मध्य प्रदेश

यहां 40 की उम्र में टूटने लगती हैं हडि्डयां:25 की उम्र में ही मुड़ने लगते हैं पैर; MP के इस गांव में रिश्तेदार भी नहीं रुकते

‘हडि्डयों की इतनी भयंकर समस्या है कि आप कहो पीछे गर्दन घुमाकर देखने का, तो मैं देख नहीं सकता। आप जमीन पर कहो बैठने के लिए, तो बैठ नहीं सकता हूं। हमने ऐसी शादियों में जाना छोड़ दिया है, जहां जमीन पर बैठकर खाना होता है। गांव में तो हडि्डयों की इस बीमारी के चलते अब शादियां हो ही नहीं रही।’

हडि्डयों की अजीबोगरीब बीमारी से जूझ रहे भिंड जिले के स्टेशनपुरा गांव के राजू जाटव अपनी ये तकलीफ बता रहे थे, तो उनके चेहरे पर सहजता थी। बात ऐसी, जैसे बोलते-बोलते रट चुकी हो। वजह ये है कि उनके गांव के कुल 45 घरों में करीब 50 दिव्यांग हैं। गांव का ऐसा कोई घर-परिवार नहीं, जिसमें हडि्डयों की रहस्यमयी बीमारी न हो। इस बीमारी में 25 साल की उम्र के बाद हडि्डयां कमजोर पड़ने लगती हैं। 40 साल के बाद बार-बार टूटने लगती हैं। आखिर क्या है ये बीमारी और कैसे बीमारी का मुकाबला कर रहे हैं यहां के लोग? यही समझने हम स्टेशनपुरा गांव पहुंचे।

गांव के हर घर में इस तरह दिव्यांगता ने पैर पसार लिए हैं।

गांव के हर घर में बैसाखी पर दिखे लोग

जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर राष्ट्रीय राजमार्ग से कुछ ही दूरी पर है स्टेशनपुरा गांव। कनेक्टिविटी के लिहाज से बढ़िया जगह, लेकिन जब हम यहां पहुंचे, तो पता चला कि यहां के लोगों की एक समस्या ऐसी है, जो 29 बरस से बढ़ती जा रही है। कोई अफसर और डॉक्टर इसे ठीक तरीके से समझ नहीं पा रहा। गांव के हर घर में या ताे लोग बैसाखी के सहारे दिखे या वॉकर का सहारा लेकर चलते-फिरते। जिन्हें अभी सहारे के जरूरत नहीं है, वो भी मुड़े हुए पैरों से धीमे-धीमे संभलकर चलते दिखे।

करीब 350 लोगों की आबादी वाले इस गांव में 45 घर हैं। करीब हर घर में 25 साल से अधिक उम्र के लोगों के पैरों में टेढ़ापन है। महिलाओं ने तो ये भी शिकायत की कि बीमारी के कारण कुछ लोगों के दांत भी टूट रहे हैं। कुछ घरों में तो बच्चों में भी ये समस्या दिखाई देती है। गांव के लोग कहते हैं कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ने लगती है। हमारी चिंताएं भी बढ़ने लगती हैं। एक-दूसरे का सहारा बनने जैसे हालात भी नहीं होते। गांव के लोगों काे संदेह है कि उनके गांव का पानी ही खराब है। पानी में कैल्शियम की कमी है, जिससे ये बीमारी फैलती जा रही है।

गांव के जिन लोगों ने ग्वालियर या भिंड अस्पताल में एक्स-रे कराया है, उनके घुटने के ठीक नीचे से एक अजीब सा कर्व (मोड़) नजर आता है।
गांव के जिन लोगों ने ग्वालियर या भिंड अस्पताल में एक्स-रे कराया है, उनके घुटने के ठीक नीचे से एक अजीब सा कर्व (मोड़) नजर आता है।

