इंदौरमध्य प्रदेश

44 हफ्तों तक इंदौर में तपते हैं BSF के जवान:यहां से सीधे पाकिस्तान-बांग्लादेश बॉर्डर पर मिलती है तैनाती, जानिए खूबियां

बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) भारत के सबसे महत्वपूर्ण अर्द्धसैनिक बल में शुमार है। देखा जाए तो यह देश का प्रथम पंक्ति का सुरक्षा संगठन है। गुजरात से लेकर जम्मू-कश्मीर में पड़ने वाली लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LOC) को तक लगने वाली पाकिस्तान बॉर्डर और बांग्लादेश से लगने वाली पूरी बॉर्डर की सुरक्षा और निगरानी का जिम्मा बीएसएफ के पास ही है।

चीन से लगने वाली सीमा पर जहां इंडो-तिब्बत बॉर्डर फोर्स तैनात है, वहीं कच्छ का रण हो या पश्चिम बंगाल में पड़ने वाला सुंदरबन डेल्टा हर जगह बीएसएफ के जवान इंटरनेशनल बॉर्डर पर घुसपैठ से लेकर तस्करी रोकने तक अहम भूमिका निभाते हैं।

बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स का गठन करने में एमपी और इंदौर का महत्वपूर्ण योगदान है। सीमा सुरक्षा के लिए जब ‌BSF का गठन किया गया तब एमपी केडर के आईपीएस अफसर स्व. के.एफ रुस्तम थे। इन्हें ही स्पेशल फोर्स का गठन करने के लिए जिम्मेदारी दी गई थी।

बॉर्डर की सुरक्षा और निगरानी के साथ 44 हफ्ते में शारीरिक फिटनेस, फायरिंग और विभिन्न हथियारों को संभालने की भी ट्रेनिंग दी जाती है।
बॉर्डर की सुरक्षा और निगरानी के साथ 44 हफ्ते में शारीरिक फिटनेस, फायरिंग और विभिन्न हथियारों को संभालने की भी ट्रेनिंग दी जाती है।

जवानों की ट्रेनिंग के लिए ट्रेनिंग सेंटर की आवश्यकता थी तो एमपी पुलिस के डीजीपी होने के कारण के.एफ रुस्तम ने ग्वालियर और इंदौर को चुना। इंदौर में ये जो वर्तमान में ट्रेनिंग सेंटर है वह होलकर राजवंश की सैन्य छावनी थी। टेकनपुर में जो ट्रेनिंग सेंटर है वह सिंधिया राजघराने की सैन्य छावनी थी। दोनों जगह को सेना के आधीन कर सेंटर बना दिए गए। यहां होलकर राजवंश का एक म्यूजियम है।

‌BSF के जवानों की सबसे कठिन ट्रेनिंग।
‌BSF के जवानों की सबसे कठिन ट्रेनिंग।

दैनिक भास्कर ने इंदौर स्थित सीमा सुरक्षा बल के ट्रेनिंग सेंटर सेंट्रल स्कूल ऑफ वेपन एंड टैक्टिक्स (CSWT) के इंस्ट्रक्टर्स और जवानों से चर्चा की…

इंदौर बीएसएफ ट्रेनिंग सेंटर पर जवानों को गन चलाने की ऐसे दी जाती है ट्रेंनिंग की वह आंख बंद करके भी दुश्मन से लड़ाई लड़ सकते हैं।
इंदौर बीएसएफ ट्रेनिंग सेंटर पर जवानों को गन चलाने की ऐसे दी जाती है ट्रेंनिंग की वह आंख बंद करके भी दुश्मन से लड़ाई लड़ सकते हैं।

44 हफ्ते की होती है ट्रेनिंग

टूआईसी सौरभ बताते हैं कि इंदौर का यह प्रशिक्षण केंद्र लगभग 122 एकड़ क्षेत्रफल में है। यहां देशभर के रंगरूट्स को बुनियादी प्रशिक्षण दिया जाता है। बीएसएफ के अलावा यूपी पुलिस के नव आरक्षक, राजस्थान और मध्य प्रदेश पुलिस के एसएफ के आरक्षक भी इसी सेंटर से बुनियादी प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। यहां 44 सप्ताह के प्रशिक्षण वर्ग में जवानों को कठिन परिश्रम के दौर से गुजरना पड़ता है। इसके बाद इनकी तैनाती पाकिस्तान और बांग्लादेश बॉर्डर पर सीमा प्रहरी के रूप में की जाती है।

