मध्य प्रदेश

बुन्देलखंड केशरी म्हाराजा छत्रसाल जू # देव की जयंती पर खास बुंदेली भाषा में

इंजी.सी.बी.त्रिपाठी नौगाॕव का आलेख

महाराजा छत्रसाल जू कौ जन्म ज्येष्ठ शुक्ल 3 संवत् 1706 को अंग्रेजी मईंना की तारीख 17 जून सन 1648 ईस्वी में एक छोटे से गाॅव “मोर पहाड़ी “में भव हतो इनकी माता जी को नांव लालकुवंरि और पिता जी कौ नांव चंपत राय हतो
फाग

बुन्देलखंड केशरी राजा छत्रसाल महाराजा
चंपत राय पिता थे जिनके लालकुवंरि सी माता
कवि बाणी और वीर पराक्रमी थे बेदों के ज्ञाता गौरव थे बुन्देलखंड के प्रजा के सुख दाता छञसाल जू के पिता जी बड़े वीर और साहसी बहादुर वयक्ति हते जिनकी धांक पूरे बुन्देलखंड में चलत हती इनकी माता जू लालकुवंरि पिता जी के संगै युद्ध करबे के लाने जात हतीं और कदम पै कदम संगै चलत हतीं राजा छत्रसाल जू बचपन सैं जो सब देखत रात ते और तलवारन के संगै खिलौना जानकैं खेलत रात ते और तलवारन से बडौ प्यार करत हते
एक भौतई पुरानौं दृष्टांत है जब छत्रसाल जू लगभग 6 माह के हते ओई समय खबरी नें खबर दई कै शत्रु लरवे के लानें आ रये हैं राजा और रानी सकते में आ गये और हड़बड़ी में छत्रसाल को उतईं छोड़ दओ और जब दूर निकर गये सो छत्रसाल की याद आई जहाँ छत्रसाल को छोड़ा था बहाँ से हजारों घोड़ा निकर गये हते राजा चिंता में पर गये और जब राजा ने कछू देर बाद खोजो तौ छत्रसाल खेलत मिले कात हैं की
*जाको राखे साइंयाॅ मार सके ना कोय*

माता लालकुवंरि देबी जू छञसाल जू खां धर्म और संस्कृति कीं किस्से कहानियां सुनाउत हतीं और छञसाल बड़े चाव सें सुनत हते राजा छञसाल जू ने अपने मम्मा के घरै रैकें अस्त्र और शस्त्र चलावौ सीखो और दस वरस की उमर में कुशल योद्धा बन गये हते
तनक सी उमर में छञसाल जू नें अनेक करतब दिखाये जिऐ देख कें बड़े बड़े योद्धा दांतन तरें अंगुलियां दवा लेत हते
फाग
*इत्ती छोटी वाल उमर में*
*कूंदन लगे समर में*
*राजा छत्रसाल जू छा गये*
*पूरे भारत भर में*
*खबर फैल गई गाॅवन गाॅवन*
*सबई जनन के घर में*
*सी बी त्रिपाठी छत्रसाल जू*
*आगे सबई हुनर में*

बढे पुराने बताउत हते जब छत्रसाल जू लगभग 9- 10 साल के हते उई समय इनके माता पिता कौ देहांत हो गओ हतो एक समय की बात आय की औरछा की रानी नें राजा चम्पतराय जू को पकरवे के लानें योजना बनाई और राजा और रानी को चारूऊं ओर सें घेर लओ राजा भौतई बीमार हते सो भग नईं पाये जब रानी नें देखो की अब शत्रु हमें मार डारें सो रानी ने एक कटार राजा खां मारी और एक कटार अपने पेट में मारी और स्वाभिमान के खातिर अपनी जान दै दई
ई खबर के बाद छत्रसाल जू अकेले पर गये और उनके मम्मा जू ही उनके मददगार हते सो अपने मम्मा के घरै रान लगे समय बीतत गओ और छत्रसाल मम्मा के घरै रैके अपनौ गुजर वसर करन लगे और सोरा साल की उमर में संबत 1722 अपुन कौ ब्याव देवकुंवर जू के संगै हो गओ
फाग
*सोलह साल में भई ती शादी*
*छत्रसाल राजा की*
*देवकुंवर सी रानी पाई*
*बन गईं जीवन साथी*
*राजा प्रजा खुशी भई भारी*
*सब कोऊ बनौ बराती*
*राजा छत्रसाल की गाथा*
*वर्णन करें त्रिपाठी*

समय बीतत बीतत गओ और बा घरी आ गई जब छत्रसाल जू के घर में एक कुंवर नें जन्म लओ जिनकौ पंडतन ने हृदयशाह नाम रखो पूरे बुन्देलखंड में भौतई खुशी मनाई गई खूब दान और धरम करो गओ फाग

