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जनजाति समाज को तोड़ने का वैश्विक षडयंत्र है “विश्व आदिवासी दिवस”

भारत में ब्रिटिश शासन काल से ही भारतीय जनजातीय समाज को मूल हिन्दू समाज से अलग करने के प्रयास किये जाते रहे हैं।
हमारे जनजातीय इतिहास में अगर हम सबसे ज्यादा कमजोर हुए हैं या गरीब हुए हैं तो वह साल 1793 जब अंग्रेजों ने परमानेंट सेटलमेंट लागू किया जिससे हमारी जमीन हमारी नहीं रही जिस जमीन पर समाज का अधिकार था, गाँव का अधिकार था उस पर अब सरकार का अधिकार हो गया।
1793 से अंग्रेजों ने यह जमीनदारी व्यवस्था की शुरुआत की और तब से हमारा वनक्षेत्र हमसे छीन लिया गया और 1793 से वह अंग्रेज सरकार का हो गया था। जब जंगल, जमीनें हमसे छीन ली गई, तब से हमारा गरीब होना शुरु हो गया।
जब अंग्रेजों को लगा कि इतना सारा वन इस वन का उपयोग हम किस तरह से करें तो उन्होंने पूरे भारत को चार हिस्सों में बांटा।
1- प्रेसिडेंसी एरिया – जैसे मुम्बई प्रेसिडेंसी, मद्रास प्रेसिडेंसी, कोलकाता प्रेसिडेंसी यह प्रेसिडेंसी एरिया कहलाते थे मतलब यहां पर क्राउन का याने ब्रिटिश का सीधे – सीधे नियंत्रण था।
2- रेसीडेंसी एरिया- मतलब यहां पर रहने वाले जो राजा थे उनके पास एक अंग्रेजों की सेना रहवास (रेसिडेंट) रहेगी उस राजा की कोई सेना नहीं रहेगी वह रेसीडेंसी एरिया कहलायेगा।
3- एजेंसी एरिया – जो भारत आज है नार्थ ईस्ट को छोड़कर पूरा जो वन क्षेत्र था उसको वह बोलते थे एजेंसी एरिया, मतलब उसमें एक एजेंट रहेगा जो सीधे-सीधे ब्रिटिश सरकार को रिपोर्ट करेगा, मतलब इन क्षेत्रों का जो शासन था वह एजेंट के अधीन था।
4- प्रिंसली स्टेट व एक्सक्लूडेड एरिया – न प्रेसिडेंसी न रेसीडेंसी केवल एजेंसी एरिया के साथ ही जो छूटा हुआ एरिया था वह एक्सक्लूडेड एरिया था (जिसको आज हम नार्थ ईस्ट बोलते हैं ) वहां का शासन वहां के कबीला ही करेंगे वहां केवल चर्च पादरी है वह रहेगा सरकार, सेना कुछ नहीं रहेगी। वहां पर केवल धर्मान्तरण का काम होगा। बाकी जो काम हैं उसमें सरकार हस्तक्षेप नहीं करेगी। यही क्षेत्र आज संविधान की छटवी अनुसूची के अंतर्गत आता है।
आज जिनको हम पाँचवी अनुसूची क्षेत्र कहते हैं वह एजेंसी एरिया ही था। इस एजेंसी एरिया में एजेंट के तीन काम रहते थे –
1- एजेंट का सबसे पहला काम था धर्मान्तरण करना।
2- दूसरा उसका काम था खनिज और वन सम्पदा का निर्धारण करना।
3- और तीसरा उसका काम था वह थोड़ा बहुत आवश्यकता हो तो प्रशासनिक कार्य कर लेना।
जब अंग्रेजों ने देखा कि यहाँ के जो जनजाति,हैं वह तो बहुत लड़ाकू हैं।
1772 में लक्षमण नाइक ने अंग्रेजों को भगाने के लिए पहला आन्दोलन किया। अंग्रेजों ने देखा कि नगरों में उनको समस्या नहीं है, प्रेसिडेंसी एरिया में समस्या नहीं है, रेसीडेंसी एरिया में समस्या नहीं है, सबसे बड़ी समस्या शासन करने में अगर उनको कहीं पर आ रही है तो वह है ट्राइबल एरिया में आ रही है। तो उन्होंने सोचा कि ट्राइबल एरिया में शासन कैसे करें। अगर जनजाति क्षेत्र में शासन करना है तो उसका सर्वे किया जाये जिससे पता चल सके कि इस क्षेत्र में वास्तव में कितने लोग रहते हैं। इसके लिए उन्होंने 1820 में एक पहली सीमित जनगणना की परन्तु फिर भी आन्दोलन तो इन जनजाति क्षेत्रों में होते रहे थे।
