विशेषसाक्षात्कार

एक्सीडेंट के बाद भी नहीं थामे हौसले, व्हील चेयर के साथ उड़ी सपनों की उड़ान

 

परिंदों को नहीं दी जाती तालीम उड़ानों की 

वो तो खुद तय करते है मंज़िल आसमानों की,

रखते है जो हौसला आसमान छूने का,

उनको नहीं होती परवाह फिर गिर जाने की।

किसी ने बिलकुल सही कहा है, की अगर आपके हौसलों में जान है तो दुनियां की कोई भी ताकत आपको अपने लक्ष्य को छूने से नहीं रोक सकती, और ऐसी ही एक कहानी ही उत्तराखंड के, अल्मोड़ा जिले की रहने वाली गरिमा जोशी की। 

उत्तराखंड की बेटी गरिमा जोशी एक एथलीट है, राष्ट्रीय स्तर पर गरिमा गोल्ड मैडल समेत कई मैडल अपने नाम कर चुकी है। गरिमा ने नेशनल और रीजनल लेवल में 800,1500,3 km,5 km  ,और 10 km की दौड़ में कई स्वर्ण पदक अपने नाम किये है। उत्तराखंड की बेटी गरिमा ने देश के लिए ओलम्पिक खेलों में स्वर्ण पदक जीतने का सपना देखा था। लेकिन 21 साल की गरिमा के लिए ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। 

आइये जानते है गरिमा की हिम्मत भरी कहानी जिसे जान कर आप सभी उन्हें सलाम करने पर मजबूर हो जाएंगे

गरिमा उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले की रहने वाली है। उनकी प्रारंभिक शिक्षा केंद्रीय विद्यालय रानीखेत से हुई, और यहीं से उन्होंने खेल में अपने भविष्वा को चुना। सबसे पहले गरिमा ने 2013 में विद्यालय की तरफ से खेला और बहार जाकर अपने विद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। 2013 में ही उन्होंने देहरादून में आयोजित होने वाली एक मैराथन में हिस्सा लिया और तीसरा स्थान प्राप्त किया। इसके बाद 2014 में उन्होंने अहमदाबाद में होने वाले नेशनल गेम्स में हिस्सा लिया। इसी के अगले साल उन्होंने नेशनल बास्केटबाल चैम्पियनशिप भी खेली। 2016 में करनाल रेस में उन्होंने तीसरा स्थान प्राप्त किया। जिसके बाद 2016 में उत्तराखंड सरकार ने उन्हें सम्मानित भी किया और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ मुहीम में गरिमा को शामिल किया गया। इसके बाद गरिमा ने कई खेलों में हिस्सा लिया और कई पदक जीते

 27 मई 2018 को टीसीएस वोर्ल्स 10k रेस में हिस्सा लेने के लिए गरिमा बेंगलरू गयी जो की इंटरनेशनल एसोसिएशन ऑफ़ एथलेटिक्स फेडरेशन द्वारा संचालित की गयी थी, इस दौड़ में 11658  प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था जिसमे से गरिमा ने जेंडर बेसिस में छठा स्थान प्राप्त किया। इसके बाद उडुपी में होने वाली एक दौड़ में गरिमा हिस्सा लेने के लिए गयी थी इसी दौड़ के लिए गरिमा अपने ग्रुप के साथ दौड़ का अभ्याद कर रही थी इसी दौरान 31 मई 2018 को एक कार से उनकी टक्कर हो गयी। इस एक्सीडेंट के बाद गरिमा की ज़िन्दगी पूरी तरह से बदल गयी। एक्सीडेंट के बाद गरिमा व्हील चेयर पर गयी, डॉक्टर्स के मुताबिक उन्हें कम्पलीट स्पाइनल कॉर्ड इंजरी का सामना करना पड़ा, जिस कारण डॉक्टर्स ने उन्हें बताया की वो अब कभी भी चल नहीं पाएंगी।

उन्हें मणिपाल अस्पताल में भर्ती किया गया जहाँ उनका इलाज चल रहा था 2 जून 2018 को उनकी पहली सर्जरी हुई। गरिमा के परिवार की आर्थिक स्तिथि ठीक नहीं थी, जिस कारण उत्तराखंड सरकार ने मणिपाल अस्पताल में गरिमा के इलाज के लिए 13 लाख 10 हज़ार रुपया जमा किये। इसके बाद गरिमा को इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर बसंतकुंज नई दिल्ली में रेफेर कर दिया गया, वहां 2 महीने के कम्पलीट बीएड रेस्ट के बाद गरिमा ने अपनी ज़िन्दगी की नयी शुरुआत की। गरिमा का कहना थाअगर में अपने पैरों पर दौड़ नहीं सकती तो मैं हार भी नहीं मानूंगी। मैं व्हील चेयर में खेलों की तैयारी करुँगी और पैरालिम्पिक में भाग लेकर देश के लिए पदक जीतूंगी।इसी हौसले के साथ गरिमा ने 21 अक्टूबर 2018  को दिल्ली एयरटेल हाफ मैराथन में हिस्सा लिया ये दौड़ 3 km  की थी और चैम्पिन विथ डिसेबिलिटी, में गरिमा ने पहला स्थान प्राप्त किया। यही नहीं इसके बाद 2 दिसंबर 2018 को वोर्ल्स डिसेबिलिटी डे के उपलक्ष्य में गरिमा को सबदरगंज हॉस्पिटल दिल्ली में बुलाया गया और वहाँ भी 500 मीटर की दौड़ में गरिमा ने हिस्सा लिया और पहला स्थान प्राप्त किया। इसके बाद 10 दिसंबर 2018 को गरिमा ने 10 km की सुपरस्टीक रन में हिस्सा लिया और पहला स्थान प्राप्त किया। इसी के साथ 22 दिसंबर 2018 को गरिमा को शानहिन्द पुरूस्कार से सम्मानित किया गया। 2 फरवरी 2019 को गरिमा ने 10km रन में हिस्सा लिया और फिर से पहला स्थान प्राप्त किया।