*छत्रसाल घर कुंवर पधारे*
*बांधे बंदन बारे*
*घोड़ा हाथी नचे द्वार में*
*बाजे ढोल नगारे*
*सोहर मंगल गीत गायें सब*
*छत्रसाल के दुवारे*
*सी बी त्रिपाठी छत्रसाल जू*
*गद गद खुशी के मारे*

कुंवर हृदयशाह भी अपने माता की राह पर चलन लगे और माता पिता सें राजा महाराजन की कहानियाँ सुनन लगे कुंवर हृदयशाह अपने माता पिता सें घरै तलवारन सें युद्ध सीखत हते समय बीतत गओ और विधना खां कछू और मंजूर हतो सो राजा छत्रसाल जू की महारानी देवकुंवर उर्फ कमलावती जू कौ तीस साल की तनक सी उमर में देहांत हो गओ पूरे ऐंगर पास के गांवन में सोक की लहर दोर गई सब कोऊ जा खबर सुनकें मूड़ मार कैं रोऊन लगे राजा के संगै सब परजा भी दुखी हो गई होय काय ना हीरा सी रानी तीस साल की उमर में चल वसीं पै विधना कौ लिखो को टार सकत है सबई जनें जुरे और रीत रिवाज सें महेवा और धुवेला के बीच बने फाटा पहार में अंतिम संशकार करो गओ फाग

*रानी भईं स्वर्ग की बासी*
*तीस की उमर जरा सी*
*राजा रोये दुखी भये भारी*
*हो गई प्रजा उदासी*
*फाटा पर्वत मध्य बना दई*
*कमलावती समाधि*
*कमलावती सुरई जग जानें*
*गाथा लिखी त्रिपाठी*

आज भी फाटा पहार पै रानी कमलवती जू की सुरई बनी है जो एक दर्शनीय स्थल बन गओ और आबे जावे बारे सब जनें समाधि देखबे जरूर जात हैं

राजा छत्रसाल जू रानी के गमी सें गम में डूबे रात हते साथ में कुंवर की भी चिंता बनी रात हती दिन बीतत गये और राजा धीरे धीरे अपने काम काज में लग गये महाराजा छत्रसाल जू कौ रूतवा और जनमानस में छवि भौतई अच्छी हती इनके अंदर समरसता कौ भाव हतो सबई खां एक रूप सें देखत हते जीकी बजह सें सब काऊ मान सम्मान करत हतो चाये हिन्दू होय या मुसलमान होय सबके संगै एक सौ वरताव करत हते ईसें परजा खुश रात हती  फाग

*खुशी रात ती पूरी परजा*
*दओ बरावर दरजा*
*समरसता कौ भाव हतो तो*
*थी समान सब परजा*
*दिल ना कभऊं दुखाव काऊ कौ*
*हो गई कथा अमर जा*
*सी बी त्रिपाठी छत्रसाल की*
*हो रई घर घर चरचा*

राजा छत्रसाल जू कौ नांव सुनकें दुशमन के पसीना छूट छाते हते देखत में खूब ऊंचे पूरे छ:फिट के लम्बे और शानदार मूछे और जब घोड़ा पै बैठत हते और जब घोड़ा हिनहिनात हतो तौ पृथ्वी कप जात हती ऐसौ शौर्य और बल हतो बल काये ना होय बचपन में मम्मा और माईं की भैसियन कौ दूध पिओ हतो और युद्ध करबौ उतईं सें सीखो हतो मम्मा की कृपा सें भनैंज भौतई अच्छे योद्धा बन गये हते स्वामी प्राणनाथ जी आपके गुरू हते और उनईं के मार्ग दर्शनमें छत्रसाल ने मुगलों के छक्के छुडाये हते जीकी चरचा पूरे देश में होत हती
पुराने जानकार बताऊत हैं कै छत्रसाल जू ने अपनी मताई के गानें गुरिया बैच कें एक छोटौ सौ अपनौ सैनिक दल तैयार करो तनक सी पूँजी में तीस पैंतीस घुडसबार और लगभग साढ़े तीन सौ निगत बारे सेनकन कौ एक दल बनाओ और मुगलन सें जा भिड़े और मुगलन कौ करिया मौं करो अपुन नैं अपने जीवन काल में भौत युद्ध लडे और जीत हासिल करी और संबत 1744 योगी प्राणनाथ की कृपा सें आपकौ राज तिलक करो गओ हतो फाग

