उज्जैनमध्य प्रदेश

प्रशांत अंजाना की खास रपट

भोजन-राशन वितरण पर अंकुश … पार्षदों को किया बाहर- सामाजिक संस्था अंदर
उज्जैन। सोमवार को बिगडी भोजन वितरण व्यवस्था को सुधारने के लिए कदम उठाये गये है। इसमें चल रही राजनीति को खत्म करना पहला कदम है। अब वितरण व्यवस्था से पार्षदों को बाहर कर दिया गया है। वितरण करने वालों को अब सुरक्षा और जैकेट दी गई है। वाहन भी उपलब्ध कराने का वादा है। इसके साथ ही सबसे कठोर निर्णय यह लिया गया है कि … जिनके घर में है चूल्हा- उनको भोजन अब नहीं देना।
समाचार लाईन डाटकॉम की खबर पर प्रशासन जागा है। आज से भोजन वितरण व्यवस्था प्रशासन के हाथों में वापस आ गई है। भोजन के सहारे राजनीति कर रहे, पार्षदों को अब बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। वितरण का काम अब प्रशासन अपनी देखरेख में करवायेगा। सहयोगी सामाजिक संस्थाओं के कार्यकर्ता होंगे। इससे प्रशासन को दोहरा लाभ होगा। पहला लाभ, भोजन पैकेट की बढती संख्या पर अंकुश लगेंगा? दूसरा लाभ यह कि … सत्ता के नशे में चूर धमकियों से निजात मिल गई है।

यह था खेल …
हमने लिखा था कि … भोजन वितरण में फेल- प्रशासन का देखों खेल। अब यह खेल क्या था। इसका खुलासा आज करते है। पार्षदगण दादागिरी से पैकेट ले रहे थे। मगर, उन गरीबों के लिए नहीं, जिनको जरूरत थी। वोट बैंक के लिए उनको भोजन दिया जा रहा था। जिनके घर में चूल्हा भी है और राशन भी। दानदाताओं और प्रशासन के खर्च पर राजनीति कर रहे थे। अगले चुनाव के लिए। आज इस व्यवस्था पर अंकुश लग गया। अंकुश की पुष्टि खाद्य आपूर्ति नियंत्रक मोहन मारू ने भी की है।

चूल्हा- चौका …
पार्षदों को बाहरकरने के साथ ही प्रशासन ने एक और कदम उठाया है। पक्के घर और चूल्हा-चौके वालो को अब किसी भी हाल में भोजन नहीं मिलेगा। इन सभी को पहले ही खाद्य सामग्री शासकीय दुकान से दी गई है। अभी तक इनको मुफ्त का भोजन पार्षदों के कारण मिल रहा था। अब नवगठित निरीक्षण समिति ने इस पर अंकुश लगा दिया है। अब केवल बेसहारा/ बेघर को ही भोजन मिलेगा। इसकी संख्या शहर में 5 हजार भी नहीं होगी। जबकि अभी तक 15 से 25 हजार पैकेट वितरित हो रहे थे। अपर कलेक्टर जीएस डाबर की अध्यक्षता में समिति बना दी गई है। 9 सदस्य है। जो अब इस वितरण व्यवस्था पर नजर रखेंगे। समिति में सोजानसिंह रावत, मनोज पाठक, मोहन मारू, भविष्य खोब्रागडे, कीर्ति मिश्रा, एसआर बरडे, दीपा टटवाडे, बीएस देवलिया और बसंत शर्मा शामिल है।

ध्यान दीजिए …
प्रशासन को उन सभी की चिंता है। जो बेजुबान नहीं है। मगर, बेजुबान जानवरों की चिंता नहीं है। स्ट्रीट- डॉग और गाय तो कही ना कही से पेट भर रहे है। असली मुसीबत उन पेट्स की है। जो लाकडाउन के कारण दुकानों में बंद है। फ्रीगंज और पुराने शहर में मिलाकर करीब 1 दर्जन दुकानें है। प्रशासन को केवल यह करना है कि … किसी एक दुकानदार को पकडकर, सभी दुकानदारों का न बर लेकर संदेश भेज दे। 30 मिनिट की छूट मिल जाये। इन बेजुबानों को भी इनके मालिक भोजन डाल देंगे। इन बेजुबानों की दुआ भी प्रशासन को मिलेंगी।

