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मोदी मंत्रिमंडल में अनिल माधव दवे अरुण जेटली की आपत्ति के बाद भी शामिल हो गए। अनिल दवे के मंत्री बनने के कई मायने है।
मध्य प्रदेश की राजनीति में तेजी से स्थान बनाने वाले दवे हमेशा बड़े दांव ही खेलते रहे है।
उनकी बुद्धिमता और दूरद्रष्टि उन्हें जेटली के विकल्प के रूप में सहज रूप से स्वीकार्य बनाती है। यही बजह है कि जेटली उनके मंत्री बनने को लेकर हमेशा वीटो करते रहे है।
मोदी जी सरकार बनते ही उन्हें मंत्री बनाना चाहते थे लेकिन उस समय जेटली के जलवे ने दवे का नाम कटा दिया।
अब वैचारिक महाकुम्भ के बाद दवे मोदी और भैयाजी जोशी दोनों की साझा पसंद बनकर उभरे है।
मध्यप्रदेश में जेटली शिवराज का विकल्प नहीं बनने देना चाहते है जेटली और शिवराज की राजनीतिक केमेस्ट्री जग जाहिर है।
अब दवे के मंत्री बनने के बाद शिवराज के प्रबल विकल्प की कमी पूरी होती दिख रही है।
जो काम कैलाश विजयवर्गीय जेटली के दांव पेंच के कारन नहीं कर पाय वही काम अनिल माधव दवे ने अकेले वैचारिक कुम्भ के आलोक मे कर दिखाया।
प्रकाश त्रिवेदी @SamacharLine