*ऐसौ राज करो है छत्ता*
*हिल ना पाओ पत्ता*
*दांत करे खट्टे मुगलन के*
*पाई अपनी सत्ता*
*भागे मुगल हिल के दुम को*
*लागो भारी धक्का*
*सी बी त्रिपाठी छत्रसाल नें*
*पाई युद्ध में फत्ता*
अपनी परजा कौ सदा ध्यान रखबे बारे राजा कौ 82 साल की उमर सन 13 मई सन 1731 के दिना स्वर्गबास हो गओ हतो बताऊत हैं की प्रजा ने खैबौ पीबौ छोड़ दओ हतो और पूरे राज में आफत सी आन परी हती पै विधना खां जेऊ मंजूर हतो फाग

*पूरी करकें उमर ब्यासी*
*भये स्वर्ग के बासी*
*बावन युद्ध लड़े जीवन में*
*सांमू करकैं छाती*
*छुडा दये छक्के दुश्मन के*
*ऐसे बीर प्रतापी*
*छत्रसाल की गौरव गाथा*
*सुना रये त्रिपाठी*

हमाये पिता जी पंडित स्वर्गीय श्री धरम जीत तिवारी जमीदार कीरतपुरा बताबे करत ये की छत्रसाल एक समय सबेरे सबेरे बैठे दतौन कर हते और ओई समय एक अदृष्य शक्ति आई और बोली छत्ता तुमाओ समय आ गओ राजा नें जब जा बात सौनीं तौ अपनौ लोटा छोड कें गदवद लगाई और अदृष्य हो गये जहाँ तक देखबे बारन नें देखो उतईं उनकी समाधि बना दई जा बात सुनी सनाई आय का भओ जौ तौ भगवान जानें
इतिहास भौतई बड़ौ है और लिखत लिखत सालें लग जैंहें आज मऊ के धुवेला म्यूजियम में महाराजा छत्रसाल जू कौ एक भौतई बड़ौ प्रदेश कौ मयूजियम बनो है

*छत्रसाल की गौरव गाथा*
*किला धुवेला गाता*
*अस्त्र शस्त्र और वस्त्र रखे हैं*
*तोप हार और छाता* * *विविध भांति की रखीं पोसागें*
*हार मिरजानी स्वापा*
*सी बी त्रिपाठी म्यूजियम की*
*बहुत पुरानी गाथा*

ई म्यूजियम की शुभारम्भ हमाये देश के प्रधान मंत्री जबाहर लाल नेहरू जी ने तारीख 12 सितम्बर सन 1955 को करो हतो और ई म्यूजियम में छत्रसाल जू के अलावा वैष्णव और जैन कला की मूर्तियाँ भी रखी हैं गुप्त काल और कलचुरि काल की भी धरोहर ई म्यूजियम में देखबे मिलतीं हैं चारूऊ ओर पुराने पुराने मकवरा बने हैं जीमें महाराजाछत्रसाल जू को मकबरा ,शीतलगढी,फाटा पहाड़ समाधि और मस्तानी महल प्रमुख हैं झांसी छतरपुर मार्ग से उत्तर की ओर एक सीधौ रास्ता महल की ओर जात है ई महल कौ निर्माण सन 1696 के आस पास भओ हतो ऐसौ लेख मिलत है।

धुवेला म्यूजियम की पुरातत्व विभाग ने जगह मरम्मत कराई और आस पास बने मकबरन की देख रेख करी तालाब की सुन्दरता के लानें जगह जगह घाट बनाये गये और छाया के लानें पक्की छत दार छतरीं बनाईं गईं जो सबके मन खां आकर्षित करतीं हैं ।

महाराजा छत्रसाल जू के जन्म दिवस जैठ शुक्ल तृतीया के दिना बड़े धूम धाम सें मनाओ जात है और शासन की ओर सें दो दिन तक सांस्कृतिक कार्यक्रम “बिरासत “के नाम सें होत हैं और बाहर से नामी गिरामी कलाकार आऊत हैं जिला के सबई जनन खाॅ उत्सव देखने के लानें निवते भेजे जात हैं
राजा क्षेत्रपाल जू की गाथा सदियों तक चालत राय और हमांईं आबे बारीं पीढी़ उनकी गाथायें गाऊत रांय ईके लानें डा• पवन तिवारी जू ने एक भौत बड़ी मुहिम चलाई और तारीख 17 अगस्त सन 2015 को महाराजा जू की गाथा नई पीढी लौ पहुचाने के लानें महाराज छत्रसाल शोध संस्थान के गठन करो और फिर जिला के सब जनन खां बैठार कें एक कमेटी कौ गठन करो और सबकी मंशा सें जौं निर्णय लओ गओ कै राजा की 52 फिट की अष्ट धातु की प्रतिमा लगवाई जाय सब जनन ने हामी भर दई
ईकी एक छतरपुर मे कमेटी बनाई गई जीमे जे सब जनें पदाधिकारी बनाये गये

