My Blogsप्रकाश त्रिवेदी की कलम से

आर.डी. गार्डी मेडिकल कॉलेज… आखिर समस्या की जड़ कहाँ है ?

उज्जैन। वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यकार रमेशचंद्र शर्मा के कोरोना संक्रमित होने के बाद एक बार फिर मेडिकल कॉलेज की व्यवस्थाओं और सुविधाओं पर प्रश्न उठना शुरू हो गए।

कॉलेज के कोरोना वार्ड में शिफ्ट करने के बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर व्यवस्थाओं और उपचार को लेकर लगातार पोस्ट डाली। उनके पोस्ट डालने के बाद मीडिया और उनके शुभचिंतकों ने अपनी सक्रियता दिखाई और उन्हें मेडिकल कॉलेज से पीटीएस में भेज दिया गया।
सवाल उठना लाजमी है कि आखिर मेडिकल कॉलेज के प्रबंधन में या प्रशासनिक ऑब्जर्वेशन में कहाँ कमी है जो कोविड 19 के शुरुआती दिनों से ही यह संस्थान बदनाम हो गया है।

गहराई से पड़ताल करने पर पता चलता है कि समस्या की जड़ में व्यवस्थागत खामियां है,जिन्हें ठीक किया जा सकता है।

बड़ी समस्या कोरोना वार्ड की साफ सफाई को लेकर है इसके लिए कर्मचारी भी है लेकिन वे इसे चलताऊ तरीके से ले रहे है, नगर निगम के सफाई कर्मचारियों से यहाँ सफाई कराई जा रही है। जबकि इस हाईरिस्क वार्ड में पुरी सफाई तीन या चार बार मैकेनिज्म होनी चाहिए।

जब आप प्रति कोविड मरीज अन्य राज्यो से ज्यादा खर्च कर रहे है तो फिर कमी क्यो? सेनेटाइजिंग और संक्रमणमुक्ति के लिए आधुनिक मशीन उपलब्ध है,शौचालयों के लिए भी अत्याधुनिक सफाई उपकरण उपलब्ध है तो उनका प्रयोग क्यो नही हो रहा है।

जब मेडिकल कॉलेज को कोविड19 का रेड हॉस्पिटल बनाया गया था तभी वार्ड की सुविधाओं का निरीक्षण किया जाना था। बाद में नए कलेक्टर आशीष सिंह और नोडल अधिकारी अपर कलेक्टर सुजान सिंह रावत ने व्यवस्थाएं तो ठीक की पर उनको नियमित नही रख पाए।
शौचालयों में नए दरवाजे लगाने में कोताही बरती गई,पानी की व्यवस्था भी लचर रही,मरीजो को गर्म पानी मिलना चाहिए नही मिल पा रहा है, भाप लेने की व्यवस्था नही है,हाथ धोने के लिए साबुन सेनिटाइजर तक कि समस्या है। पलंग पर साफ चादर की समस्या है। हालांकि यह समस्याएं बहुत आम है पर कोरोना की लड़ाई में ये कारगर हथियार भी है।

इन पर ध्यान नही देने के कारण ही हम संकट झेल रहे है।

जानकार बताते है कि प्रति मरीज यदि एक किट भर्ती के समय ही दे दी जाए जिसमे साबुन,सेनिटाइजर, आदि हो तो व्यवस्था में सुधार आ सकता है,संक्रमण रोकने के लिए दो बार चादर बदलना चाहिए। वार्ड के फर्श को भी तीन या चार साफ करना चाहिए। इसके अलावा नाश्ता-भोजन आदि की समस्या सामने आई है,इस पर कोरोना मरीज के लिए तय मेडिकल प्रोटोकॉल के अनुसार डाईट दी जानी चाहिए।

जिन समस्याओं के प्रति शर्मा जी ने आगाह किया है उन्हें थोड़े से प्रयास से ठीक किया जा सकता है। एक पक्ष यह भी है कि कर्मचारी नही मिल रहे है,सब कुछ नगर निगम पर नही छोड़ा जा सकता है,इसके लिए ट्रेंड और मैकेनाइज्ड व्यवस्था को ही काम पर लगाना होगा। कोविड वार्ड का वातवरण भी सकारात्मक रखा जाना चाहिए।

प्रशासन के साथ साथ देशभर में बदनामी झेल चुके कॉलेज पर प्रबंधन को भी अब जगाना चाहिए और कोरोना मरीजो की बेहतर देखरेख कर बदनामी के दाग को धोने का मौका नही छोड़ना चाहिए।

बहरहाल कोरोना मरीजो की आईसीएमआर प्रोटोकॉल के तहत देखभाल हो तभी हम रेड झोन से ग्रीन झोन में आ पाएंगे। कोरोना मरीज़ों के उपचार के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ और तय मानकों के अनुरूप ही सुविधाएं मिलना जरूरी है,कम से कम इस काम में प्रशासन को “फेवर” और इंगोरेन्स से बचना चाहिए।

प्रकाश त्रिवेदी

मध्यप्रदेश में कोरोना मरीज पर प्रतिदिन दो हजार से ज्यादा खर्च हो रहा है,फिर भी बुनियादी सुविधाओं की कमी अखरती है।
मरीज के उपचार और डाईट में अनियमितता का सामने आना दर्शाता है कि जिम्मेदार बाहरी व्यवस्थाओं से ही खुश है। मानवीयता,नैतिकता और जबाबदेही में कमी नजर आ रही है।