देशविशेषसाहित्य

धनपतराय कैसे बने प्रेमचंद ? मुंशी कैसे उनके साथ जुड़ा … जानिये आज उनके जन्मदिवस पर

साहित्य  samacharline | 
मूल नाम – धनपत राय श्रीवास्तव
उपनाम: प्रेमचंद
जन्म: ३१ जुलाई, १८८०
ग्राम लमही, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत
मृत्यु: ८ अक्टूबर, १९३६
वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत

अपने शुरूआती साहित्यिक सफर में मुंशी