दुआएं…
भले ही पार्षदों को बेघरों की चिंता नहीं थी। सब अपनी-अपनी राजनीति रोटियां सेंक रहे थे। मगर, प्रशासन को चिंता थी। उसको जहां-जहां से खबर मिली। उसने जैसे-तैसे कल भोजन व्यवस्था करी। विराट नगर में करीब 16 लोग फंस गये है। उनका पता चलते ही भोजन भिजवाया गया। इसी तरह एसडीएम घट्टिया ने मैसेज किया था। सडक़ पर 85 लोग भूखे बैठे है। दोपहर 4 बजे मैसेज किया। शाम 7:45 पर भोजन पैकेट पहुंंच गये। यूपी के 16 लोगों को भोजन मिलने पर, अंजान व्यक्ति ने खाद्य आपूर्ति नियंत्रक को दूरभाष पर धन्यवाद भी दिया और कहां कि … इनको रोज भोजन मिल जाये तो सभी की दुआएं मिलेगी।

 

सील …


इधर आज रोजाना की तरह सुबह 6 से 1 बाजार खुले थे। आम जनता रोजाना की तरह खरीदी पर निकली। प्रशासन, जनता और दुकानदारों से सोशल- डिस्टेंसिंग की लगातार अपील कर रहा है। दुकानदार को इसका पालन करवाना अनिवार्य है। मगर, झूलेलाल बेकरी के संचालक इसका पालन नहीं कर रहे थे। नतीजा तहसीलदार पूर्णिमा सिंघी, जिनको कोरोना प्रभावित जांसापुरा में लगा रखा है। उन्होंने तत्काल कार्यवाही करते हुए झूलेलाल बेकरी को सील कर दिया।

एडीएम समझा रहे है,
दूर-दूर है सोना- इसका नाम है कोरोना
उज्जैन। प्रशासनिक अधिकारियों को कोरोना से बचाव के लिए यह रास्ता भी अपनाना होगा। यह उन मजदूरों और फुटपाथ पर सोने वालो के लिए होगा। इनको सोशल- डिस्टेंस का मतलब समझाना होगा। सोमवार की रात को जिले के एडीएम यही करते नजर आये।
प्रशासन के भोंपू वाले वाहन, भले ही दिनभर चिल्ला-चिल्ला कर संदेश दे रहे है। आम जनता से गुहार लगा रहे है। 1 मीटर की दूरी बनाकर रखे। ताकि कोरोना के प्रभाव से बचा जा सके। मगर, यह संदेश शायद उन मजदूरों तक पहुंच नहीं रहा या फिर उनकी समझ में नहीं आ रहा है। तभी तो सोमवार की रात को एडीएम आरपी तिवारी को मजदूरों को सोशल डिस्टेंस का मतलब समझाने के लिए अपने वाहन से उतरना पड़ा.

यह नजारा सोमवार की रात 11 बजे बाद का है। एडीएम दवा लेने आये थे। फ्रीगंज के एक अस्पताल के सामने अपने वाहन में बैठे थे। उनका नगर सैनिक दवा लेने गया था। अचानक उनकी निगाह सामने की खाली जगह पर पडी। जहां पर करीब आधा दर्जन मजदूर झुंड बनाकर अपने-अपने बिस्तर लगा रहे थे। एडीएम ने तत्काल सैनिक को भेजा। हिदायत दी कि … दूरी बनाकर अपना-अपना बिस्तर लगाये। सैनिक आदेश सुनकर मजदूर आश्चर्य में पड गये। मजदूरों ने सवाल किये। यह देखकर एडीएम खुद मजदूरों को समझाने पहुंच गये। उनका सवाल था कि … कहां से आये हो? जवाब मिला कि … यहीं सराय पर मजदूरी के लिए खड़े रहते है। इस पर एडीएम ने सभी के बिस्तर 1-1 मीटर से ज्यादा दूरी पर अपनी देखरेख में लगवाये। जिसके बाद वह रवाना हो गये।