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कोरोना वायरस के दोबारा संक्रमण और इम्यूनिटी पर आई अच्छी खबर

कोरोना वायरस का कहर पूरी दुनिया में जारी है. हॉन्ग कॉन्ग, इटली और अमेरिका में ठीक होने के बाद कोरोना के दोबारा संक्रमण होने के मामले सामने आने के बाद लोग घबराने लगे हैं. रीइंफेक्शन के मामले जिस तरह से बढ़ रहे हैं लोगों के मन में इम्यूनिटी को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं. हालांकि एक नई स्टडी ने लोगों को एक राहत की खबर सुनाई है.

आइलैंड के लोगों पर की गई ये स्टडी न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुई है. स्टडी ने रीइंफेक्शन और इम्यूनिटी को लेकर लोगों की आशंकाओं को दूर किया है. स्टडी के लिए शोधकर्ताओं ने 30,576 लोगों से सीरम के सैंपल लिए और छह अलग-अलग तरह की एंटीबॉडी टेस्टिंग की. शोधकर्ताओं ने पाया कि कोरोना से ठीक हो चुके 1,797 लोगों में से 91.1 फीसदी लोगों में अच्छे स्तर की एंटीबॉडी थी.

स्टडी में कहा गया है कि एंटीबॉडी के इस स्तर में चार महीनों तक कोई कमी नहीं देखी गई. बुजुर्ग लोगों में इम्यून रिस्पॉन्स ज्यादा पाया गया. कोरोना वायरस सबसे ज्यादा और गंभीर तरीके से बुजुर्गों को ही प्रभावित करता है. ऐसे में बुजुर्गों में अधिक इम्यून रिस्पॉन्स का पाया जाना निश्चित रूप से एक अच्छी खबर है. कारगर वैक्सीन के लिए भी ज्यादा इम्यून रिस्पॉन्स होना अच्छी खबर है.

स्टडी के अनुसार शोध में लोगों में पाए गए ज्यादा इम्यून रिस्पॉन्स से इस बात की पुष्टि होती है कि पहली बार कोरोना से ठीक होने के बाद रीइंफेक्शन के मामले बहुत ही कम आते हैं. ऐसा माना जाता है कि कोरोना वायरस फैलने से रोकने के लिए लगभग 70 फीसदी आबादी में एंटीबॉडी होना जरूरी है. स्टडी में आइलैंड के 1 फीसदी से भी कम लोगों में कोरोना वायरस पाया गया.

डॉक्टरों का कहना है कि पहले संक्रमण की तुलना में दूसरा संक्रमण बहुत हल्का होता है. पहली बार हुए संक्रमण की वजह से शरीर में लड़ने की क्षमता पैदा हो जाती है जो दूसरी बार वायरस को कमजोर कर देती है.

हालांकि ये कहना अभी जल्दबाजी होगी कि ये एंटीबॉडी शरीर में कितनी देर तक रहता है. ये भी हो सकता है कि समय के साथ-साथ इम्यूनिटी कम होती जाए और शरीर फिर से वायरस के संपर्क में आ जाए. स्टडी का कहना है कि फिलहाल हमें घबराने की जरूरत नहीं है.

कोरोना वायरस को रोकने के लिए फिलहाल हर्ड इम्यूनिटी और वैक्सीन से ही लोगों की उम्मीद है. वैक्सीन की खोज पूरी दुनिया में तेजी से की जा रही है. वहीं उपलब्ध तथ्यों से पता चलता है कि शरीर अपने बचाव के लिए एक संरचना तैयार कर लेता है.

कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में वैक्सीन को एक गेम चेंजर के रूप में देखा जा रहा है. उम्मीद की जा रही है कि वैक्सीन से मिली एंटीबॉडी लंबे समय तक टिकी रहेगी.