देशराजनीती

यूपी में कांग्रेस का हाथ क्यों छोड़ रहे हैं पीढ़ियों के साथी

उत्तर प्रदेश में गांधी परिवार के साथ चार पीढ़ियों का नाता रखने वाला यह पहला परिवार नहीं है, जिसने हाथ का साथ छोड़ दिया हो बल्कि सलीम शेरवानी, जितिन प्रसाद, चौधरी विजेंद्र सिंह जैसे नेता भी कांग्रेस को अलविदा कह चुके हैं. वहीं, अन्नू टंडन और अदिति सिंह का भी पार्टी से मोहभंग हो गया है.

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की कमान संभालने के बाद से प्रियंका गांधी जमीनी स्तर पर पार्टी को मजबूत करने के लिए मशक्कत कर रही हैं, लेकिन वह पार्टी छोड़कर जाने वाले नेताओं को रोक नहीं पा रही हैं. ललितेशपति त्रिपाठी के इस्तीफा देने के साथ ही यूपी के मुख्यमंत्री रहे पंडित कमलापति त्रिपाठी परिवार का गांधी परिवार और कांग्रेस के साथ सौ सालों का नाता चौथी पीढ़ी तक पहुंचकर समाप्त हो गया.

उत्तर प्रदेश में गांधी परिवार के साथ पीढ़ियों का नाता रखने वाला यह पहला परिवार नहीं है, जिसने हाथ का साथ छोड़ दिया हो बल्कि सलीम शेरवानी, जितिन प्रसाद, चौधरी विजेंद्र सिंह जैसे नेताओं ने भी पार्टी छोड़ दी है. वहीं, अन्नू टंडन और अदिति सिंह का भी कांग्रेस से मोहभंग हो गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि गांधी परिवार के करीबी रहे इन सियासी परिवार के नेताओं ने कांग्रेस के क्यों अलविदा कहा?

कमलापति त्रिपाठी का चार पीढ़ियों का नाता टूटा

कमलापति त्रिपाठी के प्रपौत्र ललितेशपति त्रिपाठी ने दिल में और संस्कारों में कांग्रेस के बसने की बात तो कही, लेकिन घर छोड़ने का ऐलान भी कर दिया. गुरुवार को प्रेस कॉफ्रेंस करके ललितेश ने कांग्रेस के सभी पदों से इस्तीफा देते हुए पार्टी के शीर्ष पर खुद को नजरअंदाज करने का आरोप लगाया. कमलापति त्रिपाठी के परिवार से ललितेश पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दिया है.

कमलापति त्रिपाठी ने तमाम उपेक्षाओं के बावजूद जीवनपर्यंत कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा. उनके अलावा लोकपति त्रिपाठी और राजेशपति त्रिपाठी भी पार्टी के प्रति निष्ठावान रहे. ऐसे में ललितेशपति का कांग्रेस से मोहभंग होना सूबे में बड़ी सियासी घटना के तौर पर देखा जा रहा है. 2022 विधानसभा चुनाव के लिहाज से ललितेश क्या सियासी फैसला लेंगे यह भविष्य के गर्भ में है. उन्होंने कहा कि अपने की राजनीति के लिए अपने समर्थकों के साथ बातचीत कर कोई निर्णय लेंगे.

इंदिरा गांधी के दौर में बोलती कमलापति की तूती 

इंदिरा गांधी के दौर पर ललितेशपति त्रिपाठी की सियासी तूती उत्तर प्रदेश में बोलती थी. ललितेश के परबाबा कमलापति त्रिपाठी 1971 में यूपी के मुख्यमंत्री बने थे.1973, 1978, 1980, 1985 और 1986 में कांग्रेस की ओर से राज्यसभा सांसद और केंद्र सरकार में मंत्री तक रहे. कमलापति त्रिपाठी के परिवार से गांधी परिवार का राजनीतिक ही नहीं बल्कि पारिवारिक रिश्ता भी जुड़ा हुआ है.

इंदिरा गांधी से लेकर राजीव और सोनिया गांधी के सबसे करीबी कमलापति का परिवार रहा है. तमाम विरोधों के बावजूद चाहे इंदिरा गांधी रही हों या राजीव गांधी अथवा सोनिया गांधी तीनों के कार्यकाल में न कभी कमलापति को नकारा गया, न लोकपति त्रिपाठी को और न नही राजेशपति त्रिपाठी को. इंदिरा गांधी ने तो कमलापति को कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष तक बनाया था. ऐसे में अब कांग्रेस में चौथी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व कर रहे पूर्व विधायक ललितेशपति त्रिपाठी ने कांग्रेस से किनारा कर लिया है.

जितिन प्रसाद ने तीन पीढ़ियों का नाता तोड़ा

ललितेशपति त्रिपाठी से पहले गांधी परिवार के करीबी रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थाम चुके हैं. जितिन प्रसाद दो बार कांग्रेस के टिकट पर सांसद रहे और मनमोहन सिंह सरकार में पेट्रोलियम और नेचुरल गैस राज्य मंत्री और बाद में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री का प्रभार मिला था. राहुल और प्रियंका गांधी के वो करीबी माने जाते थे और पार्टी के ब्राह्मण चेहरा थे.

