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बेड़े में बढ़ेंगे सुखोई, घातक ब्रह्मोस मिसाइल पर पूरा भरोसा; चीन की चुनौतियों से निपटने की तैयारी में IAF

अब भारतीय वायुसेना ने अपने बेड़े में हवा से लॉन्च की जाने वाली ब्रह्मोस मिसाइल को ले जाने की क्षमता रखने वाले सुखोई एसयू-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों की संख्या बढ़ाने की योजना बनाई है।

भारत अपनी सैन्य क्षमताओं और देश में ही रक्षा सामग्री उत्पादन में लगातार वृद्धि कर रहा है। अब भारतीय वायुसेना ने अपने बेड़े में हवा से लॉन्च की जाने वाली ब्रह्मोस मिसाइल को ले जाने की क्षमता रखने वाले सुखोई एसयू-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों की संख्या बढ़ाने की योजना बनाई है। जानिए, भारत को इन विमानों की संख्या बढ़ाने की जरूरत क्यों है, ब्रह्मोस मिसाइल अमेरिका और चीन के मुकाबले में कितना मजबूत हथियार है?

चीन से क्या चुनौती है?
1. चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी की हिंद महासागर क्षेत्र में गतिविधियां बढ़ रहीं हैं। ऐसे में हिंद महासागर में दूर तक लक्ष्य को भेदने की क्षमता भारत के लिए जरूरी है। इसलिए अगस्त 2020 में वायुसेना ने तमिलनाडु के तंजावुर में सुखोई एसयू-30 एमकेआई की 222 ‘टाइगर शार्क’ स्क्वाड्रन को शुरू किया। इसमें 18 लड़ाकू विमान शामिल थे, जिनमें से छह ब्रह्मोस से लैस हैं।

2. चीन, लद्दाख और पूर्वोत्तर में भारत की कमान और नियंत्रण मुख्यालय समेत उत्तरी भारत में उन्नत लैंडिंग ग्राउंड (एएलजी), एयरबेस को नष्ट कर सकता है। वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के साथ भारत की जमीनी सेना भी चीन की सीजे-20 एएलसीएम मिसाइल के हमलों की चपेट में आ सकती है। इसकी रेंज 2000 किलोमीटर से अधिक है।

कैसे निपट सकेंगे चीन से?
1. तंजावुर की रणनीतिक स्थिति भारतीय वायुसेना के ब्रह्मोस से लैस सुखोई-30एमकेआई को मलक्का जलडमरूमध्य के पास लक्ष्यों पर निशाना साधने में सक्षम बनाती है। मलक्का जलडमरूमध्य मलेशिया और सिंगापुर के बीच एक संकीर्ण समुद्री चोकपॉइंट है, जो हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच प्रवेश द्वारों में से एक है।

2. ब्रह्मोस से लैस सुखोई-30एमकेआई को यदि ग्रेटर निकोबार द्वीप पर तैनात किया जाता है, तो यह दक्षिणी हिंद महासागर के विशाल क्षेत्रों में स्थित दुश्मन के ठिकानों पर हमला कर सकता है।

3. पाकिस्तान और चीन के साथ लगती भारत की पश्चिमी और पूर्वी सीमा पर तैनात सुखोई विमान इन देशों के अंदर स्टैंड-ऑफ रेंज और यहां तक कि भारतीय हवाई क्षेत्र के अंदर से भी लक्ष्य भेद सकते हैं।

ब्रह्मोस की मारक क्षमता कितनी होगी?
ब्रह्मोस की मारक क्षमता 500 किलोमीटर तक होगी जो 1500 किलोमीटर तक बढ़ सकती है। इसका वजन करीब 2500 किलोग्राम है और यह सबसे अच्छी अमेरिकी मिसाइलों के बराबर है। साल 2020 में एक परीक्षण के दौरान इस मिसाइल से लैस सुखोई ने पंजाब के एक एयरबेस से उड़ान भरी और करीब 4000 किलोमीटर दूर हिंद महासागर में स्थित एक लक्ष्य को भेदा।

कितने सुखोई संशोधित किए जाएंगे?
वायुसेना ने ब्रह्मोस एयर लॉन्च क्रूज मिसाइल को संचालित करने में सक्षम बनाने के लिए 40 सुखोई-30 विमानों को संशोधित करने की योजना को मंजूरी दी थी। इन विमानों का संशोधन हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा हो रहा है। अब तक 35 संसोशित विमान वायुसेना को मिल चुके हैं। इनके अलावा 20 से 25 लड़ाकू विमानों को संशोधित किए जाने की योजना है।

भारत की आगे क्या योजना है?
1. भारत ने ब्रह्मोस मिसाइल का विस्तारित-रेंज (ईआर) संस्करण भी विकसित किया है, जिसकी मारक क्षमता 450-500 किलोमीटर के बीच है। मई में वायुसेना ने ब्रह्मोस-ईआर का परीक्षण किया था, जिसके तहत तंजावुर में तैनात 222 टाइगर शार्क स्क्वाड्रन के एक सुखोई विमान ने बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में एक तय लक्ष्य को भेदा था। ब्रह्मोस के ईआर संस्करण का इस्तेमाल पूर्वी चीन में मुख्य रसद केंद्रों पर हमला करने के लिए किया जा सकता है।

2. रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) छोटी ब्रह्मोस-एनजी (नेक्स्ट जेन) मिसाइल भी विकसित कर रहा है, जिसका वजन लगभग 1.5 टन है। इसे मूल सुखोई-30, राफेल और तेजस, तेजस एमके2 जैसे अन्य लड़ाकू विमानों के जरिये भी ले जाया जा सकता है।

3. इसके अलावा, एक पारंपरिक (गैर-परमाणु) ब्रह्मोस मिसाइल का 800 किलोमीटर रेंज वाला संस्करण भी है, जिसका वर्तमान में विकासात्मक परीक्षण चल रहा है। कथित तौर पर जनवरी में पहली बार बालासोर में अंतरिम परीक्षण रेंज से इसका परीक्षण किया गया था। इस मिसाइल के साल 2023 के अंत तक उत्पादन के लिए तैयार होने की उम्मीद है।