पांच राज्यों के चुनाव का अंतिम चरण 30 नवंबर को तेलंगाना में मतदान के साथ समाप्त हो जाएगा और मतदान समाप्ति के साथ शाम से ही तमाम टीवी चैनलों पर एक्जिट पोल शुरू हो जाएंगे। किस राज्य में किस पार्टी की बन रही है सरकार और किस राज्य में हो रहा है सत्ता का परिवर्तन? इसे लेकर चुनाव में मतदान से जुड़े सभी मुद्दों, योजनाओं, घोषणाओं, संकल्पों और नीतियों आदि के साथ पिछली सरकारों की उपलब्धियों, कार्यप्रणाली और पार्टी से जुड़े जनप्रतिनिधियों के आचरण-व्यवहार व बयानबाजी जैसे सभी विषयों के आसपास इन सभी चैनलों का एक्जिट पोल रहेगा। नतीजों को लेकर जगह-जगह चल रहा सट्टा किसे दिलाएगा जीत, किसे शिकस्त दिलाएगा या होगा बेअसर साबित? इन सभी बातों का अनुमान 30 नवंबर की शाम के इन एक्जिट पोल से लगने लगेगा और 3 दिसंबर की रात तक तस्वीर पूरी तरह साफ हो जाएगी लेकिन इस बीच अटकलों और अनुमानों का दौर बाकायदा चलता रहेगा। आइए हम भी नतीजों को लेकर बनती-बिगड़ती दिखाई दे रही संभावनाओं को समझने की कोशिश करते हैं और जानने की भी कि इन पांच राज्यों के नतीजे किस दिशा में जा रहे हैं? इन चुनावों को लोकसभा चुनाव के सेमीफाइनल के रूप में देखा जा रहा है तो इनका महत्व स्वतः बढ़ जाता है और हमारे मूल्यांकन करने की वजह भी!
चार राज्यों में चुनाव के बाद विभिन्न स्तरों पर जुटाई अपनी जानकारी और सट्टा बाजार का रुख देखने के साथ ज्योतिषीय मान से ग्रह-नक्षत्रों की चाल के थोड़े अध्ययन के बाद मिले जुले विश्लेषण से जो संभावना बन रही है उसके अनुसार मिजोरम में क्षेत्रीय दल मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार बनती दिख रही है। राजस्थान में सत्ता परिवर्तन होता नजर आ रहा है। छत्तीसगढ़ में पहले चरण के मतदान से लग रहा था कि भूपेश बघेल पुनः सत्ता में लौटेंगे लेकिन दूसरे चरण के मतदान और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के बाद अब मुकाबला कांटे का होता दिख रहा है। हालंकि अब भी कांग्रेस कुछ आगे बढ़ती दिख रही है। लेकिन कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। यह भी हो सकता है कि त्रिशंकु स्थिति पैदा हो जाए। वहां का मतदान वृहद अध्ययन का विषय है। तेलंगाना में हालांकि मतदान नही हुआ है लेकिन प्रचार समाप्ति के बाद सी. चंद्रशेखर राव का पलड़ा भारी होता नजर आ रहा है।
अब आते हैं मध्यप्रदेश के चुनाव पर तो यहां भाजपा की घोषणाएं और कांग्रेस के संकल्प के लगभग सभी मुद्दे समान दिखाई देते हैं, केवल कांग्रेस के पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने के संकल्प को छोड़कर। धर्म, हिंदुत्व, अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और राम मंदिर के मुद्दे भी चुनाव प्रचार में हावी रहे हैं। सभी बातों को ध्यान में रखते हुए जो दृश्य बनता हुआ दिख रहा है उसके अनुसार मध्यप्रदेश में भाजपा की सत्ता वापसी होती दिख रही है। पिछले चुनाव की अपेक्षा मतदान प्रतिशत की वृद्धि देखकर सत्ता परिवर्तन की बात कर रहे तमाम विश्लेषकों को मध्यप्रदेश राज्य के गठन, 1 नवंबर 1956 के बाद के सभी चुनावों के मतदान प्रतिशत का “ट्रेंड” समझना होगा। आलेख के अधिक बढ़े होने से बचने के लिए ज्यादा गहराई में न जाते हुए सिर्फ यह बात स्पष्ट करना चाहूंगा कि मध्यप्रदेश में चुनाव-दर-चुनाव मतदान का प्रतिशत लगातार बढ़ता ही रहा है। लेकिन सत्ता का परिवर्तन तभी हुआ है जब मतदान प्रतिशत की यह वृद्धि न्यूनतम 3 प्रतिशत से अधिक रही है। 3 प्रतिशत से कम की वृद्धि को सत्ता परिवर्तन की लहर नहीं कहा जा सकता। इस चुनाव में भी मतदान की यह प्रतिशत वृद्धि औसत 2 के आसपास ही रही है।
इस चुनाव के मतदान में महिलाओं ने जमकर भागीदारी की है। बड़ी संख्या में ऐसी सीटें दिख रही हैं जहां महिलाओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया है। 37 से अधिक सीटें ऐसी हैं जहां महिलाओं का मतदान पुरुषों से बहुत अधिक है। अल्पसंख्यक प्रभावित कई सीटों पर मुस्लिम महिलाएं भी बड़ी संख्या में मतदान केंद्रों पर कतार में नजर आई हैं। महिलाओं का यह मतदान किधर गया है, इस संबंध में विश्लेषण करें तो भाजपा सरकार की लाड़ली बहना योजना और कांग्रेस के संकल्प पत्र की नारी सम्मान योजना पर नजरें टिकती हैं। दोनों ही योजनाएं समान रूप से महिलाओं को लाभान्वित करने वाली हैं लेकिन इस संबंध में मेरी एक ग्रामीण पृष्ठभूमि की महिला से हुई बात का उल्लेख करना आवश्यक समझता हूं। महिला से मतदान को लेकर हुई बातचीत में उन्होंने कहा, “भईया! म्हारा घर में चार बइरा है.. मामा हमारे चार हजार रुपया दई रियो है.. हमारो चाय-पानी ने कपड़ा-लत्ता को खरचो निकले। हम तो उकेज वोट दांगा!” मैंने कहा, कांग्रेस ने भी तो 15 सौ रुपए देने की घोषणा की है। इस पर महिला का जवाब था, कांग्रेस जीतेगा तब देगा, ने नी देगा तो कई कर लांगा?.… मामा तो अभी दई रियो है… इना मईनाज हमारे पांच हजार आया! यो कई लेवा ने छोड़ा!”
