विशेषसाक्षात्कार

INTERVIEW : मोना लिसा, वेस्ट मैनेजमेंट एक्सपर्ट

मोना लिसा पटना स्थित मिथिंगा वेस्ट मैनेजमेंट कंपनी की मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। वह CA की पढ़ाई कर रही थी लेकिन बीच में उन्होंने ने पढ़ाई छोड़ वेस्ट मैनेजमेंट  के क्षेत्र में काम करने का निर्णय लिया। वें कोका कोला, यूएनडीपी और पीएमसी जैसे संस्थानों के साथ मिलकर इस क्षेत्र में काम कर चुकी हैं। जुली कुमारी के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने अपने अनुभव और अपने कंपनी के कामकाज के तौर-तरीके पर बात की।

1.हमें जानकारी मिली है कि आप CA की तैयारी कर रही थी और अपने बीच में पढ़ाई छोड़कर वेस्ट मैनेजमेंट के फील्ड में काम करने का फैसला किया। आप हमें बता सकती है कि आपको ऐसा क्यों लगा हो आपको इस फील्ड में काम करना चाहिए?

मुझे नहीं लगता कि अचानक से कुछ ऐसा हुआ।जब मैं छोटी थी, शायद सातवीं-आठवीं कक्षा में तभी मैंने सोच लिया था कि मुझे वेस्ट मैनेजमेंट के क्षेत्र में काम करना है। और किसी फील्ड में जाना ही नहीं था। लेकिन एक साधारण मिडिल क्लास परिवार से होने के कारण मुझे कभी यह नहीं सिखाया गया कि एक कंपनी कैसे चलाते हैं। पटना में भी पी एस ओ और सरकारी संस्थानों को छोड़ के कोई कंपनी नहीं काम कर रही। कोई प्राइवेट कंपनी इतनी बड़ी नहीं है कि आप यह सोच सके कि हां यह कुछ है। जब मैं 11वीं मैं गई तो मुझे CA  के बारे में पता चला कि आप इंटरमीडिएट के बाद एक कंपनी के सारे पुर्जों के बारे में जान सकते हैं, कि कंपनी कैसे काम करती है। मेरे लिए यह एक बहुत ही अच्छा मौका था। मैंने CA  लिया, लेकिन जैसे आपको भी पता है कि CA  की पढ़ाई आसान नहीं होती है। सीपीटी पहले अटेम्प्ट में निकल गया आईपीसी भी 1-2 अटेम्प्ट में निकल गया। पर फाइनल्स में बहुत समय जा रहा था। इसी बीच मैं वेस्ट मैनेजमेंट संस्थाओं के साथ भी काम कर रही थी। तो मैंने सोचा कि अगर आगे चलकर मुझे यही करना है तो समय बर्बाद करने का कोई मतलब नहीं है। इसलिए मैंने फैसला किया कि अब मुझे अपना पूरा ध्यान इसी पर देना है।

  1. मिथिंगा वेस्ट मैनेजमेंट के बारे में कुछ बताइए कि आप लोग कैसे काम करते हैं या फिर अभी तक आप लोगों ने क्या कुछ किया है।

