कोरोना वायरस महामारी की वजह से हुए लॉकडाउन से कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों में कोई कमी आई हो, ऐसा नहीं लगता है. मेडिसिन के क्षेत्र में देश के सबसे प्रतिष्ठित एक्सपर्ट्स का कहना है कि पाबंदियों ने सिर्फ मरीजों का अस्पतालों में आना ही कुछ हद तक रोका है.
- देश में कोरोना वायरस के संकट के कारण 21 दिनों का लॉकडाउन
- सड़कें बंद होने की वजह से ट्रॉमा केस में कमी: डॉ. त्रेहान
एक अरब तीस करोड़ लोगों का देश भारत मार्च के आखिर में थम गया, तब से इसके हवा में घुले जहर (प्रदूषण) में कमी देखी गई है. साथ ही नदियों के पानी में भी सुधार साफ देखा जाने लगा. वहीं, देश के टॉप मेडिकल एक्सपर्ट्स ने पाया कि आबोहवा के साफ होने से दमे और एलर्जी के मरीजों की सेहत में भी सुधार आया है.
लेकिन ये एक्सपर्ट्स कहते है कि ये मापने का कोई पक्का पैमाना नहीं कि दिल के मरीजों के लॉकडाउन में कम अस्पताल आने का जुड़ाव दिल की बीमारियों के कम होने से किया जाए. 2018 की एक लैंसेट स्टडी के मुताबिक वर्ष 2016 में भारत में कुल मौतों में से 28% कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों की वजह से हुई. जबकि 1990 में ये आंकड़ा सिर्फ 15% ही था.
कोरोना वायरस महामारी की वजह से हुए लॉकडाउन से इनमें (कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों) में कोई कमी आई हो, ऐसा नहीं लगता है. मेडिसिन के क्षेत्र में देश के सबसे प्रतिष्ठित एक्सपर्ट्स का कहना है कि पाबंदियों ने सिर्फ मरीजों का अस्पतालों में आना ही कुछ हद तक रोका है.
इमरजेंसी रूम में मरीजों में कमी
मेदांता के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. नरेश त्रेहान कहते हैं, ‘अभी भी हमारे पास कम से कम 60-70% मरीज आ रहे हैं. हर तरह के इमरजेंसी केस भी आ रहे हैं- दिल का दौरा, आंतों में रूकावट, कैंसर मरीज या किसी अन्य संक्रमण की वजह से प्रभावित लोग. हमारे पास अब भी काफी मरीज हैं. लेकिन वो सब अलग-अलग बीमारियों के हैं. लेकिन हां, पहले जब हम इमरजेंसी रूम में एक दिन में 150 मरीजों को देखते थे, आज 70-80 को ही देख रहे हैं.’
डॉ. त्रेहान के मुताबिक सड़कें बंद होने की वजह से अब ट्रॉमा केस जरूर कम आ रहे हैं. डॉ त्रेहान ने कहा, ‘सड़क हादसों के करीब 20 फीसदी मरीज अब यहां नहीं हैं. ये अच्छी बात है कि ऐसे मरीज यहां नहीं हैं.’
एक और जाने माने कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. समीर गुप्ता ने इंडिया टुडे को बताया कि अधिकतर दिल के मरीज लॉकडाउन की पाबंदियों की वजह से या तो आसपास ही इलाज करा रहे हैं या खुद ही दवाएं लेने का ध्यान रख रहे हैं. डॉ. गुप्ता के मुताबिक कुछ मरीज कोरोना वायरस के संक्रमण के डर से भी अस्पताल आने से बच रहे हो सकते हैं.
डॉ. गुप्ता ने कहा, ‘मैं पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि वो (दिल के मरीज) अस्पताल आने में समर्थ हैं. हो सकता है कि वो लोकल केयर या खुद ही दवाएं ले रहे हों. मैं यकीन के साथ नहीं कह सकता कि अस्पतालों में लोगों के कम आने से दिल के दौरों की असल संख्या में कोई बहुत ज्यादा कमी आई है.’
एलर्जी के मरीजों को राहत
मेडिकल एक्सपर्ट्स मानते हैं कि लॉकडाउन की वजह से हुई साफ आबोहवा ने दमा और एलर्जी के मरीजों को जरूर राहत पहुंचाई है. ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया के मुताबिक ऐसे लोगों को अब सांस लेने में पहले की तुलना में कहीं सुधार हुआ है.
एम्स जैसे अस्पतालों ने अपने नियमित मरीजों तक पहुंचने के लिए टेलीकॉन्फ्रेंसिंग के जरिए स्पेशल हेल्पलाइन्स की शुरुआत की है. डॉ. गुलेरिया मानते हैं कि गैर-संक्रामक बीमारियों वाले ऐसे मरीजों को सलाह देना अहम है जो लॉकडाउन की वजह से अस्पताल नहीं आ सकते.