सीमा पर निगरानी के लिए ड्रोन का उपयोग भी जवानों को सिखाया जाता है।
सीमा पर निगरानी के लिए ड्रोन का उपयोग भी जवानों को सिखाया जाता है।

सरहद की सुरक्षा सबसे बड़ी ड्यूटी

यहां ट्रेनिंग ले रहे राहुल कुमार पांच बहनों के बीच माता-पिता के इकलौते बेटे हैं। मिडिल क्लास फैमिली से आने वाले राहुल बताते हैं कि जब फोर्स में सिलेक्शन हुआ तब माता-पिता को पता नहीं था। जब ट्रेनिंग के लिए घर से निकला तो मां की आंखों में आंसू आ गए। मां बोली थी, घर जल्दी आना। लेकिन उसे कहां पता कि एक सैनिक के लिए सरहद की सुरक्षा सबसे बड़ी ड्यूटी है।

जोश और जुनून के साथ ट्रेनिंग में जुटे जवान।
जोश और जुनून के साथ ट्रेनिंग में जुटे जवान।

जुनून और जज्बे ने पूरा किया वर्दी पहनने का सपना

अमित कुमार सिंह बिहार के रहने वाले हैं। इंदौर बीएसएफ सेंटर में अभी इनकी ट्रेनिंग चल रही है। इनके पिताजी किसान हैं। अमित बताते हैं कि जब हम सेना के जवानों को देखते थे तो मन में यही आता कि ऐसी वर्दी हमें कब मिलेगी। एक फौजी के जुनून और जज्बे को देखकर हमने भी दिन-रात मेहनत की और अब देश की सेवा करने का मौका मिला है।

अमित की तरह विकास कुमार भी मिडिल क्लास फैमिली से आते हैं। वह बताते हैं कि पिताजी सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं। 10वीं में थे तभी से फोर्स में आने का जुनून चढ़ा। तैयारी करने लगे लेकिन कोरोना के कारण पीछे रह गए। अब यह इंदौर बीएसएफ ट्रेनिंग सेंटर में ट्रेनिंग ले रहे हैं।

बॉर्डर पर तैनाती गर्व और सम्मान की बात

इंस्ट्रक्टर यादवेंद्र तिवारी की पत्नी मिनाक्षी तिवारी बताती हैं कि पहले पति की तैनाती बॉर्डर पर थी। ये हमारे लिए बड़े गर्व और सम्मान की बात है। घर को मैनेज करने की ड्यूटी जब हम पूरी करते हैं तभी एक फौजी बॉर्डर पर ड्यूटी कर पाता है। जब कभी युद्ध होने की खबरें मिलती है तब हमारे मन में यही रहता है कि हम होंगे कामयाब। यही लगता है कि सब कुछ ठीक और अच्छा होगा दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा।

इंदौर स्थित ट्रेनिंग सेंटर में जवानों को मीडियम रेंज का हर तरह का हथियार चलाना सिखाते हैं।
इंदौर स्थित ट्रेनिंग सेंटर में जवानों को मीडियम रेंज का हर तरह का हथियार चलाना सिखाते हैं।

जिनेवा कनवैंशन के कारण हुई थी बीएसएफ की स्थापना

बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (सीमा सुरक्षा बल) की स्थापना 1 दिसंबर 1965 में हुई थी। जिनेवा कनवैंशन के दौरान यह फैसला लिया गया था कि अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर सेनाएं नहीं रहेंगी। क्योंकि सेना में दिए जाने वाले मेडल वीरता के आधार पर दिए जाते हैं। इसलिए दोनों देश की लड़ाकू सेना वीरता का प्रदर्शन करके ज्यादा से ज्यादा मेडल हासिल करने की कोशिश में रहती है।

अंतरराष्ट्रीय सीमा पर तैनात दोनों सेना लड़ने के लिए आतुर रहती हैं। इससे जान माल की हानि होती है। सुरक्षा के लिहाज से ‌BSF का गठन किया गया। इसका काम लड़ना नहीं सिर्फ बॉर्डर को सुरक्षा करने के साथ ही घुसपैठ और तस्करी रोकना है। जब तक बीएसएफ का गठन नहीं हुआ था तब तक सीमावर्ती राज्यों की सुरक्षा SF के हाथ में थी।

उस दौरान अगर दुश्मन आतंक फैलाते तो एक राज्य दूसरे राज्य के ऊपर दोषारोपण करते थे। 1965 में पाकिस्तान बॉर्डर पर पैरा मिलिट्री फोर्स की तैनाती का फैसला लिया गया।​​​​​