उज्जैनदेवासमध्य प्रदेश

“शिक्षक दिवस विशेष” दुनिया वालो मुझे सहेज कर रखो में राष्ट्र निर्माता हूँ ,शिक्षक हूँ, याद आती है मनोज दुबे की ह्रदय स्पर्शी कविता “शिक्षक “

शिक्षक दिवस के अवसर पर याद आती है मनोज दुबे की ह्रदय स्पर्शी कविता “शिक्षक ”
(अब तो एक ही प्रार्थना है मेरे ईश्वर कि इस जीवन को इन बच्चों की सेवा में ही लगाना, मत बनाना मुझे कुछ और , हर जन्म में मुझे शिक्षक ही बनाना……)
कांटाफोड़ (आशीष तिवारी)- सम्पूर्ण क्षेत्र के नाम को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पटल पर कई बार गौरवान्वित करने वाले शिक्षक एवं कवि मनोज दुबे की कविता ” शिक्षक ” प्रति वर्ष शिक्षक दिवस के अवसर पर स्मरण होने लगती है। शिक्षक के महान व्यक्तित्व का चित्रण इस कविता में किया गया है। शिक्षक की महिमा को बताने वाली यह पँक्तियाँ .. “मेरी मुट्ठी में बंद है समय की धड़कन ,मेरी आँखों में आने वाला कल पलता हे। नव सृजन खेलता है मेरी गोद में शिशु बनकर ,मेरी उँगली पकड़कर युग चलता हे ।अँधेरे खोफ खाते है मुझसे क्योंकि में रौशनी का रक्षक हूँ। दुनिया वालो मुझे सहेज कर रखो में राष्ट्र निर्माता हूँ ,शिक्षक हूँ। सम्पूर्ण कविता मे बहुत ही ह्र्दय स्पर्शी चित्रण देखने को मिलता है।शिक्षक दिवस के अवसर पर यह कविता कई समारोहो में अभी तक सुनाई जा चुकी है। कविता की कुछ पँक्तियाँ भाव विभोर कर देती है… “एक दीपक की तरह स्वयं जलकर शिक्षक सारी दुनिया को आलोकित करता है, अनादि अनन्त हे शिक्षक , शिक्षक कभी नही मरता है। अब तो एक ही प्रार्थना है मेरे ईश्वर कि इस जीवन को इन बच्चों की सेवा में ही लगाना , मत बनाना मुझे कुछ और हर जन्म में बस शिक्षक ही बनाना । यहाँ यह उल्लेखनीय है की यह कविता शिक्षक दिवस के अवसर पर कई बार विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। यहाँ पर इस बात का जिक्र करना भी जरूरी है कि मनोज दुबे एक श्रेष्ठ कवि होने के साथ साथ एक लोकप्रिय एवं समर्पित शिक्षक भी हे। उनसे मिलने के बाद व्यक्ति उनकी बातों में खो जाता है, छोटा हो या बड़ा उनकी बात करने की शैली सभी से एक समान बहुत मार्मिक ओर मिठास भरी ही रहती है। वह फ़िल्म गीतकार कमेटी मुम्बई के मेम्बर भी है।नगर के हर कार्यक्रम में उनका संचालन तारीफ योग्य रहता है। सम्पूर्ण अंचल को उन पर गर्व है।