कब से शुरू हुई गांव में ये बीमारी

बताया जा रहा है कि स्टेशनपुरा गांव 1989 में बसा था। गांव के लोग एक कुएं से प्यास बुझा रहे थे। इसके बाद 1994 से लोगों में दिव्यांगता के लक्षण आना शुरू हुए। हड्डियां कमजोर होने से गांव में कई लोगों की मौत हो गई। गांव के दीनानाथ पिता दर्शनलाल के परिवार में पिछले 14 साल में पांच लोगों की मौत हो चुकी है। दीनानाथ खुद दिव्यांगता की बीमारी से जूझ रहे हैं। गांव के ज्यादातर लोग इस बीमारी का इलाज ग्वालियर के स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स से करा रहे हैं। दीनानाथ कहते हैं कि डॉक्टर्स का कहना है कि पानी में संभवत: कुछ समस्या है। साफ-साफ तो कुछ नहीं बताया, लेकिन कहते हैं कि कैल्शियम की कमी के कारण ऐसा हो सकता है।

फिर शुरू हुआ गुहार का सिलसिला

जब गांव में बीमारी तेजी से फैलने लगी तो गांववालों ने अफसरों से गुहार लगाई। सरकारी कानों तक ये बात करीब दस बरस पहले पहुंच गई, लेकिन अफसरों के पैर पहली बार इस बीमारी को लेकर तीन बरस पहले गांव तक आए। पीएचई के अफसरों ने गांव से पानी के सैंपल लिए। जांच की और गांव के लोगों को बताया कि कैल्शियम की कमी जैसी बात रिपोर्ट में नहीं आई है। बात ‘आई गई’ हो गई। बीमारी जस की तस बनी रही।

सबसे बड़ी चिंता यही है कि ये बीमारी अब गांव के बच्चों में भी असर दिखाने लगी है।
सबसे बड़ी चिंता यही है कि ये बीमारी अब गांव के बच्चों में भी असर दिखाने लगी है।

गांव के लोगों ने ही शुरू किए जतन

पीएचई के अफसरों ने भले ही कैल्शियम की कमी की बात से इनकार कर दिया, लेकिन गांव के लोगों के पास बीमारी का और कोई कारण अब तक किसी ने नहीं बताया था, इसलिए उन्होंने अपने स्तर पर जतन शुरू कर दिए। अब आलम ये है कि हर घर में पानी साफ करने के लिए वाटर प्यूरीफायर लगा है। रायतपुरा सरपंच के बेटे हरविंदर काग कहते हैं कि यहां वाटर प्यूरीफायर में हर दो-तीन महीने में फिल्टर बदलना पड़ता है। फिल्टर पर सफेद परत जमा हो जाती है। पानी का स्वाद भी खारा है।

गांव में करीब सभी घरों में लोगों ने वाटर प्यूरीफायर लगा रखा है।
गांव में करीब सभी घरों में लोगों ने वाटर प्यूरीफायर लगा रखा है।

फिर भी नहीं मिली राहत

गांव के लोगों के तमाम जतन करने के बाद भी राहत नहीं मिली। वॉकर के सहारे जो अधेड़ और बुजुर्ग थोड़ा-बहुत चल फिर पाते हैं, वो जरा सी चूक होने पर गिरते हैं, तो हड्‌डी टूट जाती है। फिर जुड़ती भी नहीं। नई पीढ़ी में भी ये बीमारी सामने आ रही हैं। कुल मिलाकर पानी फिल्टर करने के बाद भी यहां हडि्डयों की बीमारी रहस्य बनी हुई है।

एक बार फिर अफसरों ने लिए सैंपल

हाल ही में पीएचई विभाग के अफसर और कर्मचारी एक बार फिर गांव पहुंचे। यहां उन्होंने घरों से, कुएं से और अन्य निजी जलस्त्रोतों से पानी के सैंपल लिए हैं। सैंपलिंग के बाद फिर से गांव के लोगों में उम्मीद जागी है कि अबकी बार पानी की समस्या का पता चल जाएगा और अफसर कुछ न कुछ ठोस निराकरण की व्यवस्था भी करा देंगे।