1857 के स्वातंत्र समर में जितने ब्रिटिश अधिकारी मारे गये थे उनमें से ज्यादातर जनजाति क्षेत्रों में मारे गये थे यह लिखित रिकार्ड है।
अंग्रेजों को यह समझ में नहीं आ रहा था कि भारत में जनजाति समुदाय के कितने लोग रहते हैं वास्तव इनकी संख्या कितनी है तो इसलिए उन्होंने 1871 में पहली बड़ी जनगणना की जिसमें उन्होंने बोला कि जो जनजाति, हैं उनकी एक विशेष प्रकार की गणना करनी होगी। तो सबसे पहले जनजाति (ट्राइब) यह शब्द का उपयोग कर जनगणना हुई। और यहीं से हमारी समाज के साथ वैश्विक षडयंत्र शुरु हुआ इसके पूर्व हमारा समाज सनातन हिन्दू समाज का ही अंग था जिसे अलग करने का षडयंत्र अंग्रेजों द्वारा किया गया।
1891 की जनगणना में फारेस्ट ट्राइब नामक समाज का उल्लेख हुआ जिसका अर्थ है वनों में रहने वाले लोग याने वनवासी।
जब फारेस्ट ट्राइब उन्होंने बनाया, और भारत का नक्शा खींचा तो उन्होंने देखा कि इतने सारे ट्राइब हैं और अगर केवल एक पहचान (वनवासी) को हमने ज्यादा जोर दिया तो यह एक अलग देश बन सकता है क्योंकि यह तो बहुत बड़ी संख्या में रहते हैं, बहुत बड़े क्षेत्र में रहते हैं, तो इस क्षेत्र को और लोगों का और अधिक विभाजन करना होगा। छोटी-छोटी इकाइयों में इनकी पहचान का ध्यान देना होगा, तो अंग्रेजों ने अगर सबसे पहला काम कोई किया तो वह हमारी पहचान बदलने का काम किया।
1901 की जनगणना में अंग्रेजों ने पहली बार लिखा कि जनजाति समुदाय हिन्दू नहीं है और एक नई संज्ञा दी जिसको वे एनीमिस्ट कहते हैं, मतलब भूत-प्रेत पूछने वाले। यह उन्होंने इसलिए किया ताकि धर्मान्तरण का काम शुरु करना आसान हो जाए। उनको बोला जाए आप हिन्दू नहीं हैं आप किसी और धर्म में जा सकते हैं।
1911 की जनगणना में उन्होंने हमें एक नई पहचान दी वह थी “ट्राइबल एनीमिस्ट “और पीपल फालोइंग ट्राइबल रिलीजन।
1891 में बोला कि यह वनवासी हैं, 1901 में बोला कि भूत-प्रेत पूजने वाले हैं, फिर 1911 में बोला कि यह ट्राइबल भूत-प्रेत पूजने वाले हैं और ट्राइबल रिलीजन को मानने वाले हैं, तो इस तरह उन्होंने अलग- अलग कैटेगिरी बना दी, मतलब अब जो भी है वह केवल वो ही धर्म पूजेगा।
पहले सारे भारतीय नैसर्गिक पद्धति से एक दूसरे से जुड़े थे, वह सभी एक दूसरे को मानते थे और कभी भी एक दूसरे के प्रति विरोध नहीं था,लेकिन अंग्रेजों ने सोचा कि अगर भील, संभाली, गोंड यह सारे अगर एक जैसे रहेंगे तो यह सब एक साथ विद्रोह करेंगे इसलिए जरुरी है कि इनको और तोड़ो, इतना ही नहीं उन्होंने सोचा कि इनको क्षेत्र भाषा के आधार पर और तोड़ा जाए। उन्होंने कहना शुरु कर दिया कि भील लोगों का रिलीजन भील है, गोंड का रिलीजन गोंड, संथाली का रिलीजन संथाली, मुंडा का रिलीजन मुंडारी है आदि आदि। इस तरह से उन्होंने जनजाति समाज को अलग – अलग धर्मों में विभाजित किया और स्थापित किया गया 1911 में।
