उज्जैनदेशमध्य प्रदेशहोम

चलित उठावने मे ‘बाबूजी’ को पुष्पांजलि देने उमड़ा जनसमुदाय, मंत्री-नेता, संतों ने अर्पित किए श्रद्धासुमन

mohan
उज्जैन के अथर्व होटल में गुरुवार को आयोजित मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के पिता स्व. पूनमचंद यादव के उठावना कार्यक्रम में शोक संवेदनाएं व्यक्त करने जनसमुदाय उमड़ा। केंद्र और राज्य सरकार के मंत्रीगण, विभिन्न जनप्रतिनिधियों, गणमान्य नागरिकों और समाजसेवियो के साथ आम नागरिकों ने स्व. पूनमचंद यादव के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि व्यक्त की।
इस दौरान केंद्रीय मंत्री सावित्री ठाकुर, केंद्रीय मंत्री सामाजिक न्याय डॉ. वीरेंद्र कुमार, तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री गौतम टेटवाल, उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार, नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा मंत्री राकेश शुक्ला, महिला एवं बाल विकास मंत्री निर्मला भूरिया, सामाजिक न्याय मंत्री नारायण सिंह कुशवाहा, खाद्य नागरिक आपूर्ति मंत्री गोविंद सिंह राजपूत, जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट, पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया, पूर्व मंत्री ब्रजेंद्र प्रताप सिंह, अजय जामवाल, विधायक अनिल जैन कालूहेड़ा, विधायक सतीश मालवीय, महापौर उज्जैन मुकेश टटवाल सहित अन्य मंत्रीगण जनप्रतिनिधि, संत समाजजन तथा मध्यप्रदेश सरकार के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा मुख्यमंत्री डॉ यादव, नन्दलाल यादव, नारायण यादव, गोविन्द यादव, नगर निगम सभापति कलावती यादव से भेंट कर अपनी शोक संवेदनाएं व्यक्ति की और स्व श्री यादव के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।
100 साल की उम्र में निधन 
दरअसल, सीएम मोहन यादव के पिता पूनमचंद यादव का मंगलवार रात को निधन हो गया था। वे 100 साल थे और पिछले करीब एक सप्ताह से अस्वस्थ थे। उनका उज्जैन के फ्रीगंज स्थित एक निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था। उनकी अस्वस्थता को देखते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनके बेटे डॉक्टर मोहन यादव भी हाल ही में उनसे मिलने अस्पताल पहुंचे थे। सोमवार को बाबा महाकाल की शाही सवारी में शामिल होने आए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके बेटे महाआर्यमन भी अस्पताल पहुंचकर उनकी कुशलक्षेम पूछी थी।

मजदूरी की और दुकान लगाई
बताया जाता है कि कई साल पहले पूनमचंद्र यादव रतलाम से उज्जैन में आकर बस गए और फिर उनके संघर्षों की शुरुआत हुई। शुरुआत के दिनों में उन्होंने शहर की एक बड़ी टेक्सटाइल मिल में नौकरी की, यहां उन्होंने बतौर मजदूर काम की शुरुआत की थी। इसके बाद उन्होंने कुछ दुकानें लगाई और जीवन में संघर्ष करते रहे। इस दौरान वे अपने चारों बच्चों की पढ़ाई पर जोर देते रहे और उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाई। आज उनके तीन बेटों और एक बेटी समाज में अगल पहचान है, वे लोगों की भलाई के लिए काम कर रहे हैं।