महाराजा छत्रसाल स्मृति शोध संस्थान
भागवत शरणअग्रवाल अध्यक्ष
पुष्पेंद्र प्रताप सिंह उपाध्यक्ष
धीरेंद्र शिवहरे उपाध्यक्ष
राकेश शुक्ला सचिव
अनिल अग्रवाल कोषाध्यक्ष
विनय चौरसिया सह सचिव
जयदेव सिंह सह सचिव
सुशील कुमार वैद्य सदस्य
हर्ष अग्रवाल सदस्य
पी के खरे सदस्य
आशीष ताम्रकार सदस्य
वीरेंद्र असाटी सदस्य

सब जनन के प्रयास सें 27 अक्टूबर सन 2015 के दिनां राजा छत्रसाल जू की प्रतिमा लगवाके लानें भव्य पूजन कराओ गओ जीमें क्षेत्र के हजारन जनन नें भाग लओ हतो और धूम धाम सें पूजन भओ प्रतिमा स्थल पर भूमि पूजन करो गओ जी में दूर दूर सें प्रकांड विद्वान और सागर संभाग के नामी गिरामी, पत्रकार ,इंजीनियर, उद्योग पति और समाजसेवी लोग शामिल भये और फिर पूरे संभाग में कार्य क्रम कराये गये और राजा की गाथा घर घर तक पौंचाई गई ।
सब जनन नें खूब मैंनत करी और अपनों अपनों तन मन और धन सें योगदान दओ

*आगे आये पवन तिवारी**
*करन लगे तैयारी*
*बावन फिट की ऊंची प्रतिमा*
*घोड़ा सहित सवारी*
*अपने मन की बात बताई*
*सबई जनन खां प्यारी*
*सी बी त्रिपाठी बैठ सबई नें*
*तुरत करी तैयारी*

महाराजा छत्रसाल जू की प्रतिमा बनावे के लानें पूरे बुन्देलखंड के साथ साथ पूरे देश नैं सहयोग करो ईके लानें श्री पवन तिवारी जू ने 10- 10 रुपैया के कूपन छपाये और देश के सबई भईया बैनन सें दस दस रुपैया की सहयोग राशि लई गई जीमें 7000000/ लाख रूपया इकठ्ठे भये और भी समाज सेवियों ने अपना गुप्त दान भी करो

महाराजा जू की प्रतिमा कौ मूल रूप हमाये छतरपुर के कलाकार श्री दिनेश शर्मा जू ने डा• पवन तिवारी जू के मार्ग दर्शन में एक भौतई नौनों 50 सेंटीमीटर उचाई की एक हल्की सी प्रतिमा तैयार करी गई और फिर सब जनें ई प्रतिमा खां लैके लखनऊ गये और कलाकारन ने मिट्टी कौ माडल तैयार करो गओ और लगभग 100 पीस में माडल की डाई बनाई गई और फिर इन सबको मऊ सहानियाॅ लाओ गओ और फिर इनकी अषठ धातु की ढलाई कौ काम शुरू भओ जो दो साल तक चलत रओ तब जाकें काम पूरौ भओ ई प्रतिमा को 15 कुशल कारीगरन नें दो साल रात मेहनत करकें बनाओ और कुल लागत एक करोड़ दस लाख रूपैया आई
महाराजा छत्रसाल जू की प्रतिमा की ढलाई 12 टन बजन के अषठ धातु से कराई गई हती

महाराजा छत्रसाल जू की प्रतिमा कौ पूरौ श्रृंगार करबे के बाद विधि विधान सें पूजन करो गओ और कलयुग के हनुमान क्रेन देव की मदद से मंच पर रखो गओ फाग
प्रतिमा बन गई बारा टन की
सबई जनन के मन की
सबने दान करो है भारी
कमी रही ना धन की
राजा की ऐसी मनमोहक प्रतिमा बनाई कै देखत में जी भर जात है फाग
प्रतिमा बनी अष्ट धातू की
बावन फिट की ऊंची
पीछे पर्वत सन्मुख सागर
ऐसी कृपा प्रभू की
ले तलवार अश्व पर बिराजे
पगड़ी सिर पर ऊंची
दस टन बजनी प्रतिमा बन गई
अपने राजा जू की
(ई कार्य क्रम में कछू लोगन कौ भौत योगदान रओ पर नाम ईसें नई लिखो कै कोऊ कौ नाम छूट ना जाये सो सब ई जनन सें माफी चाउत हैं पर आप सबकौ योगदान भौतई अचछो रव

21 March . को श्री मोहन भागवत जू के करकमलन सैं भव्य लोकार्पण भओ जीमें देश के नाम गिरामी हस्तियाँ और साधू संत भी पधारे हते

लेखक-इंजी सी बी त्रिपाठी नौगाँव