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“कार्यकर्ता है तो सत्ता है” इस मूलमंत्र को समझ नही पा रहे है भाजपा के रणनीतिकार

-प्रकाश त्रिवेदी

विधानसभा चुनावों का शंखनाद हो चुका है,भाजपा मध्यप्रदेश सहित राजस्थान-छत्तीसगढ़ भी जीतना चाहती है,इस तीनों प्रदेशों में भाजपा का मजबूत और व्यापक संगठन है,दमदार नेता है,केंद्र सरकार की उपलब्धियों का सहारा है,नरेंद्र मोदी का लोकप्रिय नेतृत्व है,अमित शाह जैसा रणनीतिकार है,संसाधन है,कार्यकर्ताओं की फौज है। फिर भी जीत में इतना संशय क्यों है,क्यों भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व अपने राज्य स्तरीय क्षत्रपों पर भरोसा नही कर पा रहा है।

मध्यप्रदेश-राजस्थान-छत्तीसगढ़ में स्थानीय नेतृत्व के अलावा तीन तीन केंद्रीय मंत्री,संगठन के नेता और अन्य प्रान्तों खासकर गुजरात और उत्तरप्रदेश के मंत्री-सांसद-विधायको, संगठन महामंत्रीयों की ड्यूटी लगाई गई है। प्रवासी नेताओं की टीम काम कर ही है फिर भी पार्टी का आत्मविश्वास दरका हुआ है,कोई भी आंख में आंख डालकर नही कह पा रहा है कि हम तीनों राज्यों में जीत कर आ रहे है- यहाँ सार्वजनिक और राजनीतिक बयानबाजी जरूर जीत के दावे कर रही है।

आखिर क्या कारण है कि 18 साल सत्ता में रहने के बाद भी मध्यप्रदेश में जीत की गारंटी नही है। जबकि मोदी जी हर सभाओं में गरीब कल्याण और देश के तीसरी आर्थिक शक्ति बनने की गारंटी दे रहे है।

जमीनी हक़ीक़त जानने और गहराई से चिंतन करने पर पता चलता है कि तीनों राज्यों में भाजपा कार्यकर्ता को भूल गई है,समर्पित कार्यकर्ताओं की उदासीनता को नजरअंदाज किया जा रहा है। कार्यकर्ता की परेशानी पर ध्यान नही दिया गया है,उंसके मन की बात नही सुनी गई है। उसे सत्ता का प्रसाद नही मिला है,उंसके काम नही हुए है,वो अपने परिजनों-संपर्क के लोगो के काम नही करा पाया है। उंसके योगक्षेम की चिंता विस्मृत कर दी गई है।

भाजपा के आम कार्यकर्ता की जगह सांसदों-विधायकों-नेतृत्वप्रिय नेताओं के पट्ठे आ गए है,वे बूथ,मंडल और नगर,महानगर की संगठन व्यवस्था का हिस्सा बन गए है,उनको वैचारिक दीक्षा नही मिली है उनका कमिटमेंट पार्टी से नही उनको बनाने वाले से है। इस स्थिति के कारण ही 2018 में भाजपा को नजदीकी हार का सामना करना पड़ा था।

कार्यकर्ता भाजपा की आधारशिला है,प्राणतत्व है इसीलिए उसे देवदुर्लभ कहा जाता है। सत्त्ता में आने के बाद इसी देवदुर्लभ कार्यकर्ता की अपेक्षा की अनदेखी होना शुरू हुई और स्थानापन्न व्यक्तियों से संगठनात्मक खानापूर्ति का चलन शुरू हुआ। संघ विचारक संगठन शास्त्र के प्रणेता दत्तोपंत जी ठेंगड़ी ने लिखा है किसी भी संगठन का पतन सुविधाभोगी काडर (Comfort Loving Cadre) और प्रतिष्ठाग्रस्त नेताओं (Status Conscious Leaders) कारण होता है। भाजपा के प्रादेशिक नेतृत्व ने ध्येय प्राप्ति और कर्तव्य के अहंकार को धारण कर कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की है। इसी का परिणाम है कि करोड़ो सदस्य,लाखों कार्यकर्ता,हजारों नेता,असीमित साधन,बूथ तक संगठन होने के बाद भी पूर्ण विजय का भाव नदारत है।

एक समय था जब कार्यकर्ता को ही सुना जाता था,अब कार्यकर्ता को केवल कार्यक्रम और बड़े आयोजनों में ही लगाय रखा जाता है। परमपूज्य गुरुजी ने एक बार कहा था कि बड़े कार्यक्रम या ज्यादा कार्यक्रम के बाद कार्यकर्ता सुस्त हो जाता है,कार्यक्रम काहैंगओवर उसे केवल केम्पेन माइंड बना देता है। भाजपा इसी बीमारी का शिकार हो गई है। हाईटेक भाजपा हर मतदाता के मोबाईल में तो पहुँच गई पर कार्यकर्ताओं के मन तक नही पहुँच पा रही है। दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक कार्यकर्ता में लिखा है कि कार्यकर्ताओं के मन की व्यथा सुनी जानी चाहिए,वह भी समाधान चित्त से,धीरज से उसे यह लगना चाहिए कि उसकी व्यथा सुनने वाला कोई है। इसे सहानभूति से नही समानुभूति से सुनना चाहिए।

भाजपा के रणनीतिकारों को अपनी वैचारिक प्रज्ञा के प्रवर्तक डॉक्टर हेडगेवार,गुरु गोलवलकर, दत्तोपंत ठेंगड़ी,से सीख लेकर अपने देवदुर्लभ कार्यकर्ताओं तक जाना चाहिए उनके मन की बात,व्यथा सुनना चाहिए,उसका समाधान करना चाहिए। उंसके मन मे यह विश्वास पैदा करना चाहिए कि सत्ता साकेत में उसको भी प्रसाद मिलेगा,उसका भी स्थान होगा वह भी ध्येय पथ का अनुगामी माना जायेगा।

केवल मोबाईल एप बनाने से,सॉफ्टवेयर डेवलप करने से,तकनीकी संबद्घता कायम करने से संगठन नही चलता है। संगठन कार्यकर्ता भाव, कमिटमेंट और अहंकार रहित समर्पण से चलता भी है और सफल भी होता है। भाजपा हमेशा से सुधारवादी पार्टी रही है उम्मीद करना चाहिए अपने कार्यकर्ताओं के मन की बात सुनेगी,मोदी जी की तो सुनती ही हैं। कार्यकर्ता है तो सत्ता है का मूलमंत्र जितनी जल्दी लागू होगा भाजपा की लोकतांत्रिक अजेयता निश्चित होती जाएगी।

(लेखक पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक, जनसंपर्क सलाहकार है)