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8 साल रिसर्च का रिजल्ट:अमेरिका, जापान के सोयाबीन की इंदौर में होगी पैदावार, सब्जी की तरह उपयोग कर सकेंगे

अमेरिका, जापान और ताइवान जैसे देशों में पैदा होने वाली वेजिटेबल सोयाबीन का उत्पादन मप्र, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में किया जा सकेगा। 8 साल की लंबी रिसर्च के बाद इंदौर के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई सोयाबीन की इस किस्म को भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) से भी उत्पादन की हरी झंडी मिल गई है।

केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन के बाद किसान भी इसका उत्पादन कर सकेगा। देश की यह पहली सोयाबीन है, जिसका इस्तेमाल सब्जियों की तरह किया जा सकेगा। आईसीएआर के वैज्ञानिक डॉ. अनिता रानी और डॉ. विनीत कुमार आठ साल से इस किस्म को लेकर रिसर्च कर रहे थे। चार साल किस्म तैयार होने के बाद केंद्र सरकार की टेस्टिंग एजेंसियों ने तीन अलग-अलग जांच के बाद इस किस्म को हरी झंडी दी है।

मप्र के अलावा राजस्थान, गुजरात में हो सकेगी पैदावार
मप्र के अलावा राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में इसकी पैदावार की जा सकेगी। इसमें सोयाबीन के अन्य हेल्दी सप्लीमेंट भी मिलेंगे। इसी तरह की सोयाबीन वेजिटेबल की एक वैरायटी करुनई है, जो बेंगलुरू में पैदा होती है।

हरी फली को गरम पानी में उबालकर होगा उपयोग
प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अनिता रानी ने बताया, सोयाबीन की फसल करीब 90 दिन में तैयार होती है। इस किस्म की फसल में लगने वाली हरी फलियां 65 से 70 दिन में तोड़ी जाएंगी। गर्म पानी में दो से तीन मिनट भिगोने के बाद दानों को सब्जी बनाकर इस्तेमाल किया जा सकेगा। विदेशों में तो इसे उबालकर सीधे दाने खाए जाते हैं। बटलों की तुलना में इसमें तीन गुना अधिक प्रोटीन होता है। यह सेहत के लिहाज से काफी उपयोगी होता है।

चार साल तक निरंतर चली जांच, नहीं मिली कोई बीमारी
डॉ. अनिता ने बताया कि पिछले चार साल से इसकी ऑल इंडिया लेवल पर जांच चल रही थी। इस किस्म की फसल में कोई बीमारी तो नहीं हो रही है, उत्पादन कैसा रहेगा जैसे तमाम बिंदुओं पर देश की अलग-अलग टेस्टिंग एजेंसियों ने जांच की। हाल ही में भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर में इसके बीज बोए गए हैं। तीन महीने में बीज तैयार हो जाएंगे। नोटिफिकेशन जारी होते ही किसानों को दिए जाएंगे।