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तेल की कीमतें बाजार के हवाले, केंद्र सरकार दाम नहीं तय करती: निर्मला

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक बार फिर यह साफ किया है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतें अब पूरी तरह से बाजार पर निर्भर हो चुकी है और दाम तय करने में अब सरकार की कोई भूमिका नहीं है.

पेट्रोल और डीजल की आसमान छूती कीमतों के मामले में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक बार फिर यह साफ किया है कि यह कीमतें अब पूरी तरह से बाजार पर निर्भर हो चुकी है और दाम तय करने में अब सरकार की कोई भूमिका नहीं है. खाद्य तेल और अन्य वस्तुओं की महंगाई पर उन्होंने कहा कि मंत्रियों का एक समूह (GoM) नियमित रूप से इस पर नजर बनाए हुए है.

गौरतलब है कि सरकार को बढ़ती महंगाई और खासकर ईंधन की कीमतों को लेकर आलोचना झेलनी पड़ रही है. क्या ईंधन की कीमतों में कटौती का रास्ता है? इस सवाल पर इंडिया टुडे मैगजीन को दिए एक इंटरव्यू में वित्त मंत्री ने कहा, ‘दलहन, खाद्य तेल और दूसरी जरूरी चीजों की कीमतों में महंगाई के मामले में मंत्रियों का एक समूह (GoM) नियमित रूप से इसके पीछे की वजहों को देख रहा है और आयात की इजाजत देने पर चर्चा कर रहा है, इस बात का ध्यान रखते हुए कि कीमतों के धड़ाम से गिरने का नुकसान किसानों को न उठाना पड़े. समूह यह भी पक्का कर रहा है कि सप्लाई चेन की परेशानियां या जमाखोरी न हो.’

दाम बढ़ने से राज्यों को ज्यादा फायदा!

वित्त मंत्री ने कहा, ‘ईंधन के मामले में, भारतीय कीमतें करीब-करीब वैश्विक कीमत के बराबर ही तय की गई हैं. जहां तक करों की बात है, केंद्र सरकार यह कीमतों के हिसाब से नहीं करती; केंद्र के लिए प्रति लीटर फिक्स्ड रेट है, कीमत चाहे जो हो. राज्यों को जो मिलता है, वह कीमत के हिसाब से मिलता है; तेल की कीमत बढ़ने पर हर बार उनका राजस्व भी बढ़ जाता है. तो केंद्र और राज्य के बीच तेल की कीमत के मुद्दे की कई परतें हैं. सबसे पहले तो हमें यह याद रखना होगा कि केंद्र कीमतें तय नहीं करता; ये कीमतें बाजार की ताकतों से तय होती हैं.’ यानी वित्त मंत्री ने यह साफ संकेत दिया कि पेट्रोल-डीजल के मामले में केंद्र सरकार के हाथ में कुछ नहीं है. ‘

महंगाई पर रिजर्व बैंक के साथ तालमेल

सरकार ने अर्थव्यवस्था में जबरदस्त मुद्रा झोंकी लेकिन इससे महंगाई भी बढ़ी. तो ‘इधर कुआं, उधर खाई’ की इस स्थिति में, विकल्प क्या हैं? इस सवाल के जवाब में वित्त मंत्री ने कहा, ‘कारोबार जब मुश्किलों से उबरने की कोशिशों में लगे हैं, तब नकदी जरूरी है. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) तरलता को संभालता है. मैं उनके साथ विचार-विमर्श करती रहती हूं. आर्थिक मामलों का विभाग (डीईए) उनके साथ नजदीक से मिलकर काम करता है.’

वित्त मंत्री ने कहा, ‘हमारा रिजर्व बैंक के साथ करीबी तालमेल है ताकि तरलता के अचानक सूखने का असर परवान भरते कारोबारों पर न पड़े. बैंकों को पर्याप्त गुंजाइश दी गई है ताकि वे कारोबारियों के आने पर उधार दे सकें. बैंकों की स्थिति और उनके खाता-बही में निश्चित रूप से सुधार आया है, इसलिए वे इन चीजों के लिए प्रावधान करने की हालत में हैं. उधारी भी संप्रभु गारंटी के साथ दी जा रही है. बैंक जानते हैं कि वे बदतर हालत में नहीं हैं और उन्हें सीजीएलएस के मुताबिक कर्ज देना होगा, जिसे हमने अब और ज्यादा सेगमेंट के लिए खोल दिया है.