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राजस्थान देश का पहला राज्य, जहां ऑडिटर ब्रेन स्टेम का सरकारी अस्पताल में किया जा रहा है निःशुल्क उपचार

चिरंजीवी योजना में निःशुल्क कॉकलियर इंप्लांट
राजस्थान देश का पहला राज्य, जहां ऑडिटर ब्रेन स्टेम का सरकारी अस्पताल में किया जा रहा है निःशुल्क उपचार
– राज्य के एक हजार से अधिक बच्चों को मिली सुनने-बोलने की क्षमता
– अमेरिका और यूरोपीय देशों की नीति अब राजस्थान में भी
– अब दोनों कानों में किया जा सकेगा निःशुल्क कॉकलियर इंप्लांट
राजस्थान  | जन्म से सुनने और बोलने की अक्षमता एक गंभीर समस्या है, जिसका असर आजीवन रह सकता है। भारत में पैदा होने वाले प्रति एक हजार बच्चों में से चार बच्चे ऐसी विकृति के साथ पैदा होते हैं। यदि अभिभावक इसको लेकर शुरू से सावधान रहें तो बच्चों को इस समस्या से बचाया जा सकता है। इसके उपचार में कॉकलियर इम्प्लांट तकनीक बेहद कारगर सिद्ध हुई है। विशेष रूप से राजस्थान इस तकनीक के जरिए उपचार उपलब्ध करवाने में देश में अग्रणी राज्य बनकर सामने आया है।
आंध्रप्रदेश और केरल के बाद राजस्थान देश का तीसरा राज्य है, जहां कॉकलियर इम्प्लांट के जरिए पांच वर्ष तक के करीब 1100 बच्चों की सुनने और बोलने की क्षमता लौटाई जा रही है। गौरतलब है कि आंध्रप्रदेश और केरल में जहां यह तकनीक निजी अस्पतालों में ही उपलब्ध है, वहीं राजस्थान में यह मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत सरकारी अस्पताल में पूरी तरह निःशुल्क उपलब्ध है।
किन बच्चों में किया जाता है इम्प्लांट
कॉकलियर इम्प्लांट उन बच्चों के लिए उपयोगी है, जो जन्म से सुनने में असमर्थ होते हैं या बहुत ही कम सुन पाते हैं और जिनको आम सुनने की मशीन से भी कोई फायदा नहीं मिलता है। कॉकलियर इम्प्लांट एक ऐसी मशीन है, जिसके दो भाग होते हैं। इसका एक भाग ऑपरेशन के जरिए कान के आंतरिक हिस्से में लगाया जाता है, वहीं दूसरा भाग स्पीच प्रोसेसर होता है, जो कान के पीछे बाहर की ओर लगाया जाता है। राजस्थान में शुरुआत में ऐसे बच्चों के एक कान में ही कॉकलियर इम्प्लांट किया जाता था, लेकिन अब दोनों कानों में कॉकलियर इम्प्लांट किया जा रहा है। विशेष बात यह है कि इस उपचार को मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के पैकेज में शामिल कर लिया गया है, जिससे राज्य के गरीब मरीज भी इसका फायदा उठा पाएंगे।
इन अस्पतालों में हो रहा इम्प्लांट
अभी प्रदेश के पांच शहरों के राजकीय अस्पतालों में निःशुल्क कॉकलियर इम्प्लांट की सुविधा उपलब्ध है। इनमें जयपुर, अजमेर, बीकानेर, उदयपुर और जोधपुर शामिल हैं। राजधानी जयपुर के एसएमएस अस्पताल में अब तक 700, जयपुरिया अस्पताल में 95, सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज बीकानेर में 145, आरएनटी मेडिकल कॉलेज उदयपुर में 40, एसएन मेडिकल कॉलेज जोधपुर में 60 तथा जेएलएन मेडिकल कॉलेज अजमेर में 20 इम्प्लांट किए जा चुके हैं।
क्या होता है कॉकलियर इम्प्लांट
एसएमएस अस्पताल जयपुर के ईएनटी विभाग के प्रोफेसर डॉ. मोहनीश ग्रोवर ने बताया कि अमेरिका और यूरोपीय देशों में दोनों कानों में कॉकलियर इंप्लांट करने की पॉलिसी है और अब राजस्थान में भी ये पॉलिसी लागू कर दी गई है। कॉकलियर इम्प्लांट में लगाया जाने वाला उपकरण ध्वनि संकेतों को इलेक्ट्रिकल सिग्नल में परिवर्तित देता है। इस सिगनल को यह सीधे कॉकलियर, जिसे हम सुनाई देने वाली नस कहते हैं, तक पहुंचा देता है। इस प्रक्रिया में कान की कोई भूमिका नहीं रह जाती और आवाज सीधे मस्तिष्क तक पहुँच जाती है।
9 माह की उम्र के बाद ही हो सकता है इम्प्लांट
प्रोफेसर डॉ. मोहनीश ग्रोवर के अनुसार कॉकलियर इम्प्लांट के लिए बच्चों की आयु जितनी कम हो, उतना ही अधिक लाभ मिलता है। स्वास्थ्य नीति के अनुसार इम्प्लांट के लिए नौ महीने की आयु अनुमोदित है यानी कम से कम नौ महीने से बड़े बच्चों का ही ऑपरेशन हो सकता है। राजस्थान में 4 साल से कम उम्र के बच्चे निशुल्क इलाज प्राप्त कर सकते हैं। कॉकलियर इम्प्लांट का ऑपरेशन सामान्यतः बहुत महंगा है। प्रत्येक ऑपरेशन का खर्च कम से कम आठ से 10 लाख होता है। राजस्थान इसे निःशुल्क करने वाला देश का तीसरा राज्य है। एक अप्रेल, 2022 से इसे मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना में शामिल कर लिया गया है।
अब कॉकलियर से भी आगे की तकनीक
प्रोफेसर ग्रोवर के अनुसार कॉकलियर इम्प्लांट करने के लिए रोगी के मस्तिष्क में यह कॉकलियर नर्व का होना आवश्यक होता है। लेकिन जिन मरीजों में यह नर्व नहीं होती, उनमें सर्जरी के जरिए कॉकलियर नस विकसित कर इम्प्लांट किया जाता है, जिसे ऑडिटर ब्रेन स्टेम कहते हैं। यह अत्याधुनिक तकनीक है, जो अभी केवल चेन्नई, दिल्ली के कुछ निजी अस्पतालों में ही इस्तेमाल की जाती है। राजस्थान देश का पहला राज्य है, जहां यह 18 से 20 लाख रुपये में होने वाला बेहद खर्चीला इम्प्लांट सरकारी अस्पताल में निःशुल्क किया जा रहा है।