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अगर चीन ने ‘रेअर’ मसल्स को फैलाया तो टूट जाएगी ग्लोबल इंडस्ट्री की टांग

पिछले साल ही बीजिंग ने अमेरिका को धमकी दी थी कि दोनों अर्थव्यवस्थाओं के बीच ट्रेड वॉर बढ़ने पर वो रेअर-अर्थ खनिजों के निर्यात को बाधित कर देगा.

जैसे कि चीन ने लद्दाख में भारत के खिलाफ और दक्षिण चीन सागर में अपने पड़ोसी देशों के साथ आक्रामक मुद्रा अपनाई हुई है, अमेरिका के साथ उग्र कूटनीतिक युद्ध छेड़ रखा है. इन परिस्थितियों में आधुनिक उद्योग की दुर्लभ लाइफलाइन पर चीन की मोनोपोली या एकाधिकार अंतर्राष्ट्रीय चिंता का विषय बन सकता है.

चीन की ‘रेअर’ मसल्स

कोरोना वायरस महामारी से निपटने के तरीकों को लेकर इस दिग्गज एशियाई देश पर इन दिनों वाशिंगटन की आंखें लाल हैं. चीन पृथ्वी के रेअर मिनरल्स यानि दुर्लभ खनिजों का सबसे बड़ा उत्पादक है. इनके तहत 17 तत्वों का ग्रुप उपभोक्ता वस्तुओं, एविएशन, क्लीन-टेक, हेल्थकेयर, डिफेंस और कुछ अन्य सेक्टरों के लिए बहुत अहम है.

अपने चुंबकीय और विद्युत रासायनिक गुणों के लिए पहचानी जाने वाली ये धातुएं पृथ्वी की परत में आम हैं. लेकिन इंडस्ट्री डेटा के मुताबिक चीन अपनी कम श्रम लागत और ढीले पर्यावरण नियमों की वजह से इन धातुओं के ग्लोबल आउटपुट के करीब 90 फीसदी हिस्से पर नियंत्रण रखता है.

धातुओं का उपयोग सेलफोन, लैपटॉप, स्मार्ट टीवी, स्मार्ट स्पीकर, सर्जिकल उपकरण, पेसमेकर, एयरक्राफ्ट इंजन, टेलिस्कोप लेंस, लेजर, रडार, सोनार, नाइट-विज़न सिस्टम, मिसाइल गाइडेंस, बख्तरबंद वाहन आदि जैसे तमाम इंडस्ट्री सेक्टर में होता है.

चीन की रेअर-अर्थ बंदिशें

पिछले साल ही बीजिंग ने अमेरिका को धमकी दी थी कि दोनों अर्थव्यवस्थाओं के बीच ट्रेड वॉर बढ़ने पर वो रेअर-अर्थ खनिजों के निर्यात को बाधित कर देगा.

चीन के राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग ने 2019 में एक बयान में कहा था, “अगर कोई चीन के निर्यात किए गए रेअर-अर्थ से बने उत्पादों का इस्तेमाल चीन को काबू करने और उसके विकास को दबाने में करना चाहता है तो हमें लगता है कि चीन के लोग खुश नहीं होंगे.”

2010 में, चीन ने एक द्वीप विवाद को लेकर जापान को रेअर-अर्थ के निर्यात पर बंदिशें लगा दी थीं.

स्ट्रैटेजिक, टेक मोर्चे पर आगे

रणनीतिक विश्लेषक, यहां तक अमेरिका में भी, मानते हैं कि चीन की धातु निर्यात पर बंदिशों का असर न सिर्फ उपभोक्ता, हेल्थ केयर और एविएशन इंडस्ट्री बल्कि राष्ट्रीय रक्षा पर भी महसूस किया जा सकता है.

अमेरिकी फोरेंसिक इंजीनियर शॉन डडले ने 2016 में ही आगाह किया था, “हम में से बहुत से लोग इसे बंद कर देंगे क्योंकि हम में से बहुत से चीन से अपनी तकनीक प्राप्त करते हैं. लेकिन अगर वे हमारे लिए स्टॉकपाइल्स (रेअर अर्थ) के अपने उत्पादन को कम करते हैं, तो हम अपनी तकनीक विकसित नहीं कर सकते. हमारी रक्षा प्रणाली को नुकसान होगा.”

रेअर अर्थ्स मार्केट पर अथॉरिटी माने जाने वाले प्रोफेसर डडले किंग्सनॉर्थ के मुताबिक धातुओं को उत्पादित करने के वक्र में चीन कहीं आगे है. 2014 की एक बातचीत में उन्होंने कहा था कि चीन ने इस मामले में बहुत दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपना रखा है.”

प्रो. किंग्सनॉर्थ ने कहा, ‘’चीन ने 1970 में अपनी रेअर-अर्थ यात्रा को शुरू किया. वो तह तक गए और इसका मूल्य वर्धन किया, रोजगार पैदा किए.”

चीन ने बहुत पहले ही भांप लिया था कि रेअर-अर्थ भविष्य में हाई-टेक मैन्युफैक्चरिंग का आधार बनने वाले हैं.

रेअर अर्थ्स पर भारत बनाम चीन

इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के मुख्य अर्थशास्त्री डॉ देवेंद्र पंत का कहना है, “2019 में चीन ने 132,000 मीट्रिक टन रेअर-अर्थ्स का उत्पादन किया. वहीं भारत में यह उत्पादन 3,000 मीट्रिक टन ही रहा.”

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में आत्म निर्भरता हासिल करने के लिए एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहा है.

डॉ पंत ने कहा, “चीन के पास धन है, जो इन दुर्लभ सामग्रियों के स्रोतों को खोजने और खरीदने में मदद कर रहा है. भारत को उस तरह की संपत्ति हासिल करने के लिए अगले दशक में 9-10 प्रतिशत की विकास दर से बढ़ना होगा.”

फिलहाल भारत जापान के साथ विशाखापट्टनम में एक रेअर अर्थ ज्वाइंट वेंचर पर काम कर रहा है. सरकार एक नई राष्ट्रीय खनिज नीति भी बना रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि अभी भी भारत को लंबा रास्ता तय करना है.

डॉ पंत ने कहा, “वक्त की जरूरत हमारी अर्थव्यवस्था को विकसित करने की है, जो आगे चल कर भारत को चीन को कडी प्रतिस्पर्धा देने और चीन के वर्चस्व वाली सप्लाई लाइन को तोड़ने में मदद कर सकती है.’’