघुवंश प्रसाद सिंह को इस कानून के लिए मंत्रिमंडल के भीतर लंबी जिरह करनी पड़ी. कानून पास होने के बाद भी यह तकरार चलती रही. मंत्रिमंडल के उनके कई सहयोगी चाहते थे कि शुरुआत में इसे महज 50 पिछड़े जिलों में लागू किया जाए. लेकिन रघुवंश प्रसाद सिंह अड़े रहे.आखिरकार एक साल के भीतर रघुवंश प्रसाद इसे आलमीजामा पहनाने में कामयाब रहे. 2 फरवरी, 2006 के रोज देश के 200 पिछड़े जिलों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना लागू की गई. 2008 तक यह भारत के सभी जिलों में लागू की जा चुकी थी.

2009 के चुनाव में कांग्रेस अपनी सत्ता बचाने में कामयाब रही. उस समय राजनीतिक विश्लेषकों ने इस जीत की दो बड़ी वजहें बताई थीं. पहला किसानों की कर्जा माफी और दूसरा मनरेगा. रोजगार योजना ने कांग्रेस के सत्ता में वापसी सुनिश्चित किया. 2009 के लोकसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनता पार्टी कांग्रेस गठबंधन से अलग हो गई. बिहार में दोनों पार्टी आमने-सामने थीं. रघुवंश प्रसाद सिंह ने पार्टी सुप्रीमों लालू प्रसाद यादव के इस कदम का विरोध किया. लेकिन उस समय लालू ने उनकी नहीं सुनी. इसका घाटा राजद को उठाना पड़ा. बिहार में राजद की सीट 22 से घटकर 4 पर पहुंच गई.

कांग्रेस रघुवंश प्रसाद को पार्टी में लेना चाहती थी

2009 में लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद आरजेडी ने कांग्रेस को बाहर से समर्थन दिया. हालांकि, मनमोहन सिंह रघुवंश प्रसाद सिंह को फिर से ग्रामीण विकास मंत्रालय देने के लिए अड़े हुए थे. लेकिन आरजेडी ने सरकार में शामिल होने के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया. ऐसे में कांग्रेस रघुवंश के सामने कांग्रेस जॉइन करने का प्रस्ताव रखा गया, लेकिन रघुवंश बाबू ने प्रस्ताव खारिज कर दिया था और लालू यादव के साथ ही रहना पसंद किया. लेकिन अब जब आरजेडी में बहुबली रमा सिंह की एंट्री हो रही है तो रघुवंश प्रसाद नाराज हैं और उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. देखना है कि इस बार लालू उन्हें मनाने में कामयाब रहते हैं या रघुवंश प्रसाद अपना राजनीतिक ठिकाना तलाशते हैं?