इस समंदर में अमेरिका, चीन, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे सुपर पावर की मौजूदगी के बाद भारत हिन्द महासागर के इस पावर गेम से बाहर नहीं हो सकता है. क्योंकि ये हमारा बैकयार्ड है, इस लिहाज से यहां हमारा सहज और स्वभाविक दावा है.
हिन्द महासागर के अनंत विस्तार के बीच एक सूने से टापू पर भारत का खुफिया नौसैनिक अड्डा! इस सैन्य अड्डे का इस्तेमाल भारत समंदर में अपनी ताकत, रुतबा और वर्चस्व बढ़ाने के लिए करने वाला है. कुछ ही दिन पहले कतर स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यूज चैनल अल जजीरा ने अपने रिसर्च के आधार पर ये दावा कर समंदर में भारत की दमदार सैन्य मौजूदगी का इशारा किया है.
अल जजीरा ने दावा किया है कि भारत मॉरीशस से 1100 किलोमीटर दूर अगालेगा द्वीप में अपना नौसैनिक अड्डा बना रहा है. इस संस्थान ने सैटेलाइट इमेज, मौके पर चल रही निर्माण गतिविधियों के आधार पर दावा किया है कि यहां तेजी से निर्माण कार्य चल रहा है. यहां भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर का हवाई पट्टी बना रहा है ताकि कोई भी जहाज आसानी से उतर सके.
कहां स्थित है अगालेगा द्वीप
अगालेगा (Agalega) हिन्द महासागर (Indian Ocean) में स्थित मॉरीशस के स्वामित्व का वाला एक छोटा सा द्वीप है. अगालेगा मुख्य मॉरीशस द्वीप से लगभग 1000 किलोमीटर दूर उत्तर में स्थित है. ये 12 किलोमीटर लंबा और लगभग 1.5 किलोमीटर चौड़ा है. यहां की आबादी बहुत ही कम है. एक अनुमान के अनुसार यहां मात्र 300-350 लोग रहते हैं.
कहां स्थित है अगालेगा द्वीप
अगालेगा (Agalega) हिन्द महासागर (Indian Ocean) में स्थित मॉरीशस के स्वामित्व का वाला एक छोटा सा द्वीप है. अगालेगा मुख्य मॉरीशस द्वीप से लगभग 1000 किलोमीटर दूर उत्तर में स्थित है. ये 12 किलोमीटर लंबा और लगभग 1.5 किलोमीटर चौड़ा है. यहां की आबादी बहुत ही कम है. एक अनुमान के अनुसार यहां मात्र 300-350 लोग रहते हैं.
खास बात यह है कि अगालेगा द्वीप जहां स्थित है उसी क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य अड्डा डिएगो गार्सिया, चीन का सैन्य अड्डा जिबूती ( Djibouti), फ्रांस का मिलिट्री बेस रियूनियों मौजूद है. ये सभी सैन्य अड्डे समंदर में हैं. क्षेत्रफल में महज कुछ किलोमीटर के ये मिलिट्री स्टेशन अपार ताकत समेटे हुए हैं. इसकी असली ताकत वहां की सेना और राष्ट्राध्यक्षों को ही पता है. दुनिया भर की एजेंसियां इसकी शक्ति के बारे में महज अनुमान भर लगाती हैं. मतलब स्पष्ट है कि भारत के आंगन (बैकयार्ड) हिन्द महासागर का व्यापक रूप से सैन्यीकरण हो चुका है. यह दुनिया का वो समुद्री क्षेत्र है जहां से होकर विश्व के दो तिहाई ईंधन की सप्लाई होती है.
अगालेगा को लेकर क्या है दावा
कतर के मीडिया हाउस अल जजीरा की मानें तो अगालेगा द्वीप पर भारत खुफिया सैन्य ठिकाना बना रहा है. अल जजीरा ने नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के रिसर्च फेलो अभिषेक मिश्रा के हवाले से दावा किया है कि ‘यह भारत के लिए एक इंटेलिजेंस फैसिलिटी है, इसके जरिए भारत दक्षिण पश्चिम हिंद महासागर और मोजाम्बिक चैनल में अपनी हवाई और नौसैनिक उपस्थिति दर्ज कराएगा.’
दावा किया गया है कि भारत यहां 3 किलोमीटर लंबी हवाई पट्टी का निर्माण कर रहा है. अभिषेक मिश्रा ने अल जजीरा को बताया है कि उन्हें पता चला है कि इस अड्डे का इस्तेमाल भारत अपने जहाजों के लिए स्टेशन के रूप में करेगा, इसके अलावा रनवे का इस्तेमाल P-8I एयरक्राफ्ट करेंगे. बता दें कि P-8I भारत का समुद्री पैट्रोल एयरक्राफ्ट है. इसका इस्तेमाल सर्विलांस, एंटी सरफेस और एंटी सबमरीन गतिविधियों में किया जा सकता है. इस द्वीप के किनारों पर जहाजों और बोट के रुकने के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण किया जा रहा है.
