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पांच साल से बॉलिंग एंड पर सिद्धू, अब अमरिंदर से स्ट्राइक लेने पर अड़े

सिद्धू को भी फिर सीएम बनने की उम्मीद है, केजरीवाल भी पंजाब में अपनी धमक दिखाना चाहते हैं, ऐसे में ये देखना दिलचस्प रहेगा कि क्या ये स्टार प्रचारक पंजाब का असल स्टार बन पाएगा या नहीं.

नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब की राजनीति की एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्हें ‘स्टार प्रचारक’ तो कई बार बनाया गया, लेकिन असल स्टार या कह लीजिए सीएम कैंडिडेट बनने का सपना कभी पूरा नहीं किया गया. बीजेपी में रहे, लेकिन सीएम की कुर्सी दूर रही, आम आदमी पार्टी से ऑफर आया लेकिन बात नहीं बनी, फिर कांग्रेस में सफर शुरू किया तो अमरिंदर सिंह की ताजपोशी हो गई.

ऐसे में सिद्धू पंजाब की राजनीति में सक्रिय जरूर दिखे, लेकिन अब पंजाब चुनाव से पहले ‘सिंग अब किंग’ बनने के लिए अभी से हाथ पैर मारना शुरू कर दिया है.

पंजाब में कैप्टन बनाम सिद्धू

एक बार फिर पंजाब की सियासत उबाल मार रही है. विधानसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस के अंदर फूट पड़ गई है. कई विधायक अपने ही सीएम के खिलाफ बगावाती तेवर अपना रहे हैं. इस सब की वजह वो नवजोत सिंह सिद्धू बने हैं जिन्होंने पहले तो 2019 में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और फिर कैप्टन सरकार को ही आईना दिखाने में जुट गए, फिर चाहे वो 2015 का बरगाड़ी मामला हो या फिर सैंड या ड्रग माफिया में विफल रणनीति का होना.

अमरिंदर सिंह का पांच साल का कार्यकाल तकरीबन पूरा होने को है और टीम इंडिया के पूर्व सलामी बल्लेबाज रहे सिद्धू उनको और ज्यादा स्ट्राइक नहीं देना चाहते. वे नहीं चाहते कि अगले पांच साल वे पिछले पांच साल की तरह बॉलर एंड पर ही खड़े रहकर अपनी बल्लेबाजी का इंतजार करते रहें और अमरिंदर को सामने चौके-छक्के लगाते देखें. यहीं वजह है कि चुनाव से ठीक पहले पंजाब कांग्रेस दो गुटों में बंटती दिखाई पड़ रही है. एक तरफ अमरिंदर का कैंप खड़ा है तो दूसरी तरफ सिद्धू का गुट.

सिद्धू स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स

सवाल ये है कि नवजोत सिंह सिद्धू अगर पंजाब की राजनीति का एक बड़ा चेहरा हैं, तो उनका सीएम बनने का सपना पूरा क्यों नहीं होता है? वो कौन सी बातें हैं जो हर बार सिद्धू को राजनीतिक ठोकरें खाने को मजबूर कर देती हैं? इसका जवाब सिद्धू के राजनीति करने के स्टाइल में छिपा हुआ है. बल्कि सिर्फ राजनीति नहीं उनका क्रिकेट करियर भी कुछ ऐसा ही रहा है.

उनका सिंपल फंडा है, वे बेबाकी से बोलते हैं, फिर उनके बयानों पर विवाद होता है. वो विवाद उन्हें पार्टी से दूर करते हैं. वो दूरी सिद्धू को पार्टी से नाराज करती है. फिर पार्टी सिद्धू को मनाने का प्रयास करती है. बात बन गई तो ठीक वरना सिद्धू अपना रास्ता ही बदल लेते हैं. नवजोत सिंह सिद्धू की यही राजनीति शैली रही है. जब तक उनके मन मुताबिक काम हुआ, वो खुश रहे, जैसे ही उनसे ज्यादा किसी दूसरे को तवज्जो दी गई, वे अपनी राह बदल लेते हैं.

