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मूंगफली से हो सकती है, एलर्जी

मूंगफली एलर्जी के साथ जीना यानी हर वक्त सिर पर तलवार लटकने जैसा है। भारत में यदि कोई इसका मरीज है तो उसकी मुश्किल और भी बढ़ जाती है क्योंकि यहां महाराष्ट्र से लेकर बिहार और पंजाब से लेकर तमिलनाडु तक मिठाई तथा तमाम तरह की चीजों में मूंगफली का इस्तेमाल होता है।

भारत में एलर्जी

परंपागतरूप से भारत में खाद्य पदार्थों से एलर्जी के मामले कम हैं। मार्च 2019 को जर्नल ऑफ इवोल्यूशन ऑफ मेडिकल एंड डेंटल साइंसेस में प्रकाशित आर्टिकल के अनुसार, भारतीय जीन्स में क्षमता है कि हम एलर्जी वाली छींक, अस्थमा और खुजली से बचे रहते हैं। ‘एलर्जीस इन इंडिया – अ स्टडी ऑफ 6270 पेशेंट्स’ में लिखा गया है कि भारत में सबसे बड़ा खाद्य अपराधी कोको है-पोषक तत्वों से भरपूर, लेकिन कड़वा होता है। यह चॉकलेट को आनंददायक बनाता है। लेकिन, अब हालात बदल रहे हैं। लाइफस्टाइल बदलने से लोगों को लैक्टोस और धूल के कणों से एलर्जी होने लगी है। 2016 में कर्नाटक में 588 लोगों पर स्टडी हुई थी, जिसमें से 26 फीसदी फूड एलर्जी का शिकार निकले।

मूंगफली खाने से क्यों होता है ऐसा?

जर्नल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च में प्रकाशित अपने लेख में एस.वी. गंगल औऱ बी.के. मलिक ने लिखा है कि एलर्जी का सीधा संबंध व्यक्ति की रोगों से लड़ने की यानी प्रतिरोध क्षमता से है। कई लोगों में मूंगफली का प्रोटीन एंटीजेन के रूप में काम करता है, जो प्रतिरक्षा तंत्र को जागृत कर देता है।

एलर्जी के लक्षण क्या हैं?

प्रतिरक्षा तंत्र आईजीई एंटीबॉडीज बनाता है। यूं तो कुल 5 प्रकार के एंटीबॉडीज होते हैं, लेकिन आईजीई को एलर्जी के लिए जिम्मेदार माना जाता है। ये आईजीई एंटीबॉडीज मास्ट सेल्स या बासोफिल्स (इम्युन सेल्स) के साथ मिलते हैं और उनको संवेदनशील बना देते हैं। संवेदनशील बनाने से यहां तात्पर्य है उन कोशिकाओं को जागृत कर देना। इस प्रकार अगली बार जब वह व्यक्ति मूंगफली खाता है तो मास्ट सेल्स या बासोफिल्स बड़ी मात्रा में उत्तेजक रिलीज करती हैं। इसके कई लक्षण हैं जैसे- डायरिया, अस्थमा, खुजली, त्वचा पर चकत्ते होना और लाल पड़ना।

एलर्जी का इलाज क्या है?

वर्तमान में फूड एलर्जी का कोई इलाज नहीं है। मूंगफली की एलर्जी के लिए एपिनेफ्रीन से इलाज किया जाता है, जो श्वसन वायुमार्ग को शांत कर देती है। बाजार में कई डिवाइसेस उपलब्ध हैं, जिनसे मरीज एपिनेफ्रीन का इंजेक्शन खुद भी लगा सकते हैं। हालांकि इसके बाद भी मरीज को अस्पताल ले जाने की सलाह दी जाती है, ताकि जरूरत पड़ने पर और इलाज किया जा सके। वहीं एंटीथिस्टेमाइंस और एपिनेफ्रीन से न केवल एलर्जी बल्कि इसके लक्षणों का भी इलाज होता है। ताजा रिसर्च में अब एपिनेफ्रीन पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। ऐसा ही एक इलाज है ऑरल इम्युनोथेरेपी। थोड़ा-थोड़ा करके, डॉक्टर मरीज को एलर्जी पैदा करने वाला खाद्य पदार्थ देते हैं और एलर्जी से लड़ने की क्षमता पैदा करने की कोशिश करते हैं।

