कारोबार

कोरोनो वायरस से चीन को मैन्युफैक्चरिंग में कैसे लगेगा झटका?

भारत के पास विश्वसनीय विकल्प के रूप में उभरने का एक अच्छा मौका है, जहां मैन्युफैक्चरिंग के लिए माकूल हालात के साथ ही बहुत बड़ा उपभोक्ता बाजार भी है.

  • भारत के पास विकल्प के तौर पर उभरने का मौका
  • अब नए विकल्पों की ओर देख रहीं कंपनियां

चीन Covid-19 महामारी के बाद ग्लोबल इकोनॉमिक ऑर्डर में दुनिया के सबसे बड़े मैन्युफैक्चरिंग हब की अपनी हैसियत खो सकता है. एक विश्लेषण में इसकी वजहों को बताया गया है. मसलन, श्रम की बढ़ती लागत, कर्मचारियों की कमी, संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ कारोबारी जंग, साउथ ईस्ट एशिया में नए मैन्युफैक्चरिंग हब सामने आना और इन सबसे ऊपर ये महामारी, जिसने चीन की जमीन से ही सिर उठाया और पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया.

दूसरी ओर, भारत के पास विश्वसनीय विकल्प के रूप में उभरने का एक अच्छा मौका है, जहां मैन्युफैक्चरिंग के लिए माकूल हालात के साथ ही बहुत बड़ा उपभोक्ता बाजार भी है. चीन वस्तुओं के सबसे बड़े निर्यातक के तौर पर अमेरिका, जर्मनी और जापान से वर्षों तक आगे बना रहा, जब तक कि बीजिंग और वाशिंगटन के बीच आर्थिक शीत युद्ध शुरू नहीं हुआ और उसमें तेजी नहीं आई.

जनवरी, 2019 से, चीनी निर्यात में लगातार कमी आ रही है. दोनों राष्ट्रपतियों यानी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को सख्त दिमाग वाले नेता के तौर पर देखा जाता है, इसलिए कहना मुश्किल है कि कौन पहले झुकेगा?

लेकिन जो बात लगभग तय दिख रही है, वह यह है कि दुनिया भर की कंपनियां किसी का भी पक्ष लेने से बचना चाह रही हैं, साथ ही चीन और वहां स्थित मैन्युफैक्चरिंग पर अपनी निर्भरता कम करना चाहती हैं.

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2019 से हुई शुरुआत

कोरोनावायरस महामारी ने जिस बात को इस साल रफ्तार दी, उसका आगाज 2019 के शुरू में ही हो चुका था. तभी रिको, सोनी और एसिक्स कॉरपोरेशन जैसी जापानी कंपनियों ने अपनी उत्पादन इकाइयों को चीन से दूर शिफ्ट करने की ओर रुख किया. ऐसा उन्होंने अमेरिका के कारोबारी शुल्क से बचने के लिए किया. रिको ने बीते साल जुलाई में प्रिंटर उत्पादन को शेनजेन से थाईलैंड में शिफ्ट किया.

नाइकी जैसी अन्य सप्लाई चेन पर निर्भर कंपनियों ने भी अपने ठिकानों को वियतनाम, थाईलैंड या अन्य साउथ ईस्ट एशियाई देशों में शिफ्ट करने की संभावनाओं का पता लगाया. पैनासोनिक की तिमाही आय की घोषणा करते हुए इसके सीएफओ हिरोकाजु उमेदा ने ऐलान किया कि कंपनी सक्रिय रूप से चीन के बाहर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का उत्पादन करने के विकल्प देख रही है.

अधिकतर कंपनियों का इरादा चीन से पूरी तरह से बाहर निकलने का नहीं था, लेकिन निर्भरता कम करने के लिए वो साउथ ईस्ट एशियाई देशों में छोटी यूनिट्स की तरफ देख रही थीं. इन जापानी फर्मों का अनोखा सेलिंग पाइंट आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और IoT – (इंटरनेट ऑफ थिंग्स) का समावेश, उपकरणों का एक विशाल नेटवर्क और इंटरनेट से लोगों के साथ जुड़ाव रहा है.