25 साल पहले टीम इंडिया में जो हुआ

ये सिद्धू की राजनीति का वो पैटर्न है जो आज से 25 साल पहले साफ हो गया था. ये वो दौर था जब सभी नवजोत सिंह सिद्धू को बतौर नेता नहीं बल्कि एक विस्फोटक ओपनिंग बेट्समैन के रूप में जानते थे. साल 1996 में भारतीय क्रिकेट टीम इंग्लैंड के दौरे पर गई थी. उस टीम के कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन थे. लेकिन उस दौरे पर कुछ ऐसी गलतफहमियां पैदा हो गईं कि सिद्धू को लगने लगा कि अजहरुद्दीन उन्हें बात-बात पर गाली देते हैं. अब सिद्धू चाहते तो इस बारे में सीधे अजहरुद्दीन से बात कर सकते थे, लेकिन उन्होंने बिना किसी को बताए भारत जाने का मन बना लिया.

वे एक दौरे को बीच में छोड़ ही स्वदेश लौट आए. इस घटना के बारे में उस समय के बीसीसीआई अध्यक्ष जयवंत लेले ने अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘आई वॉज देयर- मेमॉयर्स ऑफ ए क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेटर’ में विस्तार से बताया था. कहा गया था कि मोहम्मद अजहरुद्दीन, सिद्धू को ‘मां’ से जुड़ा कुछ कहते थे. अब सिद्धू उसे गाली समझ बैठे, लेकिन बाद में मोहिंदर अमरनाथ ने बताया कि हैदराबाद में प्यार व्यक्त करने का ये भी एक तरीका होता है. उन्होंने ही सिद्धू को समझाया था और कुछ महीनों बाद वो विवाद ठंडा पड़ा और सिद्धू की टीम में वापसी हो गई.

सिद्धू की शैली और सीएम पद का सपना

ये किस्सा बताता है कि सिद्धू का हमेशा से ही अटैकिंग स्टाइल रहा है. वे ज्यादा सोचने में विश्वास नहीं रखते हैं, उन्हें हमेशा से ही सीधा बोलना और सीधा खेलना ही पसंद रहा है. इस समय जो पंजाब कांग्रेस की स्थिति देखने को मिल रही है, वहां भी सिद्धू का यहीं अंदाज जिम्मेदार है. उन्होंने कई मुद्दों को लेकर खुद को पार्टी और सीएम अमरिंदर से अलग कर लिया है. बात तो करना चाहते हैं, लेकिन अपनी शर्तों पर. दोस्ती का हाथ भी बढ़ाना चाहते हैं, लेकिन सिर्फ तब जब उन्हें कुछ ‘बड़ा’ दिया जाए. ये हाल सिर्फ तब नहीं है जब उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा है. जब तक बीजेपी में रहे थे, तब भी उन्होंने यहीं तेवर दिखाए थे. पार्टी को कई बार कह देते थे कि अकाली के साथ गठबंधन तोड़ दिया जाए, उनकी पत्नी भी खूब साथ देती थीं. लेकिन बात नहीं बनती तो फिर नाराज हो जाते. लगातार नोकझोक के बाद सिद्धू ने बीजेपी तो छोड़ दी, लेकिन फिर कांग्रेस में भी उनका वहीं हाल हुआ.

अमरिंदर से पहले दिन से है टकराव

2017 के पंजाब विधानसभा चुनाव में अमरिंदर सिंह कांग्रेस के लिए बड़ा चेहरा थे. उन्हीं के दम पर सरकार बन गई. लेकिन सिद्धू ने हमेशा यहीं माना कि वे सबसे बड़े स्टार प्रचारक रहे. उनका ऐसा सोचना ही उन्हें ये उम्मीद दे गया कि कांग्रेस उन्हें सीएम नहीं तो कम से कम डिप्टी सीएम की कुर्सी तो दिलवा ही देगी. वो भी नहीं हुआ तो सिद्धू पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष बनना चाहते थे. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, उन्हें सिर्फ एक मंत्री बना दिया गया. ऐसे में कैप्टन बनाम सिद्धू की जंग तो 2017 में ही शुरू हो गई थी. बाद में तो बस मुद्दे जुड़ते गए और ये दूरियों की खाई गहराती गई.