इस सब के बाद भी गरिमा के परिवार में एक और दुःख का पहाड़ टूट पड़ा 3 मार्च 2019 को कैंसर के कारण गरिमा की माता जी की मृत्यु हो गयी। अपनी बेटी और अपनी पत्नी के इलाज के लिए गरिमा के पिता ने बैंक से ऋण लिए थे और अपना घर भी गिरवी रखवा दिया इलाज के पैसो की व्यवस्था के लिए उनके पिता ने अपनी नौकरी भी खो दी। इसके बाद भी जब उनके पिता ऋण नहीं चूका पाए तो हाई कोर्ट ने उनके घर को सील करने के आदेश भी दिए, लेकिन उनके पिता ने हाई कोर्ट से कुछ समय और देने की मांग की है। अभी तक गरिमा के इलाज में 45 लाख तक का खर्चा गया है, उनके पिता श्री पूर्ण चंद्र जोशी की सराहनीय बात ये रही की पत्नी को खोने के बाद और गरिमा के एक्सीडेंट के बाद भी उन्होंने गरिमा को हौसला दिया और हमेशा आगे बढ़ने के लिए कहा। गरिमा ने भी हार नहीं मानी और वो आगे बढ़ते रही। इसके बाद भी उन्होंने कई खेलों में हिस्सा लिया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर में मार्च 2019 में उन्हें फिर से एक पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके बाद जिस अस्पताल से गरिमा का इलाज चल रहा था गरिमा ने उसी अस्पताल के अंदर अभ्यास करना और खेलना शुरू किया। इसी दौरान गरिमा हरयाणा व्हील चेयर फेडरेशन के हेड प्रवीण कुमार से मिली और उन्होंने गरिमा को हरयाणा व्हील चेयर फेडरेशन की तरफ से खेलने को कहा। 6 जून 2019 को गरिमा ने मोहाली बास्केटबॉल नेशनल चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया और उन्हें बेस्ट नई कमर का अवार्ड भी दिया गया,और आज गरिमा हरयाणा व्हील चेयर बास्केटबॉल टीम की कप्तान है। इसके बाद जून 2019 में गरिमा बैंगलोर गयी और और आज वो पैरा एथलीट हैं, वो जैबलिन थ्रो, डिस्कस थ्रो जैसे खेल खेलती है और साथ ही व्हील चेयर में ही दौड़ती है। 

इसके बाद गरिमा को कई कार्यक्रमों में बतौर मुख्या अतिथि भी बुलाया जाता है, 15 अगस्त 2020 को सेंट्रल मॉल बैंगलोर में उन्हें झंडा रोहण के लिए बुलाया गया था और 26 जनवरी 2020 को बनारकट्टा सेंटल माल में झंडा रोहण के लिए बुलाया गया। 

इस समय गरिमा हिमालय सुपर वीमेन 10 km की ब्रांड एम्बेसडर है और वो 15-29 साल तक के एथलीट को ट्रेनिंग भी देती है। अभी तक गरिमा 10 स्वर्ण पदक, 10 ब्रॉन्ज पदक 5 सिल्वर पदक और 10 ट्रॉफीज अपने नाम कर चुकी है।

गरिमा का कहना है  कीहमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए जो हमारे पास अभी है उसके लिए ईश्वर का शुक्रगुज़जर होना चाहिए। चाहे कितनी ही बड़ी विपत्ति जाये हमे अपने अंदर नकारात्मक सोच पैदा नहीं करनी चाहिए इससे हमारे शरीर का ही नुक्सान होता है।” 

गरिमा आज पैरालम्पिक के लिए तैयारी कर रही है और देश के लिए पैरालम्पिक में स्वर्ण पदक जीतना चाहती है। हम गरिमा की हिम्मत को सलाम करते है और उनके उज्जवल भविष्य के लिए ईश्वर से कामना करते है। हम सबको को गरिमा से प्रेरणा लेनी चाहिए की ज़िन्दगी के हर हालात में हमे खड़े होकर हर कठिनाई का सामना करना सीखना चाहिए।

 

Mansi Joshi @samacharline