आम तौर पर एलर्जी रिएक्शन में एंटीजेन से लड़ने के लिए शरीर आईजीई एंटीबॉडीज बनाता है। ऑरल इम्युनोथेरेपी में मोनोक्लोनल नामक इन्हीं एंटीबॉडीज का इस्तेमाल करने का विचार है, क्योंकि ये उन्हीं प्रतिरक्षा कोशिकाओं से बने हैं, जो एलर्जी वाली चीज खाए जाने पर प्रतिक्रिया करती हैं। इसका उद्देश्य प्रतिरक्षा कोशिकाओं (बासोफिल या मास्ट सेल्स) को बांधे रखना है, ताकि वे और अधिक विपरीत प्रतिक्रिया न दें।

इस साल के शुरू में साइंस जर्नल द लानसेट में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि बच्चो में ऑरल इम्युनोथेरेपी एक सीमा तक ही असर करती है। अपने विश्लेषण में अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि इससे ऐनफलैक्टिक रिएक्शन का खतरा और इसके बार-बार अटैक करने की आशंका बढ़ जाती है।

कुल मिलाकर एलर्जी के खिलाफ लड़ाई की ये शुरुआत है। वैज्ञानिकों को हर दिन यह ज्यादा समझ आ रहा है कि प्रतिरक्षा प्रणाली कैसे काम करती है। एलर्जी की न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में जड़े मजबूत हैं, लेकिन डॉक्टर लगातार इसका इलाज खोजने की कोशिश कर रहे हैं।

भारत में एलर्जी

परंपागतरूप से भारत में खाद्य पदार्थों से एलर्जी के मामले कम हैं। मार्च 2019 को जर्नल ऑफ इवोल्यूशन ऑफ मेडिकल एंड डेंटल साइंसेस में प्रकाशित आर्टिकल के अनुसार, भारतीय जीन्स में क्षमता है कि हम एलर्जी वाली छींक, अस्थमा और खुजली से बचे रहते हैं। ‘एलर्जीस इन इंडिया – अ स्टडी ऑफ 6270 पेशेंट्स’ में लिखा गया है कि भारत में सबसे बड़ा खाद्य अपराधी कोको है-पोषक तत्वों से भरपूर, लेकिन कड़वा होता है। यह चॉकलेट को आनंददायक बनाता है। लेकिन, अब हालात बदल रहे हैं। लाइफस्टाइल बदलने से लोगों को लैक्टोस और धूल के कणों से एलर्जी होने लगी है। 2016 में कर्नाटक में 588 लोगों पर स्टडी हुई थी, जिसमें से 26 फीसदी फूड एलर्जी का शिकार निकले।

मूंगफली खाने से क्यों होता है ऐसा?

जर्नल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च में प्रकाशित अपने लेख में एस.वी. गंगल औऱ बी.के. मलिक ने लिखा है कि एलर्जी का सीधा संबंध व्यक्ति की रोगों से लड़ने की यानी प्रतिरोध क्षमता से है। कई लोगों में मूंगफली का प्रोटीन एंटीजेन के रूप में काम करता है, जो प्रतिरक्षा तंत्र को जागृत कर देता है।

एलर्जी के लक्षण क्या हैं?

प्रतिरक्षा तंत्र आईजीई एंटीबॉडीज बनाता है। यूं तो कुल 5 प्रकार के एंटीबॉडीज होते हैं, लेकिन आईजीई को एलर्जी के लिए जिम्मेदार माना जाता है। ये आईजीई एंटीबॉडीज मास्ट सेल्स या बासोफिल्स (इम्युन सेल्स) के साथ मिलते हैं और उनको संवेदनशील बना देते हैं। संवेदनशील बनाने से यहां तात्पर्य है उन कोशिकाओं को जागृत कर देना। इस प्रकार अगली बार जब वह व्यक्ति मूंगफली खाता है तो मास्ट सेल्स या बासोफिल्स बड़ी मात्रा में उत्तेजक रिलीज करती हैं। इसके कई लक्षण हैं जैसे- डायरिया, अस्थमा, खुजली, त्वचा पर चकत्ते होना और लाल पड़ना।

एलर्जी का इलाज क्या है?

