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पुलिस प्रशासन और कानून

पुलिस की बर्बरताओं पर लेख लिखना आज एक आम बात बनकर रह गयी है। भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में पुलिस की बर्बरताओं के मामले आये दिन सामने आते रहते है। पर अगर बात करे भारत की तो भारतीय कानून पुलिस प्रशासन की जिम्मेदारी और उनके हक़ और शक्तियों को रेखांकित करता है। लेकिन आज बहुत से पुलिस कर्मी ऐसे है जो अपने इन अधिकारों का हनन करते हुए उनका गलत इस्तेमाल करते है, और उन्हें अपनी निजी संपत्ति समझकर इस्तेमाल करते है जो की नियमों के विरुद्ध है।

देश के नागरिकों के प्रति पुलिस की कुछ ज़िम्मेदारिया बनती है लकिन आज यही पुलिस प्रसाशन इन ज़िमींदारियो से दूर भागता नज़र आता है और अपनी बर्बरता का प्रदर्शन करता है। कही भ्रष्टाचार, तो कही अकुशलता, कहीं यातना और कहीं हिरासत में मौत और बलात्कार आज पुलिस की एक आम बात बनकर रह गयी है। पुलिस प्रसाशन की इसी तरह की बातो और हरकतों ने आज आम आदमी के मन में पुलिस को लेकर डर और अविश्वास को पैदा कर दिया है।

पुलिस की बर्बरता आज भारत में प्रमुख सुर्खियों में दिखाई देती है। देश के रखवाले कहलाये जाने वाला पुलिस प्रसाशन आज एक व्यक्ति को गाली और पीड़ा देकर कई मानव अधिकारों का उल्लंघन करता है। और ये बात किसी समाचार पत्र या किसी समाचार चैनल ने नहीं बताई है, बल्कि ऐसे तमाम मामले राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) में दर्ज है ।। वर्ष 2000 -2016  के बिच में कई मामले NCRB में दर्ज हुए है जिसमे 1,022  लोगो की पुलिस हिरासत में मौत हुई है, लकिन केवल 428 मामले ही दर्ज किये गए, जिनमे से 5 % पुलिसकर्मियो को दोषी ठहराया गया है। पुलिस की बर्बरता को हद से ज्यादा सामान्य कर दिया गया है। जो की आज देश के लिए महज़ मनोरंजन का एक हिस्सा बन कर रह गया है। पर सच्चाई तो छुपाते नहीं छुपती तो पुलिस प्रसाशन की सच्चाई भी सामने आ ही जाती है।

NCRB डेटा कहता है की हिरासत में मौते और हिंसा इतनी आम हो गयी है की आज हम छोटे से मुद्दे के लिए सड़कों में तो उतर आते है लेकिन पुलिस बर्बरता के खिलाफ आवाज़ उठाने में समर्थ नहीं हैं। भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में लोग अपने हक़ के लिए आंदोलन करते है सालों से ये आंदोलन चलते आये है, 2006  में महारस्थता में दलित आंदोलन हुआ, 2006  में ही आरक्षण के खिलाग पूरे भारत में आंदोलन हुआ, 2011  में भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन हुआ, 2015  में मध्यप्रदेश में जल सत्याग्रह हुआ, ऐसे तमाम अनगिनत आंदोलनों में पुलिस ने जमकर लाठी चार्ज किया है और उनकी बर्बरता देखने को मिली है, ज्यादा दूर क्या जाना 2019 दिसंबर में नागरिकता संसोधन अधिनियम को लेकर राजधानी दिल्ली में कई हंगामे हुए जहाँ पुलिस ने अपनी बर्बरता का जमकर प्रदर्शन किया , जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में बेकसूर छात्रों को बेहरहमी से पुलिस द्वारा पीटा गया, इन जख्मों से भारत अभी उभर नहीं पाया था की पुलिस बर्बरता का एक और उदाहरण सामने आ गया जहाँ एक पिता पुत्र की पुलिस हिरासत में मौत हो गयी। तमिलनाडु के तूतीकोरिन का ये मामला आज देश में न्याय की पुकार कर रहा है।

