इंदौरमध्य प्रदेश

मरने के बाद समाधि के लिए किन्नरों का संघर्ष:सरकार से मांगी दो बीघा जमीन, ताकि बना सकें समाधि

किन्नर समुदाय में मरने के बाद समाधि देने की परंपरा सदियों से है। एक स्थान पर एक ही समाधि बनती है वहां दूसरे की समाधि नहीं बनाई जाती। लेकिन किन्नरों की संख्या अधिक होने के कारण इंदौर में इस समुदाय को अब समाधि की जगह कम पड़ने लगी है। इसके लिए अब वे सरकार से जमीन की मांग कर रहे हैं। आइये जानते हैं क्या है पूरा मामला…

अब तक घर के अंदर ही बनाते हैं समाधि

इंदौर के नंदलाल पुरा क्षेत्र में किन्नर समुदाय के लोग सालों से रह रहे हैं। किसी भी किन्नर की मौत के बाद घर के अंदर ही समाधि बनाते आए हैं। लेकिन बीते कुछ समय से समाधि की जगह अब कम पड़ने लगी है। घर से बाहर श्मशान देखकर समाधि बनाने निकले तो लोगों ने आपत्ति जताई। इसलिए अब इनके सामने जगह की समस्या खड़ी हो गई है। करीब एक साल पहले प्रशासन से किन्नर समुदाय ने श्मशान के लिए जमीन की मांग रखी थी लेकिन कोई समाधान नहीं निकला।

कलेक्टर इलैया राजा टी से श्मशान के लिए जमीन के संबंध में चर्चा करते हुए किन्नर समुदाय का प्रतिनिधि मंडल।

जानिए समाधि के लिए कितनी जमीन की मांग प्रशासन से की गई है

किन्नर समुदाय समाधि के लिए 2 बीघा जमीन की मांग कर रहा है। कलेक्टर इलैया राजा टी से किन्नर जमीन के सिलसिले में एक बार पहले भी मिल चुके हैं और हाल ही में दोबारा मिलकर जल्द से जल्द श्मशान के लिए जमीन की मांग की है। कलेक्टर ने उन्हें आश्वास्त किया है कि इस समस्या का निराकरण जल्द ही निकाल लिया जाएगा। मंगलवार को एक बार फिर कलेक्टर ने उन्हें मिलने बुलाया है।

संख्या बढ़ी इसलिए जरूरी, आश्रम भी बनाएंगे

45 वर्षीय किन्नर खुशबू बताती हैं कि ‘पहले संख्या कम थी। 30-40 लोग ही थे। अब संख्या बढ़कर करीब 200 हो गई है। घर में समाधि की जगह भी नहीं बची है, क्योंकि समाधि देने के बाद वापस उस जगह का उपयोग नहीं करते हैं। दूसरे किन्नर के लिए दूसरी जगह पर ही समाधि बनाना पड़ती है। इसलिए दो बीघा जमीन की मांग कर रहे हैं, जिससे वहां आश्रम और पूजा स्थल बना सकें। शाजापुर में प्रशासन ने पंद्रह दिन में ही जमीन अलॉट कर दी थी।’

हमारी कोई जाति नहीं, इसलिए सभी का अंतिम संस्कार एक जैसा

यहां (किन्नर समुदाय में) आने के बाद हमारी कोई जाति नहीं रह जाती। हम लोगों से भिक्षा लेकर अपना जीवन निर्वाह करते हैं। हिन्दू-मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्म में किन्नर जन्म लेते हैं लेकिन फिर उन्हें अलग कर दिया जाता है। एक तरह से हम संत की तरह जीवन भर रहते हैं, हमें सभी लोगों से सहयोग मिलता है। चूंकि हमारी जाति नहीं होती इसलिए किन्नर समुदाय का अंतिम संस्कार भी एक ही प्रक्रिया से किया जाता है।

किसी के सामने अंतिम संस्कार नहीं करते, सूर्योदय के पहले करना पड़ती है पूरी प्रक्रिया

निधन के बाद मृत किन्नर को किसी आम आदमी के सामने नहीं किया जा सकता। किन्नर को जीवित देखना जितना शुभ माना जाता है, मृत्यु के बाद देखना उतना ही अपशगुन। समाधि के दौरान सिर्फ अन्य किन्नर ही मौजूद रहते हैं। इसलिए अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया रात में ही की जाती है, यानी सूर्योदय से पहले। यहां किसी प्रकार का कोई शोरगुल नहीं होता। ताकि अन्य बाहरी लोगों को पता नहीं चले। इसको जीवन से मुक्ति माना जाता है।

जल्द से जल्द पूरी करेंगे मांग

कलेक्टर इलैया राजा टी का कहना है कि किन्नरों से सेकंड टाइम मैं मिला। उन लोगों की श्मशान घाट की मांग है। प्रशासन सकारात्मक रूप से इस डिमांड को देखेगा। जल्द से जल्द इनकी मांग को कैसे पूरा करें, उसे लेकर काम करेंगे।