मिथिंगा एक असामी शब्द है जिसका मतलब होता है प्रकृति। मैं कंपनी के लिए बहुत से नाम सोच रही थी आखिर में  मुझे यह नाम पसंद आया। मैंने नवंबर 2018 में इस कंपनी की शुरुआत की लेकिन उससे पहले मैं गुजरात, उत्तराखंड और दक्षिण भारत के कुछ शहरों में अलग-अलग एनजीओस के साथ काम कर चुकी थी। वहाँ मैंने बायोगैस, हॉर्टिकल्चर और वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर काम किया। फिर मैं वापस आई और मैंने अपनी खुद की कंपनी की शुरुआत की। लेकिन उसके बाद मुझे तकरीबन 3 साल लगे पहला प्रोजेक्ट मिलने में।  डेढ़ साल तक हमने जगह-जगह कभी स्वच्छता पखवाड़ा आयोजित किया, कभी क्लेणलीनेस कैंपेन चलाया। हमने फॉरेस्ट डिपार्टमेंट और पीएमसी के साथ भी काम किया। हमने उन्हें दिखाया कि कैसे हम पार्क का वेस्ट पार्क में ही मैनेज कर सकते हैं। हमने प्लास्टिक बैन करवाए, इको फ्रेंडली प्रोडक्ट्स को बढ़ावा दिया, लेकिन हम कुछ बड़ा नहीं कर पा रहे थे। एक समिट में हमें किसी तरह के यूएनडीपी के एसडीजी सचिव के साथ 2 मिनट का समय मिला। उन्होंने हमसे कंपनी का प्रोफाइल मांगा। तब जाकर पटना में हमें अपना पहला वेस्ट मैनेजमेंट प्रोजेक्ट मिला। अभी भी हमें काम के हिसाब से बहुत कम पैसे मिलते हैं। हम बजट देकर काम करते हैं तो क्वालिटी पर असर पड़ेगा और हमें इस फील्ड में बने रहने के लिए क्वालिटी को बनाए रखना है। पिछले 3 महीनों में हम कई सोसाइटीज के साथ काम कर चुके हैं जिसमें करीब 10000 लोगों के बीच जागरूकता फैलाने का काम किया गया। हमने पूरे वार्ड नंबर 23 में काम किया और अब वहां 80% वेस्ट अलग-अलग करके प्लास्टिक वेस्ट रेसीयकलिंग होने जा रहा है, हम पीएमसी के जरिए पूरा डंपिंग ग्राउंड मैनेज करेंगे और उनका जो गीला कचरा है उसे हम ग्राउंड में ही कंपोस्ट करेंगे। मेडिकल वेस्ट को छोड़कर वहां कोई भी वेस्ट अन रिसायकल नहीं होगा। यह अपने तरह का पहला प्रोजेक्ट है जिसे हम आगे चलकर पुरे पटना में लाना चाहते हैं।

3.इस वक्त  देश भर में महामारी चल रही है उसके के कारण लोगों के बीच डर माहौल बना हुआ है। और हमारे जो सफाई कर्मी हैं, जिन्हें हमने प्यार से कोरोना वारियर्स का नाम दिया है, उन्हें सबसे ज्यादा संक्रमण का खतरा है। ऐसे समय में मेडिकल वेस्ट से निपटने के लिए कोई ख़ास तरीका अपनाया जा रहा है?

फ्रंटलाइन वर्कर्स, जो हर दिन हमारा कचड़ा हमारे घर से लेकर जाते हैं, साफ़ सफाई कर रहे हैं, लोकडाउन में जब सारी वदुनिया घर में बैठी थी, तब भी वह काम कर रहे थे। आज तक मुझे यह सुनने को नहीं मिला कि हम बीमार हैं या हमें कोरोना हो गया। कहीं न कहीं उनकी इम्यूनिटी काफी अच्छी है। लेकिन चुकी इस समय महामारी चल रही है, हम उन्हें पीएमसी और यूएनडीपी के जरिए लगातार दस्ताने, मास्क और सैनिटाइजर वगैरह मुहैया कराने की कोशिश कर रहे हैं। इनके बीच हम सतर्कता फैलाने का काम कर रहे हैं। यहां तक कि हम लगातार उनके घर की महिलाओं से भी बात कर रहे हैं और उन्हें पर्सनल हाइजीन के बारे में बताते रहते हैं। इस समय अगर हम अपनी तरफ से उन्हें कुछ दे सकते हैं तो वह है सम्मान। अगर आप देखो तो कोरोना वारियर्स होने के बावजूद वह हर किसी से गाली सुन रहे हैं। वह कचड़ा उठाते हैं तो भी गाली सुनते हैं, नहीं उठाते हैं तो भी गाली सुनते हैं। हमारे लिए वह जो कर रहे हैं उसके बदले में हम उन्हें कुछ दे नहीं सकते। कम से कम हमें उन्हें उनके हक का सम्मान तो देना ही चाहिए।

  1. मिनिस्ट्री ऑफ हाउसिंग एंड अर्बन अफेयर्स ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में पटना को ‘डर्टीएस्ट सिटी ऑफ इंडिया’ घोषित किया है। इस बारे में आप कुछ टिप्पणी करना चाहेंगी?

