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मौजूदा हालातो से मध्यमवर्गीय समुदाय को उभर पाने के लिए भारत सरकार को कुछ फैसले अवश्य लेने चाहिए- अक्षय जैन

विश्वव्यापी कोरोनॉ महामारी के कारण समूचा विश्व महामारी से परेशान है। इस महामारी ने भारत की आर्थिक कमर तोड़ कर रख दी है। खासकर मध्यमवर्गीय समुदाय पूरी तरह टूट सा गया है । कोरोना वायरस के बाद परेशानी एक सेक्टर में नहीं सभी व्यापारिक आर्थिक और सामाजिक सेक्टर में है। सामाजिक रूप से सरकार गरीबों के उत्थान के लिए काफी कुछ कर रही है , भारत के 25 करोड़ लघु मध्यम और फुटकर व्यापारी सरकार के साथ खड़ा रहा हैं। लेकिन सरकार की नीतियों में केवल कृषक , गरीब दलित शोषितवर्ग जीवन उत्थान की बाते झलकती है । कड़वी सच्चाई यह है कि मध्यमवर्गीय समुदाय हर परिस्थिति में कमजोर दर कमजोर होता चला जा रहा है । अब इस वर्ग की स्थिति भयवाह हो गई है । सरकार ने अफसरों ने राजनीतिक दलों ने ओर भारत की मीडिया ने इस दिशा में अपना रुख नही दिखाया तो स्थिति बड़ी विस्फोटक होगी।

सभी चैनल्स की डिबेट में सिर्फ महामारी के संदर्भ में नेगेटिव ज्यादा बता रहे हैं ऐसा लगता है। मानसिक रूप से लोगों को तैयार करें कि वह आगे तैयारी करें प्रगति की, स्वास्थ्य की प्रगति, देश की प्रगति, समाज की प्रगति इस बारे में डिबेट बताएं
क्यों ना हम एक आंदोलन इस बीमारी के विरोध में खड़ा करें कि यह बीमारी कैसे आई कहां से आई और क्या हुआ अब आगे क्या करना है।

जहां तक भारत की परिस्थिति की बात है भारत में अधिकतर या तो छोटे व्यापारी या छोटी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की इकाई या नौकरी पेशा मजदूरों का देश है। हम जब तक मध्यम्वर्गि सेक्टर को आगे नहीं बढ़ाएंगे तब तक देश आगे नहीं बढ़ पाएगा। यह बात देश के सर्वोच्च पद पर बैठे व्यक्ति को अवगत होना चाहिए क्योंकि मध्यम्वर्गि मनुफैक्चरिंग सेक्टर पैसे की कमी के कारण, ब्याज की मार के कारण, डिमांड की कमी के कारण कई परेशानियों से जूझ रहा है। आज मध्यम वर्गीय ईकाईया पर यह परेशानी है कि वह आरम्भ कैसे करें या रखें। हम सरकार से गुजारिश करते हैं सरकार इस सेक्टर पर विशेष ध्यान दें। इनकी आर्थिक स्थिति को देखते हुए या तो फंडिंग बढ़ाई जाए या कुछ राहत दी जाए फंडिंग बढ़ाने पर भी ब्याज की मार कम से कम हो इस बात को सुनिश्चित रखें। अगर यह सेक्टर आगे नहीं बढ़ा तो हिंदुस्तान की जीडीपी कभी भी आगे नहीं बढ़ पाएगी। हम पिछले पांच वर्षों से यही देख रहे हैं कि मध्यमवर्गीय ईकाईया समाप्ति की ओर है या कमजोर हुई है।
सरकार अगर चाहती है कि यह ईकाईया चलें और देश मजबूत हो तो उनकी पॉलिसी में यह बात भी होना चाहिए कि २ या ३ प्रतिशत के लोन पर पूरे विश्व में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर खड़ा है और हमारे यहां १० से १५ प्रतिशत का लोन है। क्या हम १० से १५ प्रतिशत के लोन पर ब्याज देकर कॉम्पटीटिव प्रोडक्ट बना सकते हैं। अगर उत्तर नहीं है तो फिर हम इंपोर्ट बिल कैसे कम करेंगे तथा विश्व के उत्पादन का हम अपने देश में कैसे उत्पादन शुरू कर पाएंगे। इसका मतलब सरकार यह नहीं चाहती कि मध्यमवर्गीय ईकाईया कॉम्पटीटिव प्रोडक्ट बनाकर आगे बढ़े। अगर चाहती है तो तुरंत MSME सेक्टर को कम ब्याज पर ज्यादा लोन हो ताकि गुणवत्ता के हिसाब से हम अच्छा प्रोडक्ट विश्व के सामने रख सकें।

