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कोयले को लेकर केंद्र-राज्यों में तकरार, जानें- किसकी दलीलों में कितना दम?

कोयले के संकट को लेकर केंद्र और राज्यों में तकरार बढ़ गई है. जहां राज्य केंद्र को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रही है तो वहीं केंद्र का मानना है कि राज्यों के कारण ऐसी स्थिति बनी है.

देश में कोयला संकट (Coal Crisis) और बिजली कटौती (Electricity Crisis) के बीच सियासत भी तेज हो गई है. राज्य सरकारें कोयला संकट को लेकर जहां केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहीं हैं तो वहीं केंद्र का मानना है कि ये संकट राज्यों की वजह से खड़ा हुआ है. सरकार से जुड़े करीबी सूत्रों का दावा है कि अगर राज्यों ने कोल इंडिया (Coal India) के भंडार से अपना कोटा हटा लिया होता तो इस संकट को टाला जा सकता था.

वहीं, सरकार में एक मंत्री बताते हैं कि ‘बुरा दौर अब खत्म हो गया है.’ उन्होंने बताया कि कई राज्यों ने बिजली की मांग में बढ़ोतरी की तैयारी करने की बजाय डर पैदा करने की कोशिश की. सूत्रों के मुताबिक, कई राज्यों पर कोल इंडिया का करीब 21 हजार करोड़ रुपये बकाया है. इनमें महाराष्ट्र पर 2600 करोड़, तमिलनाडु पर 1100 करोड़, पश्चिम बंगाल पर 2000 करोड़, दिल्ली पर 278 करोड़, पंजाब पर 1200 करोड़, मध्य प्रदेश पर 1000 करोड़ और कर्नाटक पर 23 करोड़ रुपये बकाया है.

क्या सच में राज्यों की जिम्मेदारी है?

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने बिजली संकट को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को पिछले हफ्ते चिट्ठी लिखी थी. उन्होंने पावर स्टेशनों को कोयला उपलब्ध कराने की मांग की थी, ताकि दिल्ली में बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित हो सके.

इसी बीच मंगलवार को सरकारी कंपनी नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड यानी NTPC ने एक ग्राफ शेयर कर दावा किया है कि कंपनी दिल्ली को जितनी बिजली दे रही है, उसमें से सिर्फ 70% का ही इस्तेमाल हो रहा है. कंपनी ने ट्वीट किया, ‘NTPC दिल्ली को जितनी जरूरत है उतनी बिजली सप्लाई कर रही है. डेटा के मुताबिक (1 अक्टूबर से 11 अक्टूबर), दिल्ली डिस्कॉम्स (वितरण कंपनियों) ने NTPC की ओर से जितनी बिजली दी गई, उसमें से 70% ही ली.’ NTPC के आंकड़ों के मुताबिक, 1 से 11 अक्टूबर को दिल्ली डिस्कॉम्स (Delhi DISCOMs) को 54.83 मिलियन यूनिट बिजली दी गई, लेकिन उसमें से 38.81 मिलियन यूनिट ही ली गई.

इससे एक दिन पहले बिजली मंत्रालय (Power Ministry) ने राज्यों से कहा था कि वो अपने राज्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए सेंट्रल जनरेटिंग स्टेशन (CGS) की गैर-आवंटित बिजली का इस्तेमाल करें. बिजली मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा था, ‘ऐसा ध्यान में लाया गया है कि कुछ राज्य अपने उपभोक्ताओं को बिजली की सप्लाई नहीं कर रहे हैं और लोड शेडिंग कर रहे हैं. साथ ही वो पावर एक्सचेंज के तहत ऊंची कीमतों पर बिजली बेच रहे हैं.’

गाइडलाइंस के मुताबिक, CGS से बनी 15% बिजली को ‘गैर-आवंटित बिजली’ के तौर पर रखा जाता है, जिसे केंद्र सरकार बिजली की जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरतमंद राज्यों को आवंटित करती है. मंत्रालय ने ये भी कहा था, ‘उपभोक्ताओं को बिजली की आपूर्ति करने की जिम्मेदारी वितरण कंपनियों की है और उन्हें पहले अपने उपभोक्ताओं की सुविधा का ध्यान रखना चाहिए जिन्हें 24 घंटे सातों दिन बिजली पाने का अधिकार है.’

पीआईबी ने भी मंगलवार को दिल्ली में बिजली सप्लाई को लेकर एक फैक्ट शीट जारी की थी, जिसमें बताया था कि 10 अक्टूबर को दिल्ली में बिजली की अधिकतम मांग 4.536 मेगावाट (पीक) और 96.2 मिलियन यूनिट (एनर्जी) थी. दिल्ली डिस्कॉम्स से मिली जानकारी के मुताबिक, बिजली की कमी के कारण कोई कटौती नहीं हुई, क्योंकि जरूरत के हिसाब से बिजली की सप्लाई की गई थी. इसमें ये भी बताया गया था पिछले दो हफ्ते में 10 अक्टूबर तक दिल्ली में बिजली की कमी नहीं थी.

सरकार क्या कर रही है?

कोयला मंत्री प्रहलाद जोशी (Prahlad Joshi) ने मंगलवार को कहा कि देश में कहीं भी कोयले की कमी नहीं है. उन्होंने आश्वासन दिया कि बिजली कटौती की चिंताओं के बीच कहीं कोई कमी नहीं होगी. मंगलवार को प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने भी कोयले की उपलब्धता और बिजली के उत्पादन की समीक्षा की. बताया जा रहा है कि इस रिव्यू मीटिंग में कोयला मंत्रालय ने जानकारी दी कि दो-तिहाई से ज्यादा पावर प्लांट में कोयले का स्टॉक एक हफ्ते या उससे भी कम दिन का होने के बावजूद बिजली की सप्लाई को लेकर गलत डर फैलाया जा रहा है. वहीं, नेशनल पावर पोर्टल के आंकड़ों के मुताबिक, 10 अक्टूबर तक देश में 15 प्लांट ऐसे थे जहां एक भी दिन का कोयला स्टॉक नहीं है. 27 प्लांट में 1 दिन का, 20 में 2 दिन का, 21 में 3 दिन का, 20 में 4 दिन का, 5 में 5 दिन का और 8 में 6 दिन का स्टॉक है.