भारत एक ऐसा देश जिसकी तुलना आज विश्व के महान देशो में होती है। आज हर क्षेत्र में भारत कही न कहीं नयी मिसाल कायम कर रहा है और विश्व के विकसित देशो के बराबर आने की पूरी कोशिश में है जो कहीं न कहीं सफल भी हो रही है।पर बावजूद इसके आज भी एक कुप्रथा की जड़ों ने भारत को जकड के रखा है, जो हमारे समाज में पौराणिक काल से चलती आ रही है,वो कुप्रथा है भिक्षा वृत्ति।
मनुष्य और मनुष्यता का यह सबसे बड़ा अपमान है की समर्थ होने के बावजूद भी लोग भिक्षा मांगते है। स्वाभिमान महुष्य की सबसे बड़ी पुंजिओ में से एक है जो की इंसान को बड़ी से बड़ी विपत्ति आने के बाद भी सम्हाल के रखना चाहिए। लेकिन आज भिक्षा के नाम पर लोग अपने स्वाभिमान को खोते जा रहे है।अपने आत्मसम्मान को ना गिराके मनुष्य को काम करना चाहिए और ईमानदारी और सम्मान की रोटी खानी चाहिए , लेकिन आज मनुष्य अपने इस धरम को भी खोता जा रहा है। ये बात देश के हर व्यक्ति पर लागू नहीं होती लेकिन कई वर्ग आज ऐसे है जो भिक्षा पर ही निर्भर हैं।
देश के तमाम नागरिकों ने भिक्षा मांगने को आज अपना व्यवसाय ही बना दिया है। उनकी दिनचर्या भिक्षा पर ही निर्भर करती है। एक ओर हमारे समाज का वो वर्ग है जो दिन रात मेहनत करके मजदूरी करके अपना और अपने परिवार का पेट पालते है और तमाम दिक्कतों का सामना करते है लेकिन एक ओर ये वर्ग भी है जो बस भिक्षा पर ही निर्भर है और दिन भर की मिली भिक्षा से अपनी दिनचर्या चलाते वो भी बगैर किसी भी मेहनत के। 2011 की जनगणना के अनुसार आज भारत में 56 लाख लोग ऐसे हैं जो की भिक्षा मांगकर अपनी दिनचर्या चलाते है,इसमें से असमर्थों और विकलांगों की संख्या एक लाख से भी कम है। आखिर ऐसी क्या दिक्कत या परेशानी है की आज लोगों की मेहनत करके नहीं बल्कि भीख मनके पेट पलना ज्यादा पसंद हो चुका है?
इन भिक्षा वृति पर निर्भर लोगों में कम से कम 50 लाख व्यक्ति साधु, बाबा, महात्मा, आदि का भेष बनाकर ईश्वर ने नाम पर भिक्षा मांगते है और न देने पर श्राप देने की बातें करते है और खुद को ईश्वर का दूत बताते है, और 6 लाख लोग खुद को असमर्थ बताते हैं। इसमें से अधिकांश लोगों की स्तिथि ऐसी बिलकुल नहीं होती की वो भिक्षा मांगने के आलावा और कोई काम ही नहीं कर सकते। और ये सभी आज देश के वो भिखारी बन चुके है जिनको अपनी एकमात्र आजीविका भिक्षा ही लगती है। सोचने वाली बात ये है की यदि यही ५० लाख व्यक्ति जो साधू होने का दवा करते है अगर किसी रचनात्मत कार्य जैसे शिक्षा,स्वास्थ्य,समाज कल्याण आदि में लग जाये तो आज देश का कितना ज्यादा विकास होगा। और जो सच में अपांग,विकलांग या असमर्थ है उनकी सहायता सरकार को करनी चाहिए।
ये सच आज किसी से भी नहीं छुपाया जा सकता की भिक्षा वृत्ति के उदहारण आज सड़क किनारे,धार्मिक स्थलों,बस स्टैंड आदि जगह दिख ही जाते है। 2018 में दिल्ली हाई कोर्ट ने भिक्षा वृत्ति को अपराध घोषित करने वाले कानून बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ़ बेग्गींग एक्ट,1956 की पच्चीस धाराओं को समाप्त कर दिया है। साथ ही भिक्षा वृत्ति को अपराध नहीं बताया है। हाई कोर्ट ने यह निर्णय भिक्षुओं और भिखारियों के अधिकारों को समाप्त न करने के लिए लिया है।देश में अब तक भिक्षा वृत्ति के लिए कोई भी केंद्रीय कानून नहीं है। हलाकि भिक्षा रैकेट चलने वालों को सरकार कड़ी सज़ा दे सकती है। बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ़ बेगिंग एक्ट 1956 को ही आधार बनाकर आज 22 राज्यों ने और 2 केंद्रशासित प्रदेशों दिल्ली और दमन दीव ने अपने कानून बनाये हैं।
भारत में भिक्षा वृत्ति के कारण