यह बात हम लोग बचपन से जानते थे। यह कोई नई बात नहीं है। यह पेपर पर आ रहा है 3 सालों से स्वच्छता सर्वेक्षण में, लेकिन जब भी मैं बाहर रही तो पटना का इंट्रोडक्शन ही होता था कि यार तुम लोग तो डंपिंग ग्राउंड पर रहते हो! हां, लेकिन पूरा जरूर लगता है कि आपका शहर इतना गंदा है। लेकिन वेस्ट मैनेजमेंट में होने के कारण मेरे लिए यह एक बड़ा अवसर है। कोई नहीं कर रहा, हम लोग कहीं ना कहीं पहले हैं। हमने कहा ठीक है… आज सबसे गंदा शहर है ना? हम  जिम्मेदारी लेंगे और मेहनत करेंगे। हम इसकी रैंकिंग में सुधार लाएंगे। जिस गति से हम लोग काम कर रहे हैं उसके मुताबिक पटना को स्वच्छता में तीसरे या चौथे पायदान पर आने में ज्यादा समय नहीं लगेगा और अगर पीएमसी का सहयोग रहा, तो पहले पायदान पर आने में भी ज्यादा समय नहीं लगेगा।

  1. वाटर लॉगिंग पटना में एक बहुत बड़ी समस्या है। हर साल थोड़ी सी बारिश ज्यादा होती है, कई रिहाइशी इलाकों में पानी जम जाता है। यह समस्या ज्यादातर बंद नालों और खराब व्यवस्था की वजह से होती है। आपके हिसाब से सरकार को क्या कदम उठाने चाहिए जिससे हालातों को सुधारा जा सके?

हमारे देश में अगर किसी के पैर में कांटा चुभता है ना तो हम बोलते हैं कि कांटा चुभ गया। यह नहीं बोलते कि हमने कांटे पर पैर रख दिया। वॉटर लॉगिंग के साथ भी ऐसा ही है। हम लोग यह बोल रहे हैं कि नालों में प्लास्टिक जमा हो जा रहा है और सरकार कुछ नहीं कर रही। यह प्लास्टिक आ कहां से रहा है? जब आप सब्जी लेने जा रहे हैं तो आप यह नहीं सोचते कि आपको झोला लेकर जाना चाहिए। प्लास्टिक निकलते निकलते आपके घर के बाहर जमा हो जाता है, नालियों में चला जाता है। अगर आप इस्तेमाल करते भी हैं तो प्लास्टिक को अलग रखने की ज़हमत नहीं उठाते की रिसाइकल हो जाए, इधर उधर ना बिखरे।  लेकिन जब बारिश होती है और आपके घर में पानी आने लगता है तो आप सरकार पर दोष डालते हैं। यह सारी बीमारियां  घूम फिरके हमारे पास आ रही हैं। यह सब कहीं ना कहीं हमारे गंदगी फैलाने के चलते ही हो रहा है। हम चाहते हैं कि हमें चमचमाते सेब और चावल मिले जिनमें दुनिया भर के पेस्टिसाइड्स का इस्तेमाल होता है और यह भी चाहते हैं कि हमारी सेहत पर कोई असर न पड़े। सरकार को दोष देने से पहले खुद की जिम्मेदारी को समझें। मैंने देखा है मुनिसिपलिटी में जो लोग काम करते हैं उनपर कितना भार होता है। उन्हें दोषी ठहरा देने से कुछ नहीं होगा हमें अपनी आदतें सुधार नहीं होंगी।

  1. बायोडिग्रेडेबल और नॉन बायोडिग्रेडेबल वेस्ट के बारे में लोग बात करते हैं कि अलग अलग पेटी में रखें, लेकिन आज भी जब कचड़े वाली गाड़ी आती है तो लोग गिला सूखा सब एक ही डब्बे में लेजाकर दाल देते हैं। इस आदत को कैसे सुधारा जाए?

देखिए यह 60 साल की आदत है। इतनी जल्दी जाएगी नहीं। पहले लोगों को गाड़ी में कचड़ा डालने की आदत नहीं थी, अब हो गई ना? मुझे लगता है यह आदत डलवाने के लिए सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ेगा, क्योंकि वह जब तक आदत नहीं लगाएंगे तब तक लोगों से शिकायत नहीं कर सकते कि आप अलग-अलग कचरा क्यों नहीं दे रहे? मैंने देखा है कि  तीन-चार बार घर-घर जाकर समझाने के बाद लोग कूड़ा अलग अलग रखना शुरू कर देते हैं। उनको अभी यह समझने में भी परेशानी है कि सुखा क्या है, गीला क्या है! अगर प्लास्टिक की थैली भीग जाती है तो गीला कचरा नहीं हो जाता। जो किचेन वेस्ट है या गार्डन वेस्ट है ज्यादातर वह गीला कचरा होता है,जिसे हम कंपोस्ट कर सकते हैं। जो चीज़ें रीसाइकिल हो सकती हैं जैसे प्लास्टिक, पेपर, अल्मुनियम वगैरह सब सूखा कचरा है। अभी इस बात को पहले तो उन्हें समझाना पड़ेगा, दूसरा उन्हें मोटिवेट करना पड़ेगा और तीसरा उन्हें एहसास दिलाना होगा कि उनकी थोड़ी सी मेहनत से कितनी बीमारीयों और आपदाओं को टाला जा सकता है। एक बार वह ये बात समझ जाएंगे तो मुझे लगता है खुद अलग-अलग कछुआ रखने लगेंगे।

