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करगिल युद्ध की गेमचेंजर वो स्क्वॉड्रन जो राफेल से होगी लैस

करगिल की लड़ाई में ऑपरेशन सफेद सागर के दौरान गोल्डन एरो ने विंग कमांडर और पूर्व वायुसेना प्रमुख बी एस धनोआ के नेतृत्व में शानदार काम किया है. 27 मई 1999 को स्क्वाड्रन के लीडर अजय आहूजा मिशन पर थे, तभी एक मिसाइल ने उनके विमान को निशाना बनाया.

फ्रांस से भारत आ रहा 5 राफेल लड़ाकू विमानों का बेड़ा एयरफोर्स के 17वें स्क्वॉड्रन में तैनात होंगे. इस स्क्वॉड्रन को गोल्डन एरोज (The Golden Arrows) के नाम से जाना जाता है.

इंडियन एयरफोर्स के इतिहास में 17वें स्क्वॉड्रन का नाम गर्व से लिया जाता है. अंबाला के एयरफोर्स स्टेशन में स्थित ये वही स्क्वॉड्रन है जिसने 1999 में करगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी ठिकानों को ध्वस्त कर दिया था. तब इस स्क्वॉड्रन की कमांड पूर्व एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ के हाथों में थी. तव वे इस स्क्वॉड्रन के विंग कमांडर थे.

 

करगिल युद्ध में गरजे थे युद्धक विमान

करगिल की लड़ाई में ऑपरेशन सफेद सागर के दौरान गोल्डन एरो ने विंग कमांडर और पूर्व वायुसेना प्रमुख बी एस धनोआ के नेतृत्व में शानदार काम किया.

27 मई 1999 को स्क्वाड्रन के लीडर अजय आहूजा मिशन पर थे, तभी एक मिसाइल ने उनके विमान को निशाना बनाया. दरअसल वे एक पायलट को तलाश कर रहे थे तभी पाकिस्तान के जमीन से हवा में मार करने वाले मिसाइल ने उनके विमान को निशाना बनाया, वो अपने विमान से निकलने में कामयाब रहे, लेकिन दुश्मन के साथ युद्ध के दौरान वे वीरगति को प्राप्त हुए. मरणोपरांत भारत ने उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया. इस घटना के बाद 17 वें स्क्वाड्रन के पायलटों ने पाकिस्तान के ठिकानों पर गोले-बारूद की बरसात कर दी.

2016 में किया गया था भंग

17वें स्क्वॉड्रन के बमबर्षक में मिग-21 प्रमुख रूप से शामिल थे. जब देश में मिग-21 विमानों की दुर्घटना ज्यादा होने लगी तो इस विमान को वायुसेना से बाहर किया जाने लगा. इसके बाद 2016 में इस स्क्वॉड्रन का विघटन कर दिया था. लेकिन राफेल मिलने के साथ ही 17वें स्क्वॉड्रन को फिर से सक्रिय किया गया है.

पाक सीमा से मात्र 220 किलोमीटर दूर

अंबाला में स्थित ये स्क्वॉड्रन वेस्टर्न एयर कमांड का हिस्सा है. पाकिस्तानी सीमा से नजदीक स्थित होने के कारण इस एयरफोर्स स्टेशन की सामरिक भूमिका अहम और संवेदनशील है. बता दें कि अंबाला से मात्र 220 किलोमीटर की दूरी पर भारत-पाक की सीमा है. ध्वनि की रफ्तार से तेज चलने वाले वायुसेना के आधुनिक विमानों के लिए इस दूरी को तय करना मात्र कुछ मिनटों का खेल है.

17वें स्क्वॉड्रन का इतिहास 69 साल पुराना है. आजादी के बाद 1 अक्टूबर 1951 को फ्लाइट लेफ्टिनेंट डी एल स्प्रिंगेट के कमांड में इस स्क्वॉड्रन का गठन किया गया था. उस वक्त ये स्क्वॉड्रन हॉर्वर्ड-II B एयरक्राफ्ट से लैस था. 1975 में इस स्क्वॉड्रन को मिग-21 M विमानों से लैस कर दिया गया था.

वायु सेना के इस स्क्वॉड्रन ने दिसंबर 1961 में गोवा को आजाद कराने में सक्रिय रूप से भागीदारी दी. 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान भी ये रिजर्व फोर्स के रूप में काम किया. 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान भी इस स्क्वॉड्रन ने सेना को एयर सपोर्ट, रेकी मिशन में मदद दिया.

 

राफेल के साथ जाग उठा गौरवशाली इतिहास

2016 के बाद सितंबर 2019 में वायुसेना के 17वें स्क्वॉड्रन, द गोल्डन एरोज को एक बार फिर से बहाल कर दिया गया. सरकार ने फैसला किया कि नए राफेल लड़ाकू विमानों की तैनाती यहीं पर की जाएगी. इसी के साथ ही हवा के ये जांबाज राफेल की ताकत के लैस भारत के नीले अंबर की हिफाजत करने को फिर से तैयार है.