सरकार एक जन आंदोलन खड़ा करें की हमें किसी भी रूप में अब इंपोर्ट बिल कम करना है इस इंपोर्ट बिल को कम करने के जो तरीके हैं उस पर गंभीरता से विचार होना चाहिए क्यों ना हम PPE मॉडल के तहत नई ईकाईया खड़ी करें या कारपोरेट के तहत नहीं इकाइयां खड़ी करें सरकार 24×7 बोलती है लेकिन होता नहीं है।कई परमिशन कई-कई माह तक नहीं मिलती है। स्वयं प्रधानमंत्री इस कार्य को अपने हाथ में लेकर तीन दिन की अवधि में क्लीयरेंस लेटर देना चाहिए ताकि जल्द से जल्द उत्पादन देश में ही हो जब देश का उत्पादन देश में ही कंज्यूम होगा, तो इंपोर्ट बिल भी कम होगा, जिसके कारण देश में रुपया मजबूत होगा अब हम उस मुकाम पर खड़े हैं कि हम अपने उत्पाद को अपन ही कंज्यूम करें तो उस पर भारत पूरे विश्व पर यह बताने में सक्षम होगा कि हम आत्मनिर्भर हैं।

टेक्सटाइल और गारमेंट मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की परेशानी काफी ज्यादा है। गारमेंट मैन्युफैक्चरर के पास में पूंजी नहीं है कि वह अब व्यापार कर सके उसकी पूंजी उधारी के रूप में फंसी हुई है। रिटेल की हालत पिछले ५ सालों से वित्तीय रूप से बहुत ही खराब है रिटेल में बिजनेस नहीं है जिसके कारण रिटेलर दुकान के खर्चे भी पूरे नहीं निकाल पा रहा है जिस कारण वह जो माल बिकता है उसी रूप में वह खर्चा वह खर्चे के रूप में जाता है। गारमेंट मैन्युफैक्चर तक उधारी का पेमेंट नहीं कर पाता है गारमेंट मैन्युफैक्चरर के पास अब इतनी पूंजी नहीं कि वह अपने प्लांट को सुचारू संचालित कर सके, वह मजदूरों को रोजगार दे सके समस्या रिटेल मजदूर और मैन्युफैक्चरिंग व्यापारियों की सम्मिलित रूप से विकराल रूप ले रही है अभी गारमेंट्स बिजनेस के निर्माताओं ओर विक्रेताओं के पास लॉक डाउन के बाद क्या करना है यह सवाल खड़ा हो गया है ? ऐसा कोई उद्देश्य नहीं बिगर उद्देश्य जीवन जीना कितना कठिन है व्यापारियों की मनोदशा किसी को बता नहीं पा रहा है शासन स्तर से कुछ ऐसा होना चाहिए जिससे व्यापारियों को उसकी उधारी वापस मिलना शुरू हो और वह इकाइयों को संचालित कर सकें या तो सरकार बिना ब्याज के पूंजी देवे ताकि हम लोगों को रोजगार दे सकें या उन्हें 2 वर्षों तक टेक्स मुक्त बिजनेस का अधिकार देवे ।

जिस व्यक्ति के पास घर नहीं है उसे या तो इनकम टैक्स में या जीएसटी की माफी के रूप में कुछ भी प्रोत्साहित राशि दी जाए। जिसके कारण मकान संबंधित कार्य करने वाले लोगों को रोजगार मिल सके। व्यक्ति का मकान होगा मजदूर को मजदूरी होगी, व्यापारी का व्यापार होगा और कंपनियों का प्रोडक्ट बिकेगा इसके तहत कुछ तो अब करना ही होगा आपका सपना है सब का अपना घर होना चाहिए अब इस विषय पर बहुत गंभीरता से सोचना ही होगा क्योंकि इस सेक्टर में करीब 20 करोड़ लोग जुड़े हुए हैं जोकि अभी कोरॉना महामारी के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित रहेगा इसीलिए आपको इस सेक्टर पर विशेष ध्यान देना ही होगा आपका अगर इस सेक्टर पर विशेष ध्यान रहेगा तो आप कई लोगों को बेरोजगार होने से बचा लेंगे। प्रधानमंत्री जी, देश आपको आशा और विश्वास के साथ देख रहा है। आपका अब सभी व्यापारियों को, मजदूरों को, गरीब को, शोषित को, वंचित को कुछ ना कुछ करके देना ही होगा।

चाइना का इंपोर्ट बिल ४५ लाख करोड़ रूपया है। अगर भारत में सिर्फ 5 सेक्टर पर ही मैन्युफैक्चरिंग शुरू की जाए इलेक्ट्रॉनिक, फर्नीचर, टाइल्स, केमिकल, प्लास्टिक का समान को जल्द से जल्द उत्पादन को शुरू कर दिया जाए, तो हमारे देश के वैज्ञानिक डॉक्टर, रिसर्च एंड डेवलपमेंट, आईटी, एमबीए, व्यापारी वर्ग के साथ में मजदूर श्रेणी के कई करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा तथा हमारा देश स्वयं के उत्पाद पर आत्मनिर्भर भी होगा। समय आ चुका है कि हम अब इंपोर्ट बिल के बारे में जरूर सोचें कि अगर इतना इंपोर्ट बिल रहेगा तो हम उसके दूसरे रूप में डॉलर कितना खर्च कर रहे हैं। क्यों न प्रधानमंत्री जी अभी इन ५ सेक्टर को जल्द से जल्द शुरू कराएं ताकि हमें जो कोरोना महामारी से व्यापारिक नुकसान हो रहा है उसको कुछ कम कर सकें।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार चिंतक और
प्रवक्ता मध्यप्रदेश गारमेंट्स एसोसिएशन है)