नई दिल्ली – गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना मामले के दोषी, मशहूर वकील प्रशांत भूषण को 24 अगस्त तक बिना शर्त माफी मांगने की मोहलत दी। जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अदालत उन्हें 24 अगस्त तक की मोहलत देगी और केस की अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी।
जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, “इस धरती पर ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो ग़लती नहीं कर सकता है। आप सौ अच्छे काम कर सकते हैं, लेकिन वो आपको 10 अपराध करने की इजाज़त नहीं देते। जो हुआ, सो हुआ। लेकिन हमलोग चाहते हैं कि व्यक्ति विशेष (प्रशांत भूषण) को इसका कुछ पछतावा तो हो।”
हालाँकि प्रशांत भूषण ने कहा कि उनके बयान में कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा और इससे कोर्ट के समय की बर्बादी होगी।
उन्होंने कहा, “अगर अदालत चाहती है तो मैं इस पर दोबारा विचार कर सकता हूँ, लेकिन मेरे बयान में कोई ख़ास बदलाव नहीं होगा। मैं अदालत का समय नहीं बर्बाद करना चाहता हूँ।”
गौरतलब है कि अटॉर्नी जनरल, यानी कि मोदी सरकार के सबसे बड़े वकील के के वेणुगोपाल ने कोर्ट से प्रशांत भूषण को सज़ा ना देने की सिफारिश की। उन्होंने कहा कि भूषण को पहले ही दोषी करार दिया गया है, इसलिए उन्हें सजा ना दी जाए।
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि उनके पास सुप्रीम कोर्ट के पाँच जजों की लिस्ट है, जो कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र को फ़ेल किया है। वेणुगोपाल ने आगे कहा कि उनके पास पूर्व जजों के बयान का अंश है, जिसमें वो कहते हैं कि ऊपरी अदालतों में बहुत भ्रष्टाचार है।
लेकिन जस्टिस अरुण मिश्रा ने उन्हें बीच में ही रोककर कहा कि अदालत मेरिट पर सुनवाई नहीं कर रही है। ऊपर से भूषण का बयान और उनका लहजा इसको और खराब बना देता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत तब नरमी बरतती है जब माफी मांगी जाती है,जब तक भूषण माफी नहीं मांगते तब तक वेणुगोपाल की अपील नहीं मानी जा सकती है।
सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए अपनी दलील में कहा कि कोर्ट के अवमानना का दोषी ठहराए जाने पर वह बहुत दुखी हैं। उन्होंने कहा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए आलोचना की जगह होना बहुत जरूरी है।
भूषण ने कहा, “मेरे ट्वीट, जिन्हें अदालत की अवमानना का आधार माना गया, वो मेरी ड्यूटी हैं, और कुछ नहीं। उन्हें संस्थानों को बेहतर बनाये जाने के प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए। जो मैंने लिखा, वो मेरी निजी राय है, मेरा विश्वास और विचार हैं, और मुझे अपनी राय रखने का अधिकार है।”
महात्मा गांधी का हवाला देते हुए भूषण ने कहा, “न मुझे दया चाहिए न मैं इसकी मांग कर रहा हूं। मैं दरियादिली भी नहीं चाह रहा. कोर्ट जो भी सज़ा देगा, मैं ख़ुशी से स्वीकार करने को तैयार हूं।”
अंत में अदालत ने निर्णय लिया कि न्यायिक वाद-विवाद कार्यवाही उसी सुनवाई में पूरी कर सकते हैं और बेंच भूषण को उनके टिप्पणी पर विचार करने का मौका देगी।
प्रशांत भूषण ने मुख्य न्यायधीश और चार अन्य पूर्व मुख्य न्यायधीशों को लेकर दो ट्वीट किए थे जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने ‘न्यायालय पर अभद्र हमला’ बताते हुए भूषण को कोर्ट की अवमानना का दोषी ठहराया।
जबकि इसके जवाब में प्रशांत भूषण ने कहा था कि ‘विचारों की स्वतंत्रता अदालत की अवमानना नहीं हो सकती।’
Julie Kumari @samacharline