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यूक्रेन डैम तबाह होने से खतरे में 42 हजार लोग:क्या है डैम वॉरफेयर, जिसमें चीन के एक लाख लोग मरे; भारत को भी खतरा

6 जून को यूक्रेन के सबसे बड़े डैम में से एक नोवा काखोवका पर हमला हुआ। इससे अब 42 हजार लोगों की जिंदगी बाढ़ की वजह से खतरे में पड़ गई है। आनन-फानन में यूक्रेन और रूस की सेनाएं अपने-अपने कब्जे वाले हिस्से में रेस्क्यू ऑपरेशन चला रही हैं। दोनों देशों ने एक-दूसरे पर इस बांध को तोड़ने के आरोप लगाए हैं।

जंग के दौरान डैम यानी बांध पर किए जाने वाले हमलों को डैम वॉरफेयर कहा जाता है। 85 साल पहले चीन-जापान की जंग के दौरान डैम वॉरफेयर के चलते 1 लाख से ज्यादा चीनी नागरिक मारे गए थे।

आज की स्टोरी में जानेंगे ये डैम वॉरफेयर क्या होता है, इसकी शुरुआत कब हुई और क्या भारत को भी इससे खतरा है…

सबसे पहले ये तस्वीर देखें…

नोवा काखोवका बांध टूटने के बाद खरसोन शहर के हालात ये तस्वीर बयां कर रही है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा है कि बांध के आस-पास के इलाकों में हजारों लोगों के पास पीने तक के लिए पानी नहीं है। 30 गांव और कस्बे बाढ़ की चपेट में हैं।

लोग अपने सामान को प्लास्टिक के थैलों में भरकर ले जा रहे हैं। 10 हजार हेक्टेयर में फैली खेती पूरी तरह से पानी में समा चुकी है। बाढ़ की वजह से 2 हजार घर डूब चुके हैं।

बांध टूटने से जंग पर क्या असर पड़ेगा…

यूक्रेन काफी समय से रूस पर बड़े हमले की तैयारी कर रहा था। अमेरिका और पश्चिमी देशों के अधिकारियों का मानना है कि इसके तहत पिछले हफ्ते से यूक्रेन ने पश्चिमी डोनेटस्क और खरसोन इलाके में हमलों को तेज कर दिया था। कई जगहों पर रूसी सेना को पीछे हटना पड़ा था।

बांध के टूटने से खरसोन की सड़कें, ब्रिज बाढ़ में समा चुकी हैं। ऐसे में यूक्रेनी सैनिकों को रूस पर हमला करने के लिए आगे बढ़ने में परेशानी होगी। जेलेंस्की के सीनियर एडवाइजर ने खुद इस बात को स्वीकारा है।

इसके अलावा बांध के टूटने से यूक्रेनी सैनिकों की सप्लाई चेन भी बाधित होगी। वहीं, रूस को अपने सैनिक मोबिलाइज करने का समय मिल जाएगा।

1400 साल पहले शुरू हुआ डैम वॉरफेयर
1400 साल पहले पर्शिया (आज का ईरान) के राजा साइरस ने यूफ्रेटस नदी की धार को बदलकर अपने सैनिकों को लिए रास्ता बनाया। ऐसा कर उसने एक रात में बेबिलोन को जीत लिया था। तब से दुनिया में डैम वॉरफेयर की शुरुआत मानी जाती है।

जंग के मैदान में दुश्मन सेना को रोकने या उसे पीछे धकेलने के लिए बड़े बांधों, नदियों या नहरों के पानी को भारी मात्रा में छोड़ा जाता है। इसे वाटर या डैम वॉरफेयर कहा जाता है।

इसके बाद मंगोलों ने 1200 ईसवी में मध्य एशिया के गुरजांग शहर को एक डैम तोड़कर तबाह कर दिया। इसमें 10 लाख लोगों की मौत हो गई थी। बांध तोड़कर जंग में जीत हासिल करने का सिलसिला तब से जारी है। 1500 ईसवी से 2000 के बीच नीदरलैंड और साउथ वेस्ट यूरोप में ज्यादातर बाढ़ जंग के समय ही आई थी। ये डैम वॉरफेयर का ही नतीजा था।

गुरजांग में बांध तोड़कर चढ़ाई करती मंगोल सेना
गुरजांग में बांध तोड़कर चढ़ाई करती मंगोल सेना