IoT कॉन्सेप्ट ने कंपनियों को वर्कफोर्स की कमी से पार पाने में मदद की और और उन्हें चीन की तुलना में सस्ते लेबर फैक्टर पर कम निर्भर किया.

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Covid-19 महामारी

अब, जबकि Covid-19 महामारी की प्रचंडता को पूरी दुनिया देख रही है, ऐसे में मैन्युफैक्चरिंग और सप्लाई चेन हब के तौर पर चीन से बचने के विचार ने फिर जोर पकड़ा है. शायद पहले से भी ज्यादा मजबूती के साथ. जो लोग महसूस करते थे कि कारोबार युद्ध एक अस्थायी झपकी होगा, वे अब ज्यादा निश्चित हैं कि एक राष्ट्र यानी चीन पर अधिक निर्भर नहीं रहना है.

ऑटो-इंडस्ट्री के मोर्चे पर, जापानी कार निर्माता कंपनी माज्दा ने अपनी प्रोडक्शन लाइन में कम से कम बाधा सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाया. इसने महामारी के प्रकोप के बीच में ही चीन में जिआंगसू प्रांत से अपने उत्पादन का एक हिस्सा मैक्सिको के गुआनाजुआतो में शिफ्ट कर दिया. इस कदम से शुरुआत में अधिक खर्च बेशक दिखे, लेकिन दीर्घकाल के लिए ये फायदेमंद हो सकता है.

इस तरह की स्थितियों का सामना करने के लिए उत्पादन और आपूर्ति लाइनों में विविधता लाना अच्छी कारोबारी समझ का प्रतीक है. ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में, चीन को थाईलैंड, बांग्लादेश, वियतनाम और फिलीपींस जैसे छोटे देशों से उनकी कम लेबर लागत की वजह से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा.

कंपनियां अपने भविष्य की योजनाओं का खाका बना रही हैं, जापान सरकार ने हाल ही में जापानी उत्पादकों के लिए 2.2 अरब डॉलर के स्टिमुल्स पैकेज का ऐलान किया, जिससे कि वो अपनी प्रोडक्शन लाइन्स को चीन से हटाकर दोबारा जापान में लाएं.

दो प्रमुख व्यापारिक साझीदारों के बीच संबंधों में बदलाव के तौर पर जापान कंपनियों को छोटे पैमाने पर अन्य पड़ोसी देशों में शिफ्ट करने में भी मदद करेगा. जापान सरकार हाई वैल्यू-एड प्रोडक्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग चीन से जापान शिफ्ट करने की जरूरत पर भी विचार कर रही है और अन्य उत्पादन इकाइयों को साउथ ईस्ट एशिया के अन्य स्थानों पर ले जाने पर भी उसका जोर है.

भारत के लिए एक अवसर

साउथ ईस्ट एशिया जोन में छोटे देशों के अलावा, कंपनियां भारत को भी चीन के एक विकल्प के तौर पर देख सकती हैं. खास तौर पर वो कंपनियां जो बड़े पैमाने पर मैन्युफैक्चरिंग, सप्लाई चेन की उपलब्धता के साथ सरकार से रियायतें पसंद करती हैं.

भारत के पास अधिकतर वो चीजें हैं, जो चीन के पास हैं. साथ ही ये संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ मित्रतापूर्ण संबंधों वाला देश है. साथ ही, भारत भी चीन के बाहर शिफ्ट होने वाली कंपनियों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा होगा और Covid-19 के बाद के परिदृश्य में इसे विकास तेज करने के अवसर के तौर पर इस्तेमाल करेगा.

कई कंपनियां की रिपोर्ट बताती है कि वो पहले से ही अवसरों का पता लगाने के लिए विभिन्न स्तरों पर भारत सरकार के साथ संपर्क बना रही हैं. इससे एशिया और अन्य जगहों पर मौजूद राजनीतिक गतिशीलता में भी बदलाव आएगा.