भिक्षा वृत्ति के दो रूप हो सकते है पहला, एक वो खुद अपनी मर्ज़ी से किया और और दूसरा जो कोई करवाता हो। बहुत से ऐसे लोग हैं जो काम नहीं करना चाहते या उनको आलस आता हो इसलिए वो भिक्षा वृत्ति को अपनाते है। कई सारे लोग ऐसी अपनी परंपरा समझकर अपनाते हैं लेकिन समझने वाली बात ये है की आज भी बहुत से लोग इसे अपनी इच्छा से नहीं करते बल्कि उनसे ये काम करवाया जाता है।
भारत में कई बार किसी प्राकृतिक आपदा के कारण बहुत से लोग बेघर हो जाते है उनके पास कुछ खाने को नहीं होता, ना सर ढकने के लिए जगह होती है ना पेट पलने के लिए रोटी, ऐसी ही एक और कारण है गरीबी जिसके कारण लोग भिक्षा वृत्ति को अपना रहे हैं। भुखमरी की कहानिया तो हम सब बचपन से ही सुनते चले आ रहे है और ये सभी बातें ग्लोबल लेवल की कुछ रिपोर्ट्स में भी दर्ज हैं।
दिसंबर 2017 में आई वोर्ल्स इनइक्वलिटी रिपोर्ट के अनुसार भारत के 10% लोगों के पास देश के आये का 56 % हिस्सा है। हाल ही में 2019 में आये ग्लोबल हंगर इंडेक्स में 117 देशो में से भारत का स्थान 102 है, साथ ही भारत भारत का नाम आज 45 देशो में से एक है जो भुखमरी से जूझ रहे हैं। इन्हे सब परिस्थितियों के कारण ही आज देश में भिक्षा वृत्ति बढ़ रही है, इतना ही नहीं लोग आज ऐसे गिरोह में शामिल हो रहे है जो भिक्षा मांगने का रैकेट चलाते हैं।
बॉम्बे प्रेवेन्शन ऑफ़ बेग्गींग एक्ट
इस अधिनियम की सबसे बड़ी बात ये है की ये भिक्षा वृत्ति को अपराध बताता है। साथ ही पुलिस को ये अधिकार देता है की वो भिक्षुओ को पकाड कर किसी भी पंजीकृत संस्था में भेज सकते है। इस अधिनियम में ऐसे व्यक्ति को शामिल किया है जो कोई काम करे बिना भीख मांगता है तो वो अपराधी होगा , लेकिन यही कोई गाना गाकर, नृत्य करके, प्रदर्शनी देके या भविष्य बताकर भिक्षा मांगता है तो वो अपराधी नहीं होगा।
इस सब में भिक्षा वृत्ति करते हुए पकडे जाने पर पहले तीन साल के लिए, दूसरी बार पकडे जाने पर 10 साल के लिए सजा देना का प्राविधान है। इसके साथ ही पकडे जाने वाले व्यक्ति को किसी पंजीकृत स्थान में भेजा जा सकता है। जहाँ अपराधियों से सामाजिक कार्य करवाया जाएगा और वो संस्था उन्हें सज़ा भी दे सकती है।
ये प्रावधान महाराष्ट में शुरू हुआ था जहाँ सार्वजनिक स्थानों में भीख मांग रहे और बिमारियों से पीड़ित भिखारियों को एक निश्चित स्थान में ले जा कर उनका इलाज करने के लिए शुरू किया था जो की बाद में गरीबी और अपंगता के कारण भिक्षा मांग रहे लोगों के लिए भी लागू हो गया। इस कानून का प्रयोग 2010 में हुए कॉमन वेल्थ गेम्स के आयोजन के दौरान हुआ जहाँ दिल्ली से बड़े पैमाने में भिखारियों को बहार निकाला गया। हलाकि इसके तहत भिखारियों को पकड़ा तो जाता है लेकिन उनके पुनर्वास के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये जाते है।
भिक्षा वृत्ति को रोकने के लिए उपाय
हाई कोर्ट के अनुसार ऐच्छिक भिक्षा वृत्ति और अनैच्छिक भिक्षा वृत्ति में फरक होना चाहिए। सरकार को इन दोनों से निपटने के लिए अलग अलग रानीति बनाने की आयश्यकता है। गरीबी से पीड़ित और बेरोजगारी से पीड़ित लोगों तक सरकार को मदद पहुंचने की आयश्यकता है। गंभीर बिमारियों से पीड़ित लोगों को और जो बच्चे भिक्षा वृत्ति को अपना रहे हैं उनको पुनर्वास के लिए भेजने की आयश्यकता है। पुनर्वास स्थानों में सुविधाएं जैसे बच्चो के लिए पढाई और लोगों के सामाजिक कार्य करने के लिए जागरूकता होनी चाहिए।
भिक्षार्थी रैकेट्स को जल्द से जल्द पकड़ के रोकने और दण्डित करने की आयश्यकता है। ताकि कोई भी भिक्षा वृत्ति का शिकार ना बने। सबसे जरूरी है इस टपके के लोगों के लिए संवेदनशीलता। हमे उन्हें जागरूक करने के जरूरत है ना की उनको भिक्षा देने की।
शिक्षा समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है यदि हर वर्ग शिक्षित हॉग तभी समाज उन्नति के शिखर में चढ़ेगा। आओ हम सब मिलकर खुद भी शिक्षित हों और इन वर्ग के लोगों को भी शिक्षित करें।
Mansi Joshi @ Samacharline