  1. एक आम आदमी किस तरह से सहयोग कर सकता है इस मुहिम को सफल बनाने में?

सबसे पहले तो अगर वह अपना कूड़ा ही अलग- अलग कर दे तो बहुत बड़ी बात है। अगर आपके घर के पास जमीन है तो आप पेड़ लगा सकते हैं। अगर सुविधा है तो घर का कूड़ा घर में ही कंपोस्ट भी कर सकते हैं। करना कुछ नहीं है बस गड्ढा खोदना है और कूड़ा डालना है। अगर घर का कूड़ा घर में ही कंपोस्ट हो जाए तो इससे अच्छा और क्या हो सकता है।

  1. इस ऑक्टोबर को स्वच्छ भारत अभियान को 6 साल पूरे हो जाएंगे, लेकिन अभी भी भारत पूरी तरह स्वच्छ नहीं हो पाया है। आपको क्या लगता है और कितना समय लग सकता है इस अभियान के सार्थक होने में?

1 दिन में तो भारत अमेरिका नहीं बनेगा। लेकिन स्वच्छ भारत के अलग-अलग चरण थे। जब यह शुरू हुआ तो पहला चरण था कि खुले में शौच को खत्म करें। जो कि अब लगभग हर जगह रुक गया है। दूसरा चरण था कि आप कचड़ा डस्टबिन में डालें, वह भी अब हो ही गया है। अब आया है कि कचड़ा अलग-अलग डालें। तो चीजें धीरे-धीरे हो रही है। सरकार जरूर सुस्ती से काम कर रही है, हम उससे भी धीरे काम कर रहे हैं। तो अभी समय तो काफी लगेगा पूरी तरह स्वच्छ होने में।

  1. हमारे पाठकों के लिए कोई ख़ास संदेश देना चाहेंगी?

हमें अपने घर के आस-पास जो जानवर हैं जैसे कि कुत्ते, गाय या सूअर के बच्चे या अलग-अलग चिड़िया, उनके साथ अच्छे से पेश आना होगा। मैंने कितनी बार देखा है कि अगर कोई कुत्तिया किसी बिल्डिंग में बच्चे दे देती है तो उसे और उसके बच्चों को भगा देते हैं। क्या चला जाएगा आपका? छोटा सा जगह लेंगे बस वो। बच्चे बड़े होंगे भाग जाएंगे! लेकिन उन्हें खदेड़ देने से आप अपनी मानवता तो मार ही रहे हैं साथ ही उन बच्चों को भी मार रहे हैं। अगर आप किसी गाय को रोज दो रोटी खिलाते हो तो इससे आपका कुछ नहीं जाएगा मगर उस गाय का पेट भरेगा। और साथ ही जो लोग आप को देखेंगे उन पर भी असर होगा। आप चेतना जगाने का काम करेंगे। अगर आप कोई अच्छा काम करते हैं तो हो सकता है आपको तुरंत परिणाम ना मिले लेकिन आगे चलकर मिलता ही है। कुछ ना मिले तो मन की शांति मिलती है। और इसी चीज की हमें सबसे ज्यादा जरूरत है। मैं पटना में हमेशा देखती हूं कि सब लोग हमेशा गुस्से में रहते हैं, मारपीट के लिए एकदम   तैयार! इन सब चीजों को खत्म करना होगा और यह तभी होगा जब हम एक दूसरे की मदद करेंगे। हमें अच्छे से रहना होगा, हमें मुस्कुरा के एक दूसरे से मिलना होगा। बस मैं कहना लोगों से इतना ही कहना चाहती हूं कि मिल के रहे एक दूसरे का सहयोग करें।

Julie kumari  @samacharline