जापान को हराने चीन ने अपने ही एक लाख लोगों को डुबो कर मारा
साल 1937 की बात है। जापान की सेना लगातार ताकतवर हो रही थी। सीमा को लेकर चीन से विवाद गहराता जा रहा था। जब मामला बढ़ा तो जापान ने चीन पर हमला कर दिया। इस जंग को सेकेंड सिनो-जापानीज वॉर कहा जाता है। जापान की सेना चीन के बड़े हिस्से को जीतते हुए चीन की दूसरी सबसे लंबी यलो नदी के करीब पहुंच गई। अब चीन को डर था कि जापान की सेना शंघाई शहर तक न पहुंच जाए।

‘द मीडियम’ के मुताबिक चीन हर हाल में जापानी सेना को इस शहर में प्रवेश करने से रोकना चाहता था। इसकी बड़ी वजह यह थी कि सोवियत रूस की तरफ से चीन को दी जाने वाली सैन्य मदद लोंघाई रेलवे स्टेशन पर पहुंचती थी। जो यलो रिवर की दूसरी तरफ था। चीन नहीं चाहता था कि इस रेलवे स्टेशन पर जापानियों का कब्जा हो जाए।

ऐसे में जापान की सेना को आगे बढ़ने से रोकने के लिए चीन ने यलो नदी पर बने अपने सबसे बड़े डैम को तोड़ने का फैसला किया। ये सलाह 1935 में चीनी राजा च्यांग काई शेक को उनके जर्मन सलाहकार अलेक्जेंडर वॉन फॉल्केनहाउसेन ने दी थी। तब तक चीन को जर्मनी का भी साथ मिल रहा था।

इसी सलाह के आधार पर जून 1938 में चीनी सेना ने अपने ही डैम पर हमला कर उसे तोड़ दिया। इसकी वजह से जापान की सेना को पीछे लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि डैम टूटने की वजह से आई बाढ़ में कम से कम 1 लाख लोगों की मौत हुई। वहीं, डैम टूटने के बाद के सालों में प्लेग और सूखे की समस्या से चीन में कम से कम 5 लाख लोगों की मौत हुई थी।

तस्वीर 1938 की है, चीनी सैनिक बांध तोड़ने से आई बाढ़ के बीच जापानी सैनिकों को आगे बढ़ने से रोक रहे हैं।
तस्वीर 1938 की है, चीनी सैनिक बांध तोड़ने से आई बाढ़ के बीच जापानी सैनिकों को आगे बढ़ने से रोक रहे हैं।

ब्रिटेन की रॉयल एयरफोर्स ने तोड़े थे जर्मनी के बांध

सेकेंड वर्ल्ड वॉर खत्म होने से करीब दो साल पहले 1943 में जर्मनी की यू- बोट पनडुब्बियां एक के बाद एक ब्रिटिश नौसेना के जहाजों को डुबो रही थीं। हालात ये थे कि जर्मनी के हमलों में 175 युद्धपोत और 3500 मर्चेंट वैसल तबाह हो चुके थे और 72 हजार से ज्यादा सैनिक मारे गए थे।

इसका बदला लेने के लिए ब्रिटेन की वायुसेना के 617 स्क्वॉड्रन ने योजना बनाई। एक के बाद एक जर्मनी की रूर घाटी में तीन बांधों पर स्ट्राइक की गई। इस प्लान को ऑपरेशन चैस्टिसाइज यानी ऑपरेशन दंड नाम दिया गया था। इसमें जर्मनी के हजारों लोगों की मौत हुई। हालांकि जल्द ही बांध को फिर से बनाने का काम पूरा कर लिया गया था।

तस्वीर 1943 की है... जर्मनी की रूर घाटी में ब्रिटेन के हवाई हमले में तोड़े गए बांध को देखा जा सकता है।
तस्वीर 1943 की है… जर्मनी की रूर घाटी में ब्रिटेन के हवाई हमले में तोड़े गए बांध को देखा जा सकता है।

क्या भारत को भी डैम वॉरफेयर का खतरा है…
चीन ने 2016 में ब्रह्मपुत्र नदी पर हाइड्रोइलेक्ट्रिक बांध बनाने की घोषणा की थी। 2017 में असम में खतरनाक बाढ़ आई। इसके बाद चीन से नदियों के पानी के बहाव से जुड़ा डेटा मांगा गया। चीन ने इसे देने से इनकार कर दिया। ग्लोबल रिस्क इनसाइट के मुताबिक डेटा न देकर चीन पानी का इस्तेमाल जियोपॉलिटिकल वेपन की तरह कर रहा है।

इससे चीन से सटे भारतीय राज्यों को खतरा है। अमेरिकी इंटेलिजेंस की रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले 30 सालों में क्लाइमेट चेंज की वजह से होने वाले पानी के विवाद कई देशों की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बनेंगे।