पूरी दुनिया में 3 सबसे बड़े महासागर हैं, प्रशांत, हिन्द और अटलांटिक। इन तीनों में सबसे बड़ा हैं प्रशांत महासागर और उसका ही एक हिस्सा हैं साउथ- चाइना समुद्र। साउथ- चाइना समुद्र को नाम मिला यूरोप से आने वाले जहाज़ीओ से, उनकी दिलचस्पी चाइना में चाय पत्ती और रेशम के कारण बहुत ज़्यादा बढ़ गयी थी। समुद्र का वो हिस्सा चाइना के दक्षिण दिशा में पडता था और इसलिए यूरोप से आने वाले जहाज़ी उसे साउथ- चाइना समुद्र के नाम से पुकारने लगे और वक़्त के साथ उस जगह का नाम साउथ- चाइना समुद्र पड़ गया। लेकिन अपने नाम से विपरित यह हिस्सा चीन का नहीं हैं।
चीन के अलावा इस इलाके में और भी बहुत से देश माजूद हैं जिनमें शामिल हैं ताइवान जो की इस इलाके के उत्तर में पडता हैं, दक्षिण में हैं इन्डोनेशिया और ब्रुनेई, पश्चिम में हैं वियतनाम मलेशिया और सिंगापुर, पूर्व में हैं फिलीपींस। साउथ- चाइना समुद्र पूरे दुनिया के लिए इसलिए ज़रूरी हैं क्यूकी इस इलाके से दुनिया का कच्चे तेल का कारोबार लगभग 30% और प्रकृतिक गैस का कारोबार लगभग 40% हो कर गुज़रता हैं। अगर सारी चीज़ों को मिला ले तो इस रास्ते से लगभग 2 लाख अरब रुपए से ज़्यादा का व्यापार होता हैं। यह रकम लगभग भारत की समूची अर्थ- व्यवस्था के बराबर हैं। व्यापार तो सिर्फ एक पक्ष हैं, साउथ- चाइना समुद्र में बहुत अधिक मात्रा में प्रकृतिक गैस और तेल का भंडार हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार साउथ- चाइना समुद्र में लगभग 500 लाख करोड़ घन (Cubic) फीट प्रकृतिक गैस का भंडार हैं और कच्चा तेल लगभग 12,500 करोड़ बैरल, एक बैरल में लगभग 159 लिटर तेल। पूरी दुनिया में जितनी मछ्ली पकड़ी जाती हैं उसका 10% हिस्सा साउथ- चाइना समुद्र से आता हैं।
साउथ- चाइना समुद्र से चीन के अलावा लगभग 7 देश और जुड़े हैं। इन सब देशो का कहीं न कहीं साउथ- चाइना समुद्र में हिस्सा बंता हैं लेकिन चीन इस इलाके में केवल अपना राज चालना चाहता हैं। चीन साउथ- चाइना समुद्र के 80% से ज़्यादा हिस्से पर अपना दावा करता हैं और इस हिस्से में लगभग सारा प्रकृतिक गैस और तेल का भंडार आता हैं।
चीन का कहना हैं की साउथ- चाइना समुद्र का सारा हिस्सा केवल उसका हैं। चीन के अनुसार वहाँ का समुद्र, द्वीप और आसमान केवल चीन का हैं। चीन के अनुसार वहाँ से गुज़रने वाले पानी के जहाज़ और हवाई जवाज़ को उसकी इज़ाजत लेनी चाहिए। लेकिन चीन का यह दावा जायज़ नहीं हैं। यह दावे अंतरराष्ट्रीय कानून के खिलाफ हैं लेकिन इस क्षेत्र में चीन किसी प्रकार के भी कानून को नहीं मानता और यही वजह हैं वहाँ के विवाद की।
Shubham Gupta @samacharline