वर्तमान में फूड एलर्जी का कोई इलाज नहीं है। मूंगफली की एलर्जी के लिए एपिनेफ्रीन से इलाज किया जाता है, जो श्वसन वायुमार्ग को शांत कर देती है। बाजार में कई डिवाइसेस उपलब्ध हैं, जिनसे मरीज एपिनेफ्रीन का इंजेक्शन खुद भी लगा सकते हैं। हालांकि इसके बाद भी मरीज को अस्पताल ले जाने की सलाह दी जाती है, ताकि जरूरत पड़ने पर और इलाज किया जा सके। वहीं एंटीथिस्टेमाइंस और एपिनेफ्रीन से न केवल एलर्जी बल्कि इसके लक्षणों का भी इलाज होता है। ताजा रिसर्च में अब एपिनेफ्रीन पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। ऐसा ही एक इलाज है ऑरल इम्युनोथेरेपी। थोड़ा-थोड़ा करके, डॉक्टर मरीज को एलर्जी पैदा करने वाला खाद्य पदार्थ देते हैं और एलर्जी से लड़ने की क्षमता पैदा करने की कोशिश करते हैं।

आम तौर पर एलर्जी रिएक्शन में एंटीजेन से लड़ने के लिए शरीर आईजीई एंटीबॉडीज बनाता है। ऑरल इम्युनोथेरेपी में मोनोक्लोनल नामक इन्हीं एंटीबॉडीज का इस्तेमाल करने का विचार है, क्योंकि ये उन्हीं प्रतिरक्षा कोशिकाओं से बने हैं, जो एलर्जी वाली चीज खाए जाने पर प्रतिक्रिया करती हैं। इसका उद्देश्य प्रतिरक्षा कोशिकाओं (बासोफिल या मास्ट सेल्स) को बांधे रखना है, ताकि वे और अधिक विपरीत प्रतिक्रिया न दें।

इस साल के शुरू में साइंस जर्नल द लानसेट में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि बच्चो में ऑरल इम्युनोथेरेपी एक सीमा तक ही असर करती है। अपने विश्लेषण में अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि इससे ऐनफलैक्टिक रिएक्शन का खतरा और इसके बार-बार अटैक करने की आशंका बढ़ जाती है।

कुल मिलाकर एलर्जी के खिलाफ लड़ाई की ये शुरुआत है। वैज्ञानिकों को हर दिन यह ज्यादा समझ आ रहा है कि प्रतिरक्षा प्रणाली कैसे काम करती है। एलर्जी की न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में जड़े मजबूत हैं, लेकिन डॉक्टर लगातार इसका इलाज खोजने की कोशिश कर रहे हैं।

भारत में एलर्जी

परंपागतरूप से भारत में खाद्य पदार्थों से एलर्जी के मामले कम हैं। मार्च 2019 को जर्नल ऑफ इवोल्यूशन ऑफ मेडिकल एंड डेंटल साइंसेस में प्रकाशित आर्टिकल के अनुसार, भारतीय जीन्स में क्षमता है कि हम एलर्जी वाली छींक, अस्थमा और खुजली से बचे रहते हैं। ‘एलर्जीस इन इंडिया – अ स्टडी ऑफ 6270 पेशेंट्स’ में लिखा गया है कि भारत में सबसे बड़ा खाद्य अपराधी कोको है-पोषक तत्वों से भरपूर, लेकिन कड़वा होता है। यह चॉकलेट को आनंददायक बनाता है। लेकिन, अब हालात बदल रहे हैं। लाइफस्टाइल बदलने से लोगों को लैक्टोस और धूल के कणों से एलर्जी होने लगी है। 2016 में कर्नाटक में 588 लोगों पर स्टडी हुई थी, जिसमें से 26 फीसदी फूड एलर्जी का शिकार निकले।

मूंगफली खाने से क्यों होता है ऐसा?