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के मेक-इन-इंडिया कार्यक्रम के हिस्से के रूप में, सरकार ने प्रोत्साहन प्राप्त करने वाली फर्मों की कॉर्पोरेट टैक्स दरों को 35 प्रतिशत से घटाकर 25.17 प्रतिशत कर दिया और जिन कंपनियों को प्रोत्साहन या छूट प्राप्त नहीं हुई है, उनकी दरें 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत कर दी. ये कदम घरेलू मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात को बढ़ाने के उद्देश्य से उठाया गया.

मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में भारत को होने वाले प्रमुख लाभ में से एक यह है कि यहां तैयार उत्पादों को बेचने के लिए एक बहुत बड़ा बाजार है. साउथ ईस्ट एशिया के छोटे देशों में मैन्युफैक्चरिंग का मतलब होगा कि उन्हें वहां से संभावित खरीदार बाजारों में शिपमेंट करना होगा.

भारत अपने मोबाइल फोन निर्माण की मेक-इन-इंडिया सफलता को अन्य उद्योगों में भी दोहरा सकता है. भारत अब देश में बिकने वाले मोबाइल फोन के बड़े हिस्से का खुद ही उत्पादन करता है. इसे कंप्यूटर और चिपसेट जैसे अन्य उद्योगों तक बढ़ाया जा सकता है.

पॉजिटिव पूर्वानुमान

वर्ष 2020 में भारत के लिए आईएमएफ ने पॉजिटिव विकास दर की भविष्यवाणी की है. ऐसे में भारत के लिए आगे देखने को सकारात्मक बहुत कुछ है.

हाल ही में UBS मार्केट रिपोर्ट में भारत को उन कंपनियों के लिए एक टॉप विकल्प के रूप में चिह्नित किया गया है, जो चीन से बाहर शिफ्ट हो रही हैं. इस रिपोर्ट में उद्योग जगत से 500 वरिष्ठ अधिकारियों का सर्वेक्षण किया गया, जिन्होंने महसूस किया कि चीन-अमेरिका कारोबारी युद्ध कंपनियों को शिफ्ट करने का एक अहम कारण है. कोरोनो वायरस परिदृश्य इन भावनाओं को और मजबूत कर रहा है.

बेल्ट एंड रोड पहल

क्या यह सब चीन के लिए राजस्व का बड़ा नुकसान करेगा? शायद तुरंत नहीं. चीन इस संभावित पलायन के लिए तैयार लगता है. कई चीनी कंपनियां खुद ही विविधता ला रही हैं और चीन के बाहर अपनी प्रोडक्शन लाइन्स को ले जा रही हैं. यह बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) के कारण है. इसे आधुनिक सिल्क रूट भी कहा जाता है, जो एशिया, यूरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीका में फैला है.

चीन और अन्य देशों की ओर से हस्ताक्षरित समझौते, जो BRI का हिस्सा हैं, यह सुनिश्चित करते हैं कि चीनी मैन्युफैक्चरिंग हब दुनिया भर में स्थापित करते हैं. उदाहरण के लिए, चीनी कंपनियों के पास इंडोनेशिया में स्टील-मैन्युफैक्चरिंग प्लान्ट्स हैं. इसलिए भले ही निर्यात इंडोनेशिया का होगा, फिर भी चीन को राजस्व प्राप्त होगा. घर पर बढ़ती लेबर लागत के साथ, चीन के प्लान्ट्स खुद ही ऑपरेशन कहीं और ले जा रहे हैं.

एक नया वर्ल्ड ऑर्डर

Covid-19 के बाद के परिदृश्य में बड़ा बदलाव एकाधिकार नहीं, बल्कि धन और संसाधन का विविधीकरण होगा. SEA और ASEAN बेल्ट के देशों के पास इस नए वर्ल्ड ऑर्डर में आगे बढ़ने और चीन को पकड़ने का अच्छा मौका है. दूसरी ओर, अमेरिका के पास चीन पर अपनी निर्भरता कम करने का लाभ है, जो उसके लिए राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक रूप से बड़ा बढ़ावा होगा.