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चुनाव का दोस्त,शादियों का दुश्मन कोरोना।

आमसभा हो सकती है,रोड शो हो सकता है,भीड़भरा जनसंपर्क हो सकता है,सारी हिदायते ताक में रखकर मतदान हो सकता है,विजय जुलूस निकल सकता है,पर मेरे भाई शादी-विवाह या अन्य मांगलिक कार्य नही हो सकते है।

क्यो…चुनाव प्रेमी कोरोना कहर ढा रहा है,भोपाल में जब तक सरकार चुनाव में लगी थी कोरोना कम था,जैसे ही सरकार ने आसन ग्रहण किया, कोरोना भी वोट और सीट की तरह बढ़ गया।

एक दल के सारे अ-नाथ नेताओं को कोरोना आ चुका है,दूसरे दल के तारणहार भी सब चपेट में आ गए।
फिर अब किसकी चिंता करे। जनता तो हालात से सीखकर ही समाधान खोजती है,सरकारे तो केवल रशीदी टिकट की तरह ही है,प्रशासन भी सरकार की फ्रेम में ही रहना चाहता है।

कोरोना के नाम पर शादी में रोक,बैंडबाजे पर रोक,मांगलिक कार्यो पर रोक,मास्क के नाम पर अतिवादी रवैया,क्या है यह सब।
लोकतंत्र में सारे जूते सिर्फ जनता को ही खाने है।
सरकार व्यवहारिक सोच से चलती है,प्रशासन का क्रियान्वयन भी परिस्थिति के अनुरूप होना चाहिए।
नियम बनाइए, उनका पालन भी कराइए पर अतिवादी रवैया ठीक नही है।
कोरोना की गाइडलाइंस कोई संविधान नही है,इसका पालन समय और परिस्थितियों के अनुरूप होना चाहिए।
मास्क के नाम पर जो अतिवादी कार्यवाई हो रही है उसकी वैधानिकता पर सवाल उठ रहे है।
साहिबानों ने तो ऑर्डर निकाल दिया अब उसका मनमाना क्रियान्वयन ट्रैफिक चालान की तरह हो रहा है।
ये पब्लिक है सब जानती है।
कोरोना को हराने की जिम्मेदारी सबकी है। इसलिए सबको साथ लीजिए-सबका विश्वास जीतिए।
अपन तो केवल बता रहे है,बाकी अलम्बरदार जाने।

प्रकाश त्रिवेदी
संपादक