इस तरह से हमारा समाज पहले उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम तक एक था, प्रकृति पूजा के नाम से एक था, सनातन पद्धतियों में आस्था रखते थे, अंग्रेजों ने उसे अलग -अलग धर्म के नाम देकर बांट दिया। उसके बाद जो अगली जनगणना हुई उसमें उन्होंने हमें प्रिमिटिव ट्राइब्स (अति पिछड़ी जनजाति आदिवासी) के नाम से चिन्हित किया। और इसी जनगणना के आधार पर बोला गया कि जनजाति समाज की संख्या भारत में 10 प्रतिशत है।
1931 की जनगणना के बाद 1941 में जो जनगणना हुई उसमें उन्होंने कहा कि जो लोग 1931 की जनगणना में हैं और उनसे उत्पन्न लोग हैं केवल वह जनजाति होंगे, मतलब इससे पहले हम वनवासी थे, फिर हम भूत-प्रेत पूजने वाले बने, फिर अंग्रेजों ने हमारा अलग धर्म बनाया, फिर हमको मैदानी और पहाड़ी इलाकों में बांटा, फिर उन्होंने हमको इतना पिछड़ा कर दिया, फिर लूट लूट कर हम पिछड़े हो गये और 1941 की जनगणना में उन्होंने बोला कि इस पिछड़े वर्ग से जो होगा वह जनजाति होगा। तो जो धार्मिक पहचान का विषय है, हमारी जो धार्मिक पहचान है वह है सनातन उसे अंग्रेजों ने लिखित रुप में लिख दिया कि “वनवासी, जनजाति, आदिवासी हिन्दू नहीं हैं” ताकि हम टुकड़ों – टुकड़ों में बंट जायें और वह हमें धर्मांतरित कर ईसाई बना सकें।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 1871 में अंग्रेजों ने जनजाति समाज के शोषण के लिए “क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट” बनाया था वह वनवासी क्षेत्रों में लागू किया उसका उद्देश्य यह था कि जो 95 प्रतिशत आदिवासी धर्मांतरित होकर ईसाई नहीं बने थे उन्हें जन्मजात आक्रमणकारी घोषित कर दिया।
एजेंसी एरिया के एजेंट के पास यह अधिकार था कि वह किसी व्यक्ति को उठाकर फांसी पर चढ़ा सकता था। उनके ध्यान में शुरूआत में ही आ गया कि सबसे ज्यादा विरोध करने वाला कोई समाज है तो वह है जनजाति समाज, इसलिए उन्होंने यह “क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट” बनाया और 1935 तक आते – आते उन्होंने उसमें ऐसे प्रावधान किये कि जिसको चाहे वह उसे उठाकर फाँसी पर लटका देते थे। एजेंसी एरिया एजेंट किसी को फाँसी पर लटका सकता था, इसलिए उन्होंने यह व्यवस्था दी कि “ट्राइबल एरिया” में
बाहर का कानून लागू नहीं होगा। हमारी जैसी मर्जी वैसा कानून वहां लायेंगे।
बावजूद इसके वे हम पर काविज होने के उद्देश्य में सफल नहीं हुए। फिर बात आई भारत विभाजन की, भारत की आजादी की उस वक्त ब्रिटेन के प्राइम मिनिस्टर थे चर्चिल उन्होंने कहा हम भारत को आजाद कर देंगे मगर ट्राइबल एरिया को अपने कब्जे में ही रखेंगे इस तरह से उन्होंने भारत के तीन टुकड़े करने की कोशिश की उस वक्त निजाम के साथ मिलकर ऐसा प्रयास किया कि उड़ीसा, मध्य प्रदेश, झारखण्ड, महाराष्ट्र और गुजरात को लेकर एक ऐसा देश बनाया जाए जहाँ पर केवल ट्राइबल निवास करते हों और वह देश अंग्रेजों के अधीन हो मतलब भारत के उत्तर और दक्षिण के बीच एक देश अंग्रेजों को दे दिया जाये, लेकिन सरदार बल्लभ भाई पटेल की