जर्नल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च में प्रकाशित अपने लेख में एस.वी. गंगल औऱ बी.के. मलिक ने लिखा है कि एलर्जी का सीधा संबंध व्यक्ति की रोगों से लड़ने की यानी प्रतिरोध क्षमता से है। कई लोगों में मूंगफली का प्रोटीन एंटीजेन के रूप में काम करता है, जो प्रतिरक्षा तंत्र को जागृत कर देता है।

एलर्जी के लक्षण क्या हैं?

प्रतिरक्षा तंत्र आईजीई एंटीबॉडीज बनाता है। यूं तो कुल 5 प्रकार के एंटीबॉडीज होते हैं, लेकिन आईजीई को एलर्जी के लिए जिम्मेदार माना जाता है। ये आईजीई एंटीबॉडीज मास्ट सेल्स या बासोफिल्स (इम्युन सेल्स) के साथ मिलते हैं और उनको संवेदनशील बना देते हैं। संवेदनशील बनाने से यहां तात्पर्य है उन कोशिकाओं को जागृत कर देना। इस प्रकार अगली बार जब वह व्यक्ति मूंगफली खाता है तो मास्ट सेल्स या बासोफिल्स बड़ी मात्रा में उत्तेजक रिलीज करती हैं। इसके कई लक्षण हैं जैसे- डायरिया, अस्थमा, खुजली, त्वचा पर चकत्ते होना और लाल पड़ना।

एलर्जी का इलाज क्या है?

वर्तमान में फूड एलर्जी का कोई इलाज नहीं है। मूंगफली की एलर्जी के लिए एपिनेफ्रीन से इलाज किया जाता है, जो श्वसन वायुमार्ग को शांत कर देती है। बाजार में कई डिवाइसेस उपलब्ध हैं, जिनसे मरीज एपिनेफ्रीन का इंजेक्शन खुद भी लगा सकते हैं। हालांकि इसके बाद भी मरीज को अस्पताल ले जाने की सलाह दी जाती है, ताकि जरूरत पड़ने पर और इलाज किया जा सके। वहीं एंटीथिस्टेमाइंस और एपिनेफ्रीन से न केवल एलर्जी बल्कि इसके लक्षणों का भी इलाज होता है। ताजा रिसर्च में अब एपिनेफ्रीन पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। ऐसा ही एक इलाज है ऑरल इम्युनोथेरेपी। थोड़ा-थोड़ा करके, डॉक्टर मरीज को एलर्जी पैदा करने वाला खाद्य पदार्थ देते हैं और एलर्जी से लड़ने की क्षमता पैदा करने की कोशिश करते हैं।

आम तौर पर एलर्जी रिएक्शन में एंटीजेन से लड़ने के लिए शरीर आईजीई एंटीबॉडीज बनाता है। ऑरल इम्युनोथेरेपी में मोनोक्लोनल नामक इन्हीं एंटीबॉडीज का इस्तेमाल करने का विचार है, क्योंकि ये उन्हीं प्रतिरक्षा कोशिकाओं से बने हैं, जो एलर्जी वाली चीज खाए जाने पर प्रतिक्रिया करती हैं। इसका उद्देश्य प्रतिरक्षा कोशिकाओं (बासोफिल या मास्ट सेल्स) को बांधे रखना है, ताकि वे और अधिक विपरीत प्रतिक्रिया न दें।

इस साल के शुरू में साइंस जर्नल द लानसेट में प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि बच्चो में ऑरल इम्युनोथेरेपी एक सीमा तक ही असर करती है। अपने विश्लेषण में अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि इससे ऐनफलैक्टिक रिएक्शन का खतरा और इसके बार-बार अटैक करने की आशंका बढ़ जाती है।

कुल मिलाकर एलर्जी के खिलाफ लड़ाई की ये शुरुआत है। वैज्ञानिकों को हर दिन यह ज्यादा समझ आ रहा है कि प्रतिरक्षा प्रणाली कैसे काम करती है। एलर्जी की न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में जड़े मजबूत हैं, लेकिन डॉक्टर लगातार इसका इलाज खोजने की कोशिश कर रहे हैं।