अल जजीरा के अनुसार अगालेगा से मिली तस्वीरें और डाटा बताते हैं कि ये द्वीप पिछले दो सालों में निर्माण संबंधी गतिविधियों का केंद्र बन गया है. यहां अस्थायी कैंप में सैकड़ों मजदूर रहते हैं जो यहां निर्माण संबंधी कार्यों में जुड़े हैं. अलजजीरा ने सैटेलाइट तस्वीरों के आधार पर अपनी रिपोर्ट को सही ठहराया है.
अगालेगा को लेकर भारत और मॉरीशस के बीच 2015 का समझौता
अगालेगा पर अल जजीरा का दावा जो भी हो. लेकिन हिन्द महासागर के इस विरान पड़े द्वीप पर भारत की एंट्री साल 2015 में हुई. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मॉरीशस की यात्रा पर थे. तब दोनों देशों के बीच कई समझौतों पर हस्ताक्षर हुए थे. उसमें एक समझौता इस द्वीप को विकसित करना भी था. इस समझौते के अनुसार भारत अगालेगा द्वीप पर समुद्री और हवाई परिवहन की सुविधाओं में बढ़ोतरी करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करेगा.
चीन के रक्षा विशेषज्ञ झाओ यी ने कहा था कि भारत यह मानता है कि हिंद महासागर उसका आंगन है, तो कैसे अमेरिका, रूस और ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाएं हिंद महासागर में मुक्त आवाजाही करती हैं? लेकिन चीन ये लॉजिक तब भूल जाता है जब दक्षिण चीन सागर में भारत के युद्धपोत गश्ती अभियान पर या युद्धाभ्यास के लिए जाते हैं और उसे मिर्ची लगने लगती है.
जिबूती में चीन को छुट्टा नहीं छोड़ सकता है भारत
चीन भले ही भारत की वाजिब महात्वाकांक्षाओं पर सवाल उठाता हो लेकिन उसे अपने भू-भाग से बाहर अपनी मिलिट्री ताकत का विस्तार करने में जरा भी गुरेज नहीं है. साल 2017 में चीन ने अपनी जमीन से लगभग 6000 किलोमीटर दूर अफ्रीकी देश जिबूती में अपना पहला विदेशी सैन्य ठिकाना बनाने की पहल शुरू की.
‘अफ्रीका का सिंगापुर’ बनने की चाह में इस अफ्रीकी देश ने अपनी जमीन कई देशों को सैन्य ठिकाना बनाने के लिए दे दिया है. यहां अमेरिका, फ्रांस और जापान पहले ही मिलिट्री बेस स्थापित कर चुके हैं. चीन इस रेस में सबसे बाद में शामिल हुआ है. जिबूती भौगोलिक रूप से हॉर्न ऑफ अफ्रीका में मौजूद है. लेकिन इसकी भौगोलिक स्थिति एक व्यस्त जलीय मार्ग पर है. यहां से भारत समेत दुनिया के कई जहाज माल लेकर गुजरते हैं. लिहाजा यहां से विश्व के कई जहाजों की निगरानी की जा सकती है.
जिबूती में चीन ने कई सैन्य निर्माण किए हैं. चीन ने यहां लगभग एक वर्गकिलोमीटर क्षेत्र में किलेबंदी की है. यहां पर 1 से 2 हजार चीनी नौसैनिक हमेशा मौजूद रहते हैं. चीन ने यहां 23 हजार वर्गफीट का तहखाना बनाया है. रहस्य और गोपनीयता के आवरण में हुए निर्माण के बाद जो छन छनकर जानकारी आई है उसके अनुसार चीन ने यहां एक रनवे बनाया है. इसके अलावा यहां एयर ट्रैफिक कंट्रोल, अस्पताल जैसी सुविधाएं हैं.
रिपोर्ट के अनुसार यहां पर चीन के कई एयरक्राफ्ट मौजूद रहते हैं. इसके अलावा चीन यहां न्यूक्लियर सबमरीन को भी लाने की क्षमता रखता है. जिबूती से भारत की दूरी 3200 किलोमीटर के आसपास है. सड़क मार्ग से ये दूरी भले ही लंबा फासला लगती हो लेकिन सुपर सोनिक विमानों के दौर में आसमान में इस दूरी को कुछ ही मिनटों, घंटों में तय किया जा सकता है.
विशेषज्ञ मानते हैं कि जिबूती चीन द्वारा भारत को हिन्द महासागर क्षेत्र में घेरने के लिए बनाए जा रहे स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स का ही विस्तार है. स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति के तहत ही चीन पाकिस्तान के ग्वादर, श्रीलंका के हंबनटोटा, सेशेल्स, मॉलदीव, बांग्लादेश और म्यांमार में अपने बंदरगाह, सैन्य अड्डे का निर्माण कर रहा है. इसकी अगली कड़ी जिबूती है.
विस्तारवादी चीन की कुत्सित महात्वाकाक्षाएं न सिर्फ भारत के साथ देश के उत्तर और पूर्वी सीमा पर टकरा रही है, बल्कि चालबाज चीन समंदर में भी अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता है. अगर अगालेगा की कल्पना सच है तो इससे चीन की इस विस्तारवादी और साम्राज्यवादी सोच का माकूल और खरा प्रतिकार किया जा सकेगा.