यही नहीं जोगिन्दर कुमार का मामला यूपी में सबसे बड़ा उद्धरण है पुलिस की बर्बरता का। जो पुलिस द्वारा बिना किसी ठोस कारण के लोगो को गिरफ्तार करने को दर्शाता है। इस मामले में पुलिस ने एक युवक को जो की वकील था पूछताछ करने के बहाने पांच दिनों के लिए अवैध रूप से हिरासत में रखा। अदालत ने भी कहा है की किसी भी व्यक्ति को सवैधानिक अधिकारों को अनिवार्य करे जाने के आधार पर गिरफ्तार नहीं किया जा सकता जब तक उस व्यक्ति के खिलाफ कोई ठोस सबूत न हो ।

वर्तमान में तमिलनाडु के  पिता पुत्र की मौत के मामले में यह संदेह जताया जा रहा है की जयराज और उसके बेटे फेनिक्स को गिरफ्तार करने से पहले इसकी संतुष्टि हुई थी या नहीं।

महाराष्ट्र राज्य में एक मामला जो की मथुरा बलात्कार मामले के रूप में भी जाना जाता है जो की पुलिस बर्बरता को दर्शाता है। जहाँ दो पुलिस कर्मियों ने थाने परिसर के भीतर एक कम उम्र लड़की का बलात्कार किया जबकी उसके परिजन उसका थाने के बाहर इंतज़ार कर रहे थे। इस मामले ने पुलिस प्रसाशन के नाम पर एक प्रश्न चिन्ह लगा दिया है। जो पुलिस महिलाओ की रक्षा के लिए तैनात करी जाती है आज उसी पुलिस ने एक लड़की का बलत्कार किया। ये मामला पुलिस का महिलाओं के प्रति उनके व्यवहार को दर्शाता है।

हिरासत में हिंसा के बाद यदि व्यक्ति की मौत हो जाती है तो सरकार उसके परिवार को मुआवज़ा देने बात करती है और ये भूल जाती है की परिजनों को किसी मुआवजे की नहीं बल्कि न्याय की आशा है।

इसी के चलते तमिलनाडु के  पिता पुत्र मौत के मामले में भी सरकार ने परिवार के सदस्य को नौकरी देने का आश्वासन दिया है ये तो हमारी सरकार खुद अनुमान लगा सकती है की सरकारी नौकरी देने से जयराज और उनका बेटा फेनिक्स वापस नहीं आएगा।

इसी बर्बरता को देखते हुए पश्चिम बंगाल में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस हिंसा और अधिकारों के दुरुप्रयोग के कई मामले सामने आने के बाद कई निर्देश भी जारी किए, जिसमे गिरफ्तारी से पहले पुलिस के पास सबूत होना आवश्यक है, और गिरफ़्तारी के हर 48 घंटे में गिरफ़्तारी की चिकित्सकीय जांच भी होनी चाहिए। ये निर्देश गिरफ़्तारी के अधिकारों की रक्षा करने के लिए और पुलिस हिंसा को रोकने के लिए लगाए गए है। गैरकानूनी गिरफ्तारी और गलत कारावास दंड प्रक्रिया संहिता, 1973  के उल्लंघन करते है और और भारतीय संविधान के अधिकारों का भी हनन करते है। कानून को बनाये रखने के लिए गिरफ्तारी अवश्य करनी चाहिए लेकिन मानव अधिकारों की रक्षा के साथ।

हालांकि जयराज और उनके बेटे फेनिक्स की मौत का मामला इस बात का सुबूत है की अभी भी मानव अधिकारों का हनन हो रहा है और समाज बस हाथ में हाथ धरे इसे देख रहा है। इस मामले में पिता पुत्र दोनों की मोबाइल की दुकान कर्फ्यू के बाद बस 15 मिनट के लिए खुली रह गयी,और अगले ही दिन पुलिस ने जयराज को हिरासत में ले लिया और उनके बेटे फेनिक्स को भी गिरफ्तार कर लिया। यह पुलिस की गिरफ्तारी शक्ति का दुरुप्रयोग था क्यूकी 15 मिनट के भीतर ही दूकान बंद कर दी गयी थी। इसके बाद भी इन दोनों को हिरासत में लेके इसके खिलाफ एफआईआर कर दी गयी और बर्बरता से इनको मारा गया जिसके कारण इनकी मौत हो गयी।