जितिन प्रसाद के पिता जितेंद्र प्रसाद एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता थे और राजीव गांधी के राजनीतिक सचिव थे. पार्टी महासचिव और पूर्व पीएम नरसिम्हा राव के सचिव थे. जितिन के पिता जितेंद्र प्रसाद ने साल 2000 में सोनिया गांधी के खिलाफ कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव भी लड़ा था और उनके दादा ज्योति प्रसाद भी कांग्रेस के नेता थे. जितिन प्रसाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी माने जाते थे. जितिन प्रसाद ने गांधी परिवार और कांग्रेस से तीन पीढियों का नाता तोड़कर बीजेपी की सदस्यता ले ली है. पार्टी छोड़ने की सबसे बड़ी वजह उन्हें अब अपना सियासी भविष्य कांग्रेस में बेहतर नजर नहीं आ रहा था, क्योंकि लगातार तीन चुनाव हार चुके थे.

शेरवानी परिवार का कांग्रेस से मोहभंग

गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले सलीम इकबाल शेरवानी बदायूं से पांच बार सांसद रहे हैं और केंद्रीय में स्वास्थ्य और विदेश राज्यमंत्री पद पर भी रह चुके हैं. शेरवानी परिवार का गांधी परिवार और कांग्रेस से तीन पीढ़ियों से नाता रहा है. सलीम शेरवानी के दादा आजादी के पहले से कांग्रेस के सदस्य रहे हैं और यूपी की पहली सरकार में मंत्री रहे. सलीम शेरवानी के पिता एमआर शेरवानी कांग्रेस से विधायक रहे चुके हैं.

सलीम शेरवानी राजीव गांधी के करीबी माने जाते थे, लेकिन 90 के दशक में कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल हो गए थे, पर 2009 में कांग्रेस में वापसी कर गए थे. कांग्रेस के दोबारा से आने के बाद सलीम शेरवानी ने तीन लोकसभा चुनाव लड़ा और सोनिया गांधी उनके लिए वोट मांगने भी गईं. इसके बावजूद वो जीत नहीं सके. ऐसे में उनका कांग्रेस से मोहभंग हो गया और फिर से अखिलेश की साइकिल की साइकिल पर सवार हो गए हैं. सपा में वापसी करने के लिए अखिलेश के साथ उनकी नजदीकियां बढ़ी हैं.

अन्नु टंडन भी कांग्रेस छोड़ चुकीं

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की करीब रहीं उन्नाव की सांसद अन्नू टंडन भी कांग्रेस को अलविदा कह चुकी हैं. उन्हें गांधी परिवार का गरीबी माना जाता था. पंजाबी खत्री समुदाय से आने वाली अन्नू टंडन के पति संदीप टंडन रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के शीर्ष संपर्क कार्यकारी थे और 1994 में रिलायंस समूह में शामिल होने से पहले वह भारतीय राजस्व सेवा में थे. उनके परिवार के मुकेश अंबानी से करीबी संबंध रहे हैं. गांधी परिवार और अंबानी परिवार से नजदीकियों के चलते कांग्रेस में उनकी तूती बोलती थी, लेकिन अब वो सपा की साइकिल पर सवार हो चुकी हैं.

चौधरी बिजेंद्र सिंह साइकिल पर सवार

अलीगढ़ के पूर्व सांसद व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता चौ. बिजेंद्र सिंह भी कांग्रेस से नाता तोड़कर सपा की साइकिल पर सवार हो गए हैं. बिजेंद्र सिंह ने अस्सी के दशक में उत्तर प्रदेश की राजनीति में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार चरण सिंह व मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी चौ. राजेंद्र सिंह को चुनाव हराकर जिले की इगलास सीट से पहली बार विधायक बने. चौ. बिजेंद्र   तीन बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके हैं. गांधी परिवार के करीबी माने जाते थे और कांग्रेस के जाट चेहरा थे, पर प्रियंका गांधी की सक्रियता के बाद पार्टी में साइडलाइन हो गए थे. ऐसे में उन्होंने कांग्रेस के हाथ का साथ छोड़कर सपा में शामिल हो गए हैं.

राजा संजय सिंह और अदिति का मोहभंग

गांधी परिवार के गढ़ माने जाने वाले अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस नेताओं का मोहभंग हुआ है. अमेठी में गांधी परिवार के करीबी रहे डॉ. संजय सिंह ने अपने पूरे परिवार के साथ कांग्रेस को छोड़ दिया है जबकि उनके पिता और दादा कांग्रेस के टिकट पर विधायक रहे चुके हैं. वहीं, रायबरेली में सदर से विधायक रहे अखिलेश सिंह की बेटी अदिति सिंह का भी कांग्रेस से मोहभंग हो चुका है और वो बागी रुख अपना रखा है. 2017 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बनी थी. ऐसे ही रायबरेली के एमएलसी दिनेश प्रताप सिंह ने भी पूरे परिवार के साथ कांग्रेस छोड़ चुके हैं. दिनेश सिंह के भाई राकेश सिंह हरचंद्रपुर से कांग्रेस के विधायक हैं, लेकिन अब वो बीजेपी खेमे में खड़े हैं.

बता दें कि हाल ही में मिर्जापुर के पूर्व सांसद बाल कुमार पटेल, सीतापुर की पूर्व सांसद कैसर जहां, अलीगढ़ के पूर्व सांसद विजेन्द्र सिंह, पूर्व मंत्री चौधरी लियाकत, पूर्व विधायक राम सिंह पटेल, पूर्व विधायक जासमीन अंसारी, अंकित परिहार और सोनभद्र के रमेश राही जैसे नेताओं ने कांग्रेस छोड़कर सपा का दामन थाम लिया है. इन सारे नेताओं को अखिलेश यादव ने खुद उन्हें पार्टी में शामिल कराया है.