उज्जैनमध्य प्रदेशहोम

हम चुप रहेंगे : प्रशांत अनजाना

प्रशांत अनजाना

 

साधूवाद …

अपने वजनदार जी का दिल से साधूवाद। जिन्होंने बाबा के दरबार में आम जनता की सुध ली। दिशा की बैठक में अपने चुगलीराम जी को सही दिशा दिखाई। मगर इसके पहले उन्होंने अपने सवाल से सभी को निरूत्तर कर दिया। सवाल यह था। बाबा के दर्शन हेतु आम जनता के लिए क्या समय निर्धारित है। 2-3 अधिकारियों से जवाब मांगा। सभी ने अनभिज्ञता जताई। जिसके बाद अपने चुगलीराम जी का चेहरा देखने लायक था। तब हमेशा की तरह अपने उम्मीद जी संकट मोचक बनकर आगे आये। उन्होंने प्रचार-प्रसार के निर्देश दिये। जिसके बाद गर्भगृह में नि:शुल्क दर्शन का बयान सामने आया। आम जनता को लाभ मिला। इसलिए हम अपने वजनदार जी और उम्मीद जी को साधूवाद देते हुए, अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

मोह …
हर जनप्रतिनिधि को कुर्सी से मोह होता है। यह एक अटल सत्य है। मगर राजनीति में वरिष्ठ का भी सम्मान करना चाहिये। इस सबक को हमेशा याद रखना चाहिये। किन्तु अपने पंजाप्रेमी छोटे चरणलाल जी इस सबक को भूल गये। तभी तो दिशा की बैठक में कुर्सी मोह नजर आया। अपने पहलवान थोड़ी देरी से पहुंचे थे। तो सीधे एक छोटी कुर्सी खींचकर बैठ गये। छोटे चरणलाल जी ने देखकर भी अनदेखा कर दिया। लेकिन उम्मीद जी तत्काल अपनी कुर्सी खाली कर दी। पहलवान को सम्मान के साथ बैठाया। अब अगर यही काम अपने छोटे चरणलाल जी कर देते, तो उनकी प्रशंसा ही होती। मगर उनका कुर्सी मोह नहीं छूटा। देखना यह है कि अभी तक किस्मत से प्रधान कुर्सी का मजा ले रहे, छोटे चरणलाल जी को भविष्य मेंंंंंं कुर्सी मिलती है या नहीं? तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

धक्का
राजनीति में एक-दूसरे को गिराने के लिए उठा-पटक चलती रहती है। मगर कोई, किसी को भीड का फायदा उठाकर धक्का मार दे। ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है। घटना पिछले रविवार की है। अपने पहलवान ने नदी किनारे कोई कार्यक्रम रखा था। वहीं पर विकास पुरूष के खास महामंत्री को, किसी ने मौके का फायदा उठाकर धक्का दे दिया। बेचारे …मेरा परिचय करवा दो.. कहने वाले महामंत्री को यह धक्का भारी पड़ गया। ऐसे गिरे कि … 4 सीढिय़ा लुढककर चारो कोने चित हो गये। यह नजारा सभी ने देखा। किसी की कुछ समझ नहीं आया। अचानक क्या हो गया। नतीजा … 10-20 सेकेण्ड तक कोई उठाने भी नहीं गया। फिर उनको उठाया गया। जिसके बाद कमलप्रेमी उस धक्का देने वाले की खोज कर रहे है। जो कि भीड में गायब हो गया। किसी को कुछ पता नहीं चला है। तो फिलहाल चुप है। हम भी अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

