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यूपी में का बा?…बाबा! योगी का वो सत्ता मॉडल जिसने बदल दिया इतिहास!

Election Results UP: उत्तर प्रदेश में भाजपा एक बार फिर से प्रचंड बहुमत से जीत गई है. लेकिन दिलचस्प बात ये है कि चुनाव से पहले नेहा सिंह राठौर का एक गाना काफी चर्चा में था कि यूपी में का बा…? अब प्रदेश की जनता ने इसका जवाब दे दिया है कि यूपी में बाबा…

यूपी चुनाव में शुरू से ही नेहा सिंह राठौर का एक गाना काफी चर्चित हुआ कि यूपी में का बा…. अब चुनाव में यूपी की जनता ने जवाब दे दिया है कि यूपी में बाबा बा… सूबे की सत्ता में बीजेपी की प्रचंड वापसी हुई तो योगी आदित्यनाथ के सत्ता मॉडल की भी चर्चा शुरू हो गई. यानी वो सत्ता मॉडल जिसने एंटी इंकमबेंसी के सारे दावे फेल कर दिए, जिसने हिंदुत्व और विकास के कॉकटेल से जातियों के सारे फॉर्मूले फेल कर दिए.

पांच साल पहले मोदी रथ पर सवार बीजेपी ने 2017 के चुनाव में उत्तर प्रदेश में अपना 15 साल के सत्ता का वनवास खत्म कर इतिहास रचा था. इसके बाद जब सरकार बनाने की बारी आई तो सीएम की रेस में केशव प्रसाद मौर्य, स्वतंत्रदेव सिंह से लेकर दिनेश शर्मा और मनोज सिन्हा सहित कई नेताओं के नाम चर्चा में थे. लेकिन, योगी आदित्यनाथ के सिर मुख्यमंत्री का ताज सजा तो खुद बीजेपी के अंदर बड़ा तबका हैरान रह गया था.

यूपी जैसे बड़े राज्य में योगी के सीएम बनाने के बाद बीजेपी ने केशव मौर्य और दिनेश शर्मा के रूप में दो डिप्टी सीएम बनाने का फैसला किया ताकि जातीय संतुलन बना रहे. उस समय योगी के सामने पार्टी में सबका स्वीकार्य नेता बनने की भी एक बड़ी चुनौती थी. सत्ता के अनुभव की कमी के बावजूद योगी सीखने, समझने और एक्शन लेने में पीछे नहीं हटे. मोदी-शाह की जोड़ी ने जो भी टास्क दिया, उसे योगी ने जमीन पर उतारने के साथ-साथ खुद को साबित कर दिखाया. इसीलिए पांच साल के बाद योगी फैक्टर ने यूपी में बीजेपी का परचम लहराने में जमकर मदद की.

बीजेपी शासित राज्यों के लिए रोल मॉडल

योगी आदित्यनाथ पांच साल में अपने कार्यों से मजबूत नेता बन कर उभरे हैं. जो कट्टर, सख्त तेवरों के साथ फैसला लेने और हिंदुत्ववादी एजेंडा मजबूती से लागू करने वाले नेता हैं. योगी अपने विकास कार्यों और आक्रामक सियासी एजेंडे के जरिए पार्टी संगठन और सरकार पर ही पकड़ नहीं बनाई बल्कि जनता के दिल में भी जगह बनाई. इतना ही नहीं देश में बीजेपी शासित तमाम राज्यों के लिए भी सीएम योगी आदित्यनाथ एक रोल मॉडल बनकर उभरे. लव जिहाद और गोहत्या पर रोक, अपराधियों के एनकाउंटर, प्रदर्शनकारियों पर सख्ती जैसे सीएम योगी के फैसले को बीजेपी शासित राज्य अपनाते नजर आए.

योगी ने बनाई अपनी सियासी पकड़ 

योगी संघ के हिंदुत्व एजेंडों को यूपी की जमीन पर उतारने से पीछे नहीं हटे तो विकास की रफ्तार को सूबे में धीमा नहीं होने दिया है. सूबे की बीजेपी-संघ की समन्वय बैठक में योगी सरकार के कामों को तारीफ मिली है. वह चाहे कोरोना से निपटने का मामला रहा हो या फिर यूपी को आधुनिक यूपी बनाने की दिशा में उठाए गए कदम हों. कोरोनाकाल में योगी ने जिस तरह से सूबे भर का दौरा किया, उसका भी एक बड़ा सियासी संदेश गया.