दवा किया गया की पुलिस ने इन दोनों को बड़ी बर्बरता से मारकर लहू लुहान कर दिया, इनके शरीर से लगातार खून बह रहा था जिसके बाद भी पुलिस ने उन्हें मारना नहीं रोका। हलाकि पुलिस बल ने इस दावे से इंकार किया है की उन्होंने इन दोनों को मारा था। साथ ही पुलिस ने ये कहा की उन दोनों को आतंरिक चोटे आई थी क्यूकी वो जमीन में गिर गए थे और गिरफ़्तारी से इंकार कर दिया।

इस घटना के बाद इन पुलिस कर्मियों के खिलाफ कोई खास कार्यवाही नहीं करी गयी। इस अपराध में शामिल अधिकारियो के खिलाफ कार्यवाही होना अनिवार्य है, जैसे की यूएस में जॉर्ज फ़्लॉइड के मामले में किया गया था। हमे इस मामले से जुड़े मेजिस्ट्रेट की भूमिका पर सवाल उठाना चाहिए की उसने इन दोनों के शरीरी चोटों की जांच क्यों नहीं करी। इन दोनों पिता और बेटे के साथ अन्याय करने वाली लोगों के खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए, जिसका जवाब पुलिस को देना ही होगा।

इस मामले के आलावा भी पुलिस प्रसाशन आज भ्रष्ट ही है, पुलिस में भ्रष्टाचार के भी कई मामले सामने आते है। जैसे पुलिस को रिश्वत देने की कई घटनाये सामने आई है ताकी मामले की जांच देरी से हो और पुलिस ये रिश्वत ले लेती है और आम नागरिक के साथ अन्याय करती है। इससे ये पता चलता है की कुछ पुलिस कर्मियों के कारण आज सारा प्रसाशन ही बदनाम हो चूका है। यह महत्वपूर्ण है की प्रत्येक मुद्दे की जांच के लिए समितियों की स्थापना की जाती है और ये जरूरी भी है ताकि कुछ भ्रष्ट पुलिस कर्मियों के वजह से देश का नुक्सान ना हो।

न्यायपालिका को भी अधिकार के ऐसे हनन करने वालों के ऊपर ध्यान देने की जरूरत है, और न्याय के लिए देरी की जो परंपरा आज हमारे देश में है उसे न्यायपालिका को भी बदलना होगा। कई जांच पहले भी हो चुकी है जिसमे न्याय मिलने में या तो वर्षो लग गए तो कहीं आज तक न्याय नहीं हो पाया।

आज हमारे समाज को ये समझने की जरूरत है की पुलिस समाज की रक्षा के लिए है ना की उनपर अपना अधिकार ज़माने के लिए, पुलिस की वर्दी एक सम्मान है जो की हर पुलिस कर्मी को समझने की आवश्यकता है ना की उस वर्दी का गलत इस्तेमाल करने की। ईमानदार और महत्वकांशी पुलिस कर्मियों को सम्मानित किया जाना चाहिए और वो पुलिस कर्मी जो मानव अधिकारों का हनन करते है उन्हें तुरंत ही समाज से बहिस्कृत कर देना चाहिए। यदि आज हम ये सिद्ध करने में सक्षम हो गए की पुलिस वास्तव में एक ऐसी ताकत है जिसके साथ कदम मिलाकर चलने  पर समाज की भलाई होगी तो भविष्य में होने वाले अपराधों को रोकने के लिए एक उम्मीद की किरण दिख सकती है।

आप और हम सब इस समाज का निर्माण करते है और ये हमारा अधिकार है की हम अपने साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाये और ये पुलिस का कर्तव्य है की वो हमारी रक्षा करे। यदि ये बात हर पुलिस कर्मी समझ गया तो भारत को विश्व का सबसे ताकतवर राष्ट्र बनने से कोई नहीं रोक सकता।

Mansi Joshi @ Samacharline 

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