आदत
शायर नदीम शाद का शेर है। उसको भुलाकर मुझको यह एहसास हुआ/ आदत कैसी भी हो छोडी जा सकती है। मगर कुछ आदते नहीं छुटती है। फिर भले ही इंसान कितने भी ऊंचे पद पर विराजमान हो जाये। अपने विकास पुरूष की भी एक आदत है। जिसको कमलप्रेमी अपनी भाषा में बोलते है। उनकी दोनों जेबे सिली हुई है। दक्षिण के सभी कमलप्रेमी उनकी इस आदत से वाकिफ है। मगर जहां के विकास पुरूष प्रभारी है। वहां के कमलप्रेमी इस आदत से परिचित नहीं है। इसीलिए … लोकार्पण/ भूमिपूजन के बाद वहां के कमलप्रेमी अपनी जेब से राशि निकालकर पंडित को देते है। देकर खुश होते है। हमने प्रभारी की इज्जत बढ़ाई। विकास पुरूष भी पीठ थपथपा देते है। मगर किसी को उनकी आदत पता नहीं है। ताज्जुब की बात यह है कि ऐसा ही एक वीडियो अपलोड हुआ है। जो कि खुद विकास पुरूष की वॉल पर है। जिसमें कोई और राशि दे रहा है। यह देखकर दक्षिण के कमलप्रेमी उनकी आदत की चर्चा कर रहे है। लेकिन हमको तो अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।

इज्जत
बहुत सिम्पल नियम है। इज्जत दीजिए- इज्जत लीजिए। इस नियम को एक अनपढ़ इंसान भी समझता है। मगर अपने पपेट जी ने शायद यह नियम नहीं पढ़ा है। तभी तो सरकारी विश्राम गृह में सबके सामने भड़क गये। वह भी अपने पंडित जी पर। जो कि अपनी बेहतर कार्यप्रणाली के लिए शिवाजी भवन में जाने जाते है। किसी फोल्डर को लेकर आक्रोश दिखाया। यह काम पंडित जी का था भी नहीं। बस फिर क्या था। सहज-सरल पंडित जी का पारा सातवे आसमान पर था। उन्होंने दूरभाष पर ही जिम्मेदार सहायक को फटकार लगा दी। नतीजा पपेट जी ने तत्काल रूख बदला। नाराजगी दूर करने के लिए पंडित जी को अपने वाहन में बैठाना चाहा। मगर बात नहीं बनी। ऐसा हम नहीं, बल्कि घटना को देखने वाले एक दर्जन लोग कह रहे है। अब देखना यह है कि अपने पपेट जी इस घटना से क्या सबक लेते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

3 सवाल
शीर्षक पढ़कर हमारे पाठक यह अंदाजा नहीं लगाये। हमारी तरफ से कोई 3 सवाल है। यह सवाल तो अपने ढीला-मानुष के है। जो उनके लिए तय किये गये है। जिनको पार्षद बनना है। मगर टिकिट से पहले 3 सवालों का जवाब देना होगा। पहला सवाल यह है कि … आजीवन निधि के कितने कट्टे (रसीद) कटवाये। दूसरा सवाल पार्टी में कब से काम कर रहे हो। अंतिम सवाल पार्टी के कार्यक्रम में कितने सक्रिय रहते हो। इन सवालों के जवाब कमंडल के मुखिया और महामंत्री को देना होंगे। उसके बाद ही दावेदारी पर विचार होगा। यह नियम अपने विकास पुरूष- पहलवान और वजनदार जी की सिफारिशों पर भी लागू होगा। ऐसा अपने ढीला-मानुष का कहना है। देखना यह है कि इन सवालों को तीनों जनप्रतिनिधि कितनी गंभीरता से लेते है। तब तक हम अपनी आदत के अनुसार चुप हो जाते है।

बाय-बाय…
तो आखिरकार अपने 7 जिले के मुखिया बाय-बाय कहने वाले है। बाबा महाकाल की नगरी में संभवत: उनका यह अंतिम सप्ताह होगा। वैसे भी उन्होंने खुद ही जाने का मन बना लिया है। जिस पर राजधानी से इस सप्ताह मोहर लग सकती है। राजधानी के गलियारों में तो यही चर्चा है। बाकी हमको अपनी आदत के अनुसार चुप ही रहना है।