प्रकाश त्रिवेदी की कलम से

*जहाँ सोच वहाँ शौचालय ….*

सरकार के इस नारे ने कही असर दिखया हो या नहीं उज्जैन सिंहस्थ में इस नारे का असर दिख रहा है। साधू संत सम्प्रदाय भले ही शौचालय के लिए परेशान हो रहे हो परन्तु जहाँ सोच(प्रबंधन) है यानी ऊँची पहुँच है प्रभारी मंत्री से भौगोलिक निकटता है या कलेक्टर साब से याराना है या अपने कभी न कभी भाजपा या संघ के खिलाफ काम किया है तो तत्काल आपके केम्प में शौचलय बन जायेगे । विहिप से जुड़े संत जाए भाड़ में। आपने किया ही क्या है जन्मभूमि आंदोलन में भाग लेकर कोई एहसान नहीं किया। आपके चेलो में कोई फ़िल्म स्टार नहीं है कोई IAS IPS नहीं है कोई नेता नहीं या कोई प्रभावशाली मीडियाकर्मी या उद्योगपति नहीं तो आपके केंप में सुविधाए क्यों दी जाय।
सिंहस्थ में सिर्फ उन्हें ही तब्बजो मिल रही है जो मुलायम सिंह के खास है या जिन्होंने राजधानी में विरोधी दल के नेता को CM बनाने के लिए कथा अनुष्ठान किए है या जो विहिप का घोर विरोधी है।
गो रक्षा करने बाले हो या वात्सल्य धाम चलाने बाले सब के सब प्राथमिकता से बाहर है।
तभी तो कहा गया है जहां सोच(प्रबंधन)है वहाँ शौचालय है।