विपक्षी नेरेटिव को तोड़ने में सफल रहे

सीएम योगी के चेहरे को आगे कर बीजेपी 2022 के यूपी चुनाव में उतरी थी. सीएम योगी को घेरने के लिए यूपी चुनाव में हाथरस कांड से लेकर लखीमपुर तक के मुद्दे उठाए गए तो ब्राह्मण और ओबीसी विरोधी नेरेटिव गढ़े गए. सपा और कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी पार्टियों ने इन सभी मुद्दों के जरिए सूबे में बीजेपी को डेंट पहुंचाने की रणनीति के तहत जबरदस्त तरीके से उठाया. कई जगहों पर बीजेपी बैकफुट पर भी गई, लेकिन नतीजे कुछ और ही कहानी कहते हैं. यूपा में बीजेपी को बंपर वोट पड़े और बड़ी जीत हुई. कहा जा रहा है कि योगी की कानून व्यवस्था और बुलडोजर वाली छवि को पसंद किया गया.

यूपी की सियासी धारणाएं तोड़ी

उत्तर प्रदेश चुनावों में कभी कानून-व्यवस्था एक बड़ा मुद्दा रहा है, जिससे जनता, व्यापारी और अधिकारी सभी त्रस्त थे. ऐसे में योगी राज के पांच साल में सबसे ज्यादा जोर कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए दी गई. योगी सरकार में माफियाओं और गुंडों को निशाना बनाया गया, जिसके चलते गुंडागर्दी पर नकेल कसी गई. बुलडोजर तो सिंबल की तरह इस्तेमाल होने लगा, जो योगी राज में माफिया और अपराधियों के घर पर चला. योगी सरकार के पांच साल के कार्यकाल में सूबे के लोगों में एक धारणा बनी है कि कानून का राज है.

जातिवाद का कार्ड नहीं चला 

योगी सरकार के पांच साल में एक तरफ बाह्मणों के नाराज होने की खबर थी, तो दूसरी तरफ किसान आंदोलन के कारण जाट वोटरों की नाराजगी भी झेलनी पड़ रही थी. ओमप्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, धर्म सिंह सैनी जैसे कद्दावर ओबीसी नेता व सहयोगी साथ छोड़ गए थे. बीजेपी से एसपी में शामिल हुए ओबीसी के बड़े नेता सिर्फ हेडलाइन में ही चमके. योगी के सामने जमीन पर उनका वैसा प्रभाव नहीं दिखा, जैसा कि कयास लगाया गया था. इस तरह से विपक्ष की जातीय समीकरण को योगी ने पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया.

आवारा पशुओं से लोग परेशान थे, जिससे चुनाव में बड़ा नुकसान होने की संभावना दिख रही थी. इसके बावजूद यूपी चुनाव के बीजेपी योगी के चेहरे और काम पर चुनावी मैदान में उतरी और सियासी माहौल को बीजेपी के पक्ष में मोड़ने सफल रही. विपक्ष का न जातिवाद का कार्ड चला और न ही ब्राह्मण विरोधी नेरेटिव सफल हुआ. .

योगी के नेतृत्व में बीजेपी का वोट बढ़ा

सीएम योगी ने हिंदुत्व के एजेंडे को धार देने के साथ-साथ पीएम मोदी के विकास मॉडल को जमीन पर उतारने का काम किया. योगी ने सूबे की जनता का भरोसा जीता, जिसके आगे विपक्षी दलों के नेताओं की एक नहीं चली. यूपी चुनाव में अबकी बार भले ही बीजेपी की सीटों की संख्या कम हुई हो, लेकिन पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ा है. 2017 में बीजेपी 40 फीसदी वोटों के साथ 312 सीटों के साथ सत्ता पर काबिज हुई. लेकिन अबकी बार 41 फीसदी से ज्यादा वोट मिले और 255 सीटें जीती. 1980 से लेकर 2017 तक बीजेपी को 40 फीसदी से ज्यादा वोट नहीं मिले, लेकिन अबकी बार नया रिकॉर्ड बना है.

सीएम योगी ने कहा कि यह बहुमत भाजपा के राष्ट्रवाद, विकास और सुशासन के मॉडल को यूपी की 25 करोड़ जनता का आशीर्वाद है. इसे हम सबको स्वीकार करते हुए सबका साथ, सबका विकास, सबका विकास और सबके प्रयास के नारे पर आगे बढ़ना होगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि आपने देखा होगा कि बीते 5 सालों में डबल इंजन की सरकार ने जिस तरह से यूपी में सुरक्षा देने का काम किया, उसे लोगों ने सराहा है. हमने जिस तरह से पीएम मोदी की लीडरशिप में विकास और कल्याणकारी योजनाओं को आगे बढ़ाया है, उसका परिणाम है कि आज जनता ने जातिवाद, वंशवाद की राजनीति को परास्त कर दिया है.