पीएचई और सेहत महकमे की ओर निगाहें

भिंड के डीएचओ डॉ. आलोक शर्मा ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग पीएचई के अफसरों के संपर्क में हैं। फिलहाल, गांव में तात्कालिक राहत के लिए कैल्शियम के टैबलेट बांटे गए हैं। जब तक पानी की जांच की रिपोर्ट नहीं आ जाती, तब तक गांव के लोगों को सलाह दी गई है कि गांव का पानी न पीएं। रायतपुरा यहां से डेढ़ किमी दूर है, जहां ये लोग पहले रहते थे। वहीं से पानी लाकर पीएं। पहले जब ये लोग रायतपुरा रहते थे, तब ये बीमारी इनमें नहीं थी। कुछ लोग तो ऐसे भी हैं, जिनके चार-पांच ऑपरेशन हो चुके हैं, इसलिए उनके लिए पानी लाना संभव न हो तो पीएचई यहां टैंकर से पानी की व्यवस्था करा दे।

पीएचई के कार्यपालन यंत्री आर के राजपूत ने बताया कि गांव में कुल 7 जगह से पानी के सैंपल लिए हैं। जिलास्तर पर पहले जांच की गई थी तब पानी में कैल्शियम की कमी नहीं मिली थी। इस बार भोपाल लैब में सैंपल जांच के लिए भेजे हैं। वहां से रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा कि पानी में किसी एलिमेंट की कमी है या अधिकता है। फिलहाल कुछ नहीं कहा जा सकता। गांव के लोग रायतपुरा से पानी लाने की डिमांड रखेंगे तो प्रशासकीय मंजूरी लेकर इसे पूरा करने का प्रयास करेंगे।

स्वास्थ्य विभाग की टीम ने गांव पहुंचकर लोगों से लंबी बातचीत की। मेडिकल हिस्ट्री समझी और उन्हें फिलहाल पानी को लेकर एहतियात बरतने को कहा। साथ ही कैल्शियम की दवाइयां भी बांटी।
स्वास्थ्य विभाग की टीम ने गांव पहुंचकर लोगों से लंबी बातचीत की। मेडिकल हिस्ट्री समझी और उन्हें फिलहाल पानी को लेकर एहतियात बरतने को कहा। साथ ही कैल्शियम की दवाइयां भी बांटी।

पानी की जांच में कैल्शियम की कमी नहीं मिलने पर आगे क्या…

भोपाल से पानी की जांच में यदि कैल्शियम की कमी की बात सामने नहीं आती है, तो स्वास्थ्य विभाग एक्स-रे और ब्लड सैंपल की जांच कराएगा। फिलहाल डीएचओ डॉ. शर्मा का कहना है कि इस तरह की बीमारी ऑस्टियोपोरोसिस हो सकती है। ये बीमारी आनुवांशिक होती है। जो पीढ़ी दर पीढ़ी जीन के जरिए ट्रांसफर होती जाती है। हालांकि, डॉ. शर्मा की इस थ्योरी में भी पेंच है। क्योंकि ऑस्टियोपोरोसिस की बीमारी ज्यादातर बुजुर्गों को होती है। ये आनुवांशिक तो होती है, लेकिन अपने वंश से अलग के ब्लड रिलेशन में इसकी संभावना न के बराबर होती है, जबकि स्टेशनपुरा में महिलाओं ने भी इस बीमारी की शिकायत की है। जो यहां के पुरुषों के वंश से नहीं आतीं। यहां बच्चे भी बीमार हो रहे हैं।

इस बीमारी को लेकर एक थ्योरी ये बताई जा रही है कि पिछले कुछ साल में इलाके में फर्टिलाइजर का बेतहाशा उपयोग किया गया है। इतना कि अब खेतों से पोषकता खत्म हो रही है। ग्राउंड वाटर में यूरिया की मात्रा बढ़ने से हडि्डयां कमजोर हो सकती हैं। हालांकि फिलहाल इस थ्योरी पर स्वास्थ्य विभाग या पीएचई ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे।

एक अन्य थ्योरी ये है कि पानी में किसी तरह का रेडिएशन हो सकता है। हालांकि, भोपाल से आने वाली रिपोर्ट में ऐसा होने पर पता चल जाएगा। हालांकि किसी तरह के रेडिएशन की संभावना बेहद कम है, लेकिन पानी की जांच के दौरान इसकी जांच भी सामान्य तौर पर की ही जाती है।