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कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनेगी देव दिवाली, जानें इस दिन दीपदान करने का महत्व

देव दिवाली के दिन पवित्र नदी के जल से स्नान करके दीपदान करना चाहिए. ये दीपदान नदी के किनारे किया जाता है. ये देश के विभिन्न राज्यों, विशेष रूप से वाराणसी में बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन शिव जी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था और विष्णु जी ने मत्स्य अवतार भी लिया था. इसलिए इसे देव दिवाली (Dev Diwali 2021) भी कहते हैं.

देव दिवाली का पर्व रोशनी के त्योहार दीपावली के 15 दिनों के बाद आता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन देव दिवाली मनाई जाती है. ये देश के विभिन्न राज्यों, विशेष रूप से वाराणसी में बड़े हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है. मान्यता है कि इस दिन शिव जी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था और विष्णु जी ने मत्स्य अवतार भी लिया था. इसलिए इसे देव दिवाली (Dev Diwali 2021) भी कहते हैं. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने और दीपदान करने का विशेष महत्व है. देव दिवाली 19 नवंबर को मनाई जाएगी.

इस दिन किया जाता है दीपदान-

देव दिवाली के दिन पवित्र नदी के जल से स्नान करके दीपदान करना चाहिए. ये दीपदान नदी के किनारे किया जाता है. इसका दीपावली से कोई संबंध नहीं है. लोकाचार की परंपरा होने के कारण वाराणसी में इस दिन गंगा किनारे बड़े स्तर पर दीपदान किया जाता है. इसको वाराणसी में देव दीपावली कहा जाता है.

क्यों कहते हैं देव दिवाली-

ऐसी मान्यता है कि कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था. त्रिपुरासुर के वध की खुशी में देवताओं ने काशी में अनेकों दीए जलाए. यही कारण है कि आज भी हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा पर काशी में दिवाली मनाई जाती है. चूंकि ये दीवाली देवों ने मनाई थी, इसीलिए इसे देव दिवाली कहा जाता है.

कृत्तिकाओं का पूजन है जरूरी-

इस दिन छह कृत्तिकाओं का रात्रि में पूजन करना चाहिए. इस पूजा से संतान का शीघ्र वरदान मिलता है. ये छह कृत्तिकाएं हैं- शिवा, सम्भूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा. इनका पूजन करने के बाद गाय, भेंड़, घोड़ा और घी आदि का दान करना चाहिए. कृत्तिकाओं से संतान और सम्पन्नता प्राप्ति की प्रार्थना करनी चाहिए.

भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व-

भगवान शिव ने इस दिन त्रिपुरासुर का वध किया था. इसलिए इस दिन को ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ भी कहा जाता है. शिव जी की विशेष पूजा से इस दिन तमाम मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस दिन उपवास रखकर शिव जी की पूजा करके बैल का दान करने से शिव पद प्राप्त होता है. शिव ही आदि गुरू हैं, इसलिए इस दिन रात्रि जागरण करके शिव जी की उपासना करने से गुरू की कृपा प्राप्त होती है. गलतियों के प्रायश्चित के लिए भी इस दिन शिव जी की पूजा की जाती है.