दूरदर्शिता से उनकी कोशिश पूरी नहीं हो पाई और भारत आजाद हो गया। उसके बाद डॉ भीमराव अम्बेडकर जी के नेतृत्व में नियम कानून बनाने की समिति का गठन हुआ और उसमें पांचवी, छटी अनुसूची इसके बारे में भी विचार हुआ जिसके लिए श्री गोपीनाथ बारदोलोई के नेतृत्व में पूर्वोत्तर क्षेत्र की रिपोर्ट के आधार पर कानून बनाये गये जिसे छटवी अनुसूची में लिया गया और श्री ए बी ठक्कर की रिपोर्ट के आधार पर शेष जनजाति क्षेत्रों के लिए कानून बनाये गए जिन्हें पांचवी अनुसूची में लिया गया है।
भारत सरकार ने 1996 में एक कानून बनाया “पंचायत एक्सटेंशन आॅफ शेड्यूल एरिया (PESA) यह जनजाति समुदाय के हजारों साल के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है।यह कानून कहता है कि सरकार को अगर आपके क्षेत्र की 1 इंच भी जमीन लेनी होगी तो वह आपकी जो ग्राम सभा है उसकी अनुमति से लेनी होगी।
जब यह PESA (पेसा) बाहर की मिशनरियों के हाथ में गया तब उनको लगा कि अब तक तो हम यहां पर सरकार के साथ मिलकर एक बिल्डिंग खड़ी कर देते थे जो वास्तव में चर्च होती थी उसके ऊपर लिख देते थे अस्पताल। पूंजी पैसा होता था सरकार का और अस्पताल के नाम से बनाया जाता था चर्च, जिसमें काम होता था धर्मान्तरण का , स्कूल बनाना है तो सरकार के पैसे से स्कूल बना दिया लेकिन अंदर पूरा काम होता था धर्मान्तरण का, तो सरकार के पैसों से जो कुछ भी विकास के नाम पर हो रहा उससे जनजाति क्षेत्रों में धर्मान्तरण का ही काम हो रहा था। ऐसी स्थिति में जब उन्हें पेसा एक्ट के बारे में पता चला तो उनको लगा कि अब यह बहुत बड़ी समस्या हो गई, क्योंकि अब अगर हम किसी जनजाति क्षेत्र के गाँव में जाकर बोलेंगे कि हमें यहाँ पर स्कूल बनवाना है तो वहाँ की ग्राम सभा बोलेगी स्कूल तो हम खुद बनवा लेंगे आपकी क्या आवश्यकता है क्योंकि इस कानून ने उनको यह अधिकार दे दिया है। कानून के अंतर्गत यह बताया गया है अगर आपके गाँव में स्कूल खोलने हैं तो ग्राम सभा तय करेगी कि कैसा स्कूल बनना है वहाँ पर शिक्षक किसको रखना है, और उस स्कूल में पढ़ाने के रीति -रिवाज क्या रहेंगे?
तब इन मिशनरियों के ध्यान में आया कि धर्मान्तरण की दृष्टि से तो यह पेसा कानून बहुत ही खतरनाक है, इसके कारण धर्मान्तरण तो हो ही नहीं पियेगा, तो उन्होंने सोचा कि अगर यहाँ पर धर्मान्तरण का कार्य करना है तो अपनी पद्धति बदलने होगी। तो इन्होंने यह मार्ग अपनाया कि इनको यह बताओ कि आदिवासी, जनजाति, वनवासी हिन्दू नहीं है।
तो इस पेसा कानून के कारण मिशनरियों को यह सोचना पड़ा कि हमें कुछ ऐसा करना पड़ेगा कि धर्मान्तरण तो छोड़ दो, इनको अलग देश के हैं बताकर इनका राष्ट्रन्तरण ही कर दो और जनजाति समाज को बताया कि आप तो इंडीजीनस पीपल याने विश्व आदिवासी हो मतलब आप भारत के नहीं आप तो सारे विश्व के आदिवासी एक साथ हो,और 2007 से मिशनरी ने “विश्व आदिवासी दिवस” इसी षडयंत्र तहत मनाना शुरु किया है।
जनजाति युवा सावधान ….

(हितानंद शर्मा सह संगठन महामंत्री मध्यप्रदेश भाजपा और राष्ट्रवादी चिंतक की फेसबुक वॉल से।)