आगे और भी बातें हुई लेकिन इतनी बातचीत का उल्लेख करना इसलिए जरूरी हुआ कि इस बात से हवा का रुख मालूम पड़ता है कि शिवराज सरकार की लाडली बहना योजना इस चुनाव में अत्यधिक प्रभावी और कारगर रही है और महिलाओं में शिवराजसिंह की लोकप्रियता बरकरार है। इसका लाभ भाजपा को मिलना स्वाभाविक है। कांग्रेस का बिजली बिल का मुद्दा, गैस सिलैंडर भाव का मुद्दा, महंगाई का मुद्दा, बेरोजगारी का मुद्दा अत्यधिक प्रभावी नहीं दिखाई दिए। इसके विपरित राम मंदिर निर्माण, हिंदुत्व, अल्पसंख्यक तुष्टिकरण और विकास के भाजपा के मुद्दे ज्यादा चर्चा में रहे। केंद्र सरकार की आवास योजना, अगले पांच साल तक गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले लोगों को मुफ्त राशन देने की प्रधानमंत्री की घोषणा, किसान सम्मान निधि योजना के साथ लाड़ली लक्ष्मी व शिक्षा के क्षेत्र में प्रतिभा प्रोत्साहन योजना के लाभान्वित मतदाताओं का झुकाव भी भाजपा की ओर ही अधिक दिखा है। इन सभी लाभान्वितों में अल्पसंख्यक एवं इस वर्ग की महिलाएं भी शामिल हैं।
आदिवासी बहुल क्षेत्रों में भी जमकर मतदान हुआ है जो भाजपा की ही विजय की ओर संकेत करता है। ऐसा इसलिए कि पिछले कई चुनावों का ट्रेंड देखें तो आदिवासियों का अधिक मतदान सत्ता के समर्थन में ही जाता हुआ नजर आया है। कर्मचारी, पेंशनर और बेरोजगार युवाओं का कुछ असंतोष सरकार के प्रति दिखा है लेकिन कर्मचारी व पेंशनरों के मतदान प्रतिशत के आंकड़े महिलाओं और आदिवासियों के मतदान प्रतिशत के आंकड़े से अत्यधिक कम नजर आते हैं। स्वाभाविक है यहां भाजपा को अधिक नुकसान नहीं हो रहा है। रही बात युवाओं व बेरोजगारों की तो उन युवाओं की संख्या अधिक है जो पहली बार मतदान कर रहे हैं और शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। स्वाभाविक है रोजगार जैसे मुद्दे अभी उनके सामने गौण हैं। देश और राष्ट्रवाद का मुद्दा उनके लिए महत्वपूर्ण है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश का बढ़ता विकास व मान और उनकी उभरती वैश्विक छबि का असर भी नतीजों पर पड़ता दिखाई दे रहा है।
ज्योतिषीय आकलन में देखें तो स्वयं की राशि कुंभ में स्थित मार्गी शनि अकेला ही भाजपा की सत्ता वापसी कराता दिख रहा है।
वोट प्रतिशत की बात करें तो अब तक भाजपा और कांग्रेस में आधे से एक प्रतिशत का ही अंतर रहा है, 39 से 41 प्रतिशत के बीच। इस बार समूचे आकलन के बाद हम यह कहने की स्थिति में हैं कि भाजपा को 41 से 43 प्रतिशत वोट मिलने के साथ 118 से 123 सीटों पर विजय प्राप्त हो रही है।
राजनीतिक टोटकों पर यदि आपका विश्वास हो तो एक बात याद रखिए, बड़नगर में जिस पार्टी का उम्मीदवार विजयी होगा उसी पार्टी को प्रदेश में सरकार बनेगी। अब तक यही देखने में आया है, आगे राम जाने!
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