बॉलीवुड

सुरेन्द्र पाल ने निभाये ३२ साल में इतने सारे किरदार

बी आर चोपडा के बनाए कालजयी टेलीविजन धारावाहिक ‘महाभारत’ में कई कलाकारों ने काम किया है लेकिन उनमें से द्रोणाचार्य का किरदार निभाने वाले सुरेन्द्र पाल ही ऐसे इकलौते अभिनेता है जो अब तक अभिनय में सबसे ज्यादा सक्रिय हैं। टीवी धारावाहिकों के 10 हजार से ज्यादा एपिसोड्स में काम कर चुके सुरेन्द्र पाल की अभिनय यात्रा 32 साल पहले शुरू हुई और अब भी जारी है। ‘महाभारत’ के किरदार द्रोणाचार्य  के अलावा ‘शक्तिमान’ के किरदार किलविश, ‘देवो के देव महादेव’ के किरदार प्रजापति दक्ष और जी हॉरर शो के एपीसोड ‘साया’ के किरदार विक्रांत जब्बार के जरिये सुरेंद्र पाल ने देश विदश में लाखों प्रशंसक बनाए हैं। फिल्म ‘अबोध’ में माधुरी दीक्षित के डेब्यू के बाद 1986 में सुरेंद्र पाल के सामने एक मौका एक भोजपुरी फिल्म में उनका हीरो बनने का भी आया था, लेकिन माधुरी के ना के चलते बात बनी नहीं और इस बात का मलाल सुरेंद्र पाल को आज भी है। ऐसी ही कुछ और दिलचस्प किस्से सुनाए सुरेंद्र पाल ने ‘अमर उजाला’ के साथ इस खास मुलाकात में…

छोटे पर्दे पर शुरुआत मैंने बी आर चोपड़ा की ‘महाभारत’ में द्रोणाचार्य का किरदार निभा कर की। ‘महाभारत’ ने  हिंदुस्तान के अंदर एक इतिहास लिख दिया। उसके बाद टेलीविजन का जो भी सिलसिला शुरू हुआ, भूमिकाओं में बंधकर नहीं रहा। अगर बुड्ढे के रोल से अपने अभिनय जीवन की शुरुआत की थी तो उसके बाद ‘चंद्रकांता’ में राजा जयसिंह की भूमिका, उसके बाद जी हॉरर शो के एपीसोड ‘साया’ के किरदार विक्रांत जब्बार ने हिंदुस्तान में तहलका मचा दिया। यह शो इतना लोकप्रिय हुआ कि पांच साल तक चला। उसके बाद ‘शक्तिमान’ का किरदार मिल गया।

शक्तिमान’ में मैंने जो किरदार निभाया था उसके बारे में मुकेश खन्ना कहते थे कि विलेन का वह किरदार सिवाय अमरीश पुरी के और कोई निभा ही नहीं सकता है। मैंने कहा कि जब तक यह रोल किसी को दोगे नहीं तो करके कोई दिखाएगा कैसे? मुकेश खन्ना ने कहा कि अमरीश पुरी को ही वह रोल देंगे। किसी कारणवश अमरीश पुरी वह रोल नहीं कर पाए तो मुकेश खन्ना ने मुझसे कहा कि तुम क्या करना चाहते हो करो? मैंने कहा कि जिस हुड्डे से आपने उसका चेहरा कवर कर रखा है सबसे पहले उसे हटाना चाहता हूं और जब वह हुड्डा हटा तो लोगों ने किलविश को देखा। जितना लोकप्रिय शक्तिमान रहा। उतना ही लोकप्रिय किलविश का भी किरदार रहा।

फिल्मों की तरह मेरा झुकाव कभी नहीं रहा क्योंकि मेरा मानना है कि दो नावों की सवारी ठीक नहीं होती। अगर मैं टेलीविजन के साथ फिल्म भी करता तो भटक जाता और अपनी मंजिल नहीं पकड़ पाता। इसलिए फिल्मों की तरफ नहीं भागा। मेरा ध्यान सिर्फ टेलीविजन पर ही रहा और मुझे धारावाहिक मिलते ही गए। ‘शगुन’, ‘पृथ्वीराज चौहान’, ‘महाराणा प्रताप’,  ‘देवो के देव महादेव’ आदि में मैंने दमदार भूमिकाएं निभाईं। 32 साल की अभिनय की यात्रा में अब तक 10 हजार एपिसोड में काम कर चुका हूं। मेरे तीन बच्चे हैं। शिवम सिंह, शिवांगी सिंह और शुभम सिंह। जल्द ही बड़ा बेटा शिवम सिंह साउथ की फिल्मों से बतौर अभिनेता अपने करियर की शुरुआत करेगा।