सबसे बड़ा मुद्दा तो बरगाड़ी बेअदबी कांड रहा जो हुआ जरूर बादल सरकार के कार्यकाल में लेकिन उसकी असल जांच कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद शुरू हुई. वैसे भी कांग्रेस की तरफ से 2017 के चुनाव में वादा किया गया था कि उस मामले में उनकी तरफ से एसआईटी गठित की जाएगी और दोषियों को सजा मिल जाएगी. लेकिन इसी साल अप्रैल में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने एसआईटी रिपोर्ट को ही खारिज कर दिया और सिद्धू को फिर सीएम अमरिंदर पर निशाना साधने का मौका मिल गया.

सिर्फ यही नहीं नवजोत सिंह सिद्धू के पाकिस्तान के वजीरे आजम इमरान खान संग जैसे रिश्ते रहे, वो भी अमरिंदर के लिए हमेशा से ही विवाद का विषय रहा. पहले तो सिद्धू का इमरान के शपथ ग्रहण समारोह में जाना अमरिंदर और कांग्रेस के कई नेताओं को खटका, इसके बाद जब करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन में उनके योगदान पर भी जोर दिया गया तो पंजाब के सीएम के लिए ये और ज्यादा असहज हो गया. उन्होंने सुरक्षा का हवाला देते हुए सिद्धू के योगदान को नजरअंदाज करने का पूरा प्रयास किया. लेकिन सिद्धू ने तो खुद को शांतिदूत के रूप में दिखाया और करतारपुर के लिए क्रेडिट लेने की भी कवायद रही. ऐसे में निशाना दोनों तरफ से रहा, ना सिद्धू शांत बैठे और ना ही कभी अमरिंदर सिंह ने अपने तेवर ढीले किए. नतीजा ये हुआ कि चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस में दो फाड़ हुआ और अब एक तीन सदस्य कमेटी को बातचीत कर मामला सुलझाना पड़ रहा है.

कांग्रेस नहीं मानी तो क्या करेंगे सिद्धू?

अब यहां भी नवजोत सिंह सिद्धू का वहीं राजनीतिक पैटर्न देखने को मिल रहा है. वे नाराज हैं, उन्हें मनाने का भी प्रयास है, लेकिन अगर सबकुछ ठीक नहीं हुआ तो वे छोड़ने जैसा बड़ा कदम भी उठा सकते हैं. कुछ जगह ऐसी अटकलें रहीं कि अगर कांग्रेस में उन्हें उचित स्थान नहीं मिला तो वे फिर बीजेपी में जा सकते हैं. वैसे भी अब तो बीजेपी का अकाली के साथ गठबंधन नहीं है. लेकिन ऐसा जमीनी स्तर पर होता नहीं दिख रहा है.

सिद्धू ने कृषि कानूनों पर जैसा स्टैंड ले लिया है और इस समय पंजाब में बीजेपी को लेकर जो माहौल है, ऐसे में वे ऐसा राजनीतिक दांव चलेंगे, मुश्किल लगता है. दूसरा विकल्प सिद्धू के पास उस आम आदमी पार्टी का है जो पिछले पांच सालों से एक मजबूत स्थानीय चेहरे की तलाश में है. 2017 में भी सिद्धू को अपने पाले में करने की कोशिश रही थी, बात नहीं बन पाई. अब फिर चुनाव आ रहे हैं, सिद्धू को भी फिर सीएम बनने की उम्मीद है, केजरीवाल भी पंजाब में अपनी धमक दिखाना चाहते हैं, ऐसे में ये देखना दिलचस्प रहेगा कि क्या ये स्टार प्रचारक पंजाब का असल स्टार बन पाएगा या नहीं.