मन मे उठा एक संकल्प इतिहास को साकार करने की क्षमता रखता है, इसी संकल्प की जीती जागती मिसाल बुंदेलखंड केसरी महाराजा छत्रसाल की 52 फ़ीट ऊंची प्रतिमा है,जो उनकी कर्मभूमि मऊ सहानिया में सुदूर से नज़र आती है। झाँसी से छतरपुर राजमार्ग पर हरेक देशवासी खासकर बुंदेलखंडी का मस्तक अपने आप ऊंचा हो जाता है,जब उसे महाराजा छत्रसाल शोध पीठ द्वारा स्थापित शौर्य स्थल दिखाई देता है।
महाराजा छत्रसाल मध्यकाल के केवल राजे-महाराज नही थे,मुगल शासन के खिलाफ 52 युद्ध जीतने वाले शूरवीर भी थे। अपने जीते जी उन्होंने बुंदेलखंड को गुलाम नही होने दिया।
उनका लौकिक कार्य तो सब जानते है पर उनके आध्यात्मिक स्वरूप का परिचय प्रणामी सम्प्रदाय में मिलता है।
संभवतः वे कलयुग में ऐसे पहले महाराजा होंगे जिनकी जय देश-दुनिया मे प्रणामी मंदिरों में दिन में पांच बार बोली जाती है।
*राजी सब रैयत रहे,ताजी रहे सिपाही, छत्रसाल के राज में बाल न बांका जाई।*
महाराजा छत्रसाल ने अपने अलौकिक गुरु महामति श्री प्राणनाथ जी से परमधाम का तत्वज्ञान प्राप्त करने के साथ साथ शासन करने की लोकतांत्रिक पद्धति भी जानी और उसी के अनुरूप अपना शासन चलाया।
*छत्ता तेरे राज में धक-धक धरती होए।*
*जित जित घोड़ा पग धरे,उत उत हीरा होए*
महामति श्री प्राणनाथ जी ने उन्हें हीरे का वरदान दिया और कहाँ कि एक रात तुम्हारा घोड़ा जितना चलेगा उतने स्थान पर हीरा प्राप्त होगा। कहने का अर्थ यह है कि महाराजा छत्रसाल को उनके गुरु जिन्हें वे धामधनी कहते थे ने अध्यात्मिक शक्ति भी दी और ताकत और संसाधनों से भी सम्पन्न किया। महामति श्री प्राणनाथ जी ने उन्हें चमत्कारिक जुल्फिकार नामक तलवार प्रदान की थी।
मध्यकाल के इतिहास ने छत्रसाल जी के साथ न्याय नही किया। उनके समकालीन शिवजी,महाराणा प्रताप आदि को तो इतिहास ने तव्वजो दी लेकिन छत्रसाल जी के व्यक्तित्व औऱ कृतित्व का ईमानदारी से आकलन नही किया गया।
डॉ. पवन तिवारी,जयदेव बुंदेला और उनकी टीम ने महाराजा छत्रसाल स्मृति शोध संस्थान की स्थापना कर इस दिशा में अनुकरणीय कार्य किया है। उनकी 52 फ़ीट की प्रतिमा के सन्मुख जाकर जोश और जज्बा खुद ब खुद जागृत हो जाता है।
शोध संस्थान हर साल अनेक आयोजन करता है, साहित्यिक गतिविधियों का संचालन करता है,महाराजा छत्रसाल के जीवन पर केंद्रित साहित्य का प्रकाशन भी करता है।
हर साल महाराजा छत्रसाल की जयंती के उत्सव 5 दिन तक मनाया जाता है।
महाराजा छत्रसाल का आध्यात्मिक स्वरूप भी अदभुत था। उन्होंने तत्वज्ञान प्राप्त किया अनेक धार्मिक रचनाओं का सृजन किया और जब उनके गुरु महामति श्री प्राणनाथ जी पन्ना में अंतर्ध्यान हुए तब कुछ समय के बाद उनकी आत्मा भी गुरु मिलन को तड़फने लगी फलस्वरूप वे मुकरबा में अपने महल के पास ही अंतर्ध्यान हो गए।
महाराजा छत्रसाल स्मृति शोध संस्थान ने छत्रसाल जी के साथ जो अन्याय इतिहासकारों ने किया है उसको ठीक करने का जो बीड़ा उठाया है वो वाकई काबिले तारीफ है।
जिसके भी शरीर मे बुंदेलखंड का खून दौड़ रहा है उसे शोधपीठ के साथ जुड़कर तन मन धन से सहयोग करना चाहिए। महाराजा छत्रसाल की जय।
प्रकाश त्रिवेदी।