शुरुआत में तो मैने बहुत सारी फिल्मों में काम किया। ऐश्वर्या राय बच्चन, काजोल, तब्बू जैसी अभिनेत्रियों के पिता के रोल के लिए बहुत ऑफर आए लेकिन मैं पिता की भूमिका में बंधकर नहीं रहना चाह रहा था। फिल्मों में ऐसा किरदार निभाना चाह रहा था जो असरदार हो। फिल्मों में मैंने जो भी किरदार निभाए हैं चाहे वो ‘जोधा अकबर’ हो, ‘इंडियन’, ‘पुलिस वाला गुंडा’ या फिर ‘गृहस्थी’ हो सब अच्छे किरदार रहे हैं और मेरा यह सौभाग्य रहा है कि फिल्मों में इंडस्ट्री के सभी बड़े कलाकारों अशोक कुमार, सुनील दत्त, धर्मेंद्र, अमिताभ बच्चन आदि के साथ काम करने का मौका मिला हैं।

मेरी पहली फिल्म ‘क्रोधी’ थी जिसका निर्माण और निर्देशन सुभाष घई ने किया था। इस फिल्म में मैंने एक इंजीनियर विक्टर का किरदार निभाया था। उस फिल्म में धर्मेंद्र के साथ काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैं 1979 में मुंबई आया तो उस समय मुश्किल से 100 फिल्में बनती थी और उन फिल्मों में सिर्फ नामचीन लोगों को ही काम मिलता था। उसी दौरान मेरी मुलाकात शत्रुघ्न सिन्हा ने सुभाष घई से कराई। शत्रुघन सिन्हा से हमारी मुलाकात एक मित्र के जरिए उनके बंगले पर हुई। उस समय तक टेलीविजन धारावाहिकों का दौर नहीं आया था। आज तो करीब 600 धारावाहिक बन रहे हैं। कहीं ना कहीं काम मिल ही जाता है।

मेरे पिता श्री दशरथ सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस में डीएसपी थे। पिताजी का जहां जहां ट्रांसफर होता हम लोग भी साथ चले जाते थे। इटावा में काफी समय रहा, वहीं पर स्कूल से लेकर ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई पूरी की। 11 भाई बहनों में सबसे छोटा मैं ही हूं। मेरे परिवार और रिश्तेदार में ज्यादातर लोग सेना और पुलिस में हैं। मुझे लगता था कि सामाजिक होकर मुझे बहुत सारे लोगों से मिलना है। इसके लिए दो ही रास्ते थे या तो नेता बनूं या फिर अभिनेता। नेता वाले गुण मेरे अंदर थे नहीं, अभिनेता के थोडे लक्षण थे, इसलिए अभिनेता बनने के बारे में सोचा। लेकिन मेरे पिताजी को सिनेमा में काम करना पसंद नहीं था।

जब पिताजी को पता चला कि मुझे एक्टिंग करनी है तब वह बहुत नाराज हुए। वह नहीं चाहते थे कि मैं फिल्म लाइन में जाऊं, क्योंकि वह फिल्म लाइन को बहुत अच्छी नजर से नहीं देखते थे। उनको लगता था कि बेटा मुंबई जाएगा तो लोग लूट लेंगे। उन्होंने फिल्मों में देखा था कि हीरो मुंबई पहुंचता है तो लोग उसका सामान गायब कर देते है। मां सरस्वती देवी गृहणी थीं। 11 भाई बहन की परवरिश में ही उनका दिन निकल जाता था। मुझे मेरे भाई बहनों की तरफ से काफी प्रोत्साहन मिला और मैंने मुंबई शहर में कदम रख दिया।

मैंने 1986 में एक भोजपुरी फिल्म ‘गंगा की बेटी’ में काम किया था। बहुत हिट हुई थी वह फिल्म। फिल्म में हीरोइन के लिए माधुरी दीक्षित का नाम फाइनल हो चुका था। वह भी तैयार थीं, बस पैसे को लेकर बात नहीं बनी। बाद में उनकी जगह टीना घई को लिया गया। मैं देश की सभी भाषाओं से बहुत प्यार करता हूं लेकिन भोजपुरी से ज्यादा क्योंकि भोजपुरी मेरी मातृभाषा है। उसके बाद फिर किसी भोजपुरी फिल्म में काम नहीं किया। साल 2007 में मैंने बतौर निर्माता एक भोजपुरी फिल्म ‘ए भौजी के सिस्टर’ निर्माण किया। फिल्म में मनोज तिवारी, श्वेता तिवारी के अलावा मुकेश खन्ना भी अहम किरदार में थे। ये फिल्म बनाने के बाद इतना समझ में आ गया कि जो काम आप नहीं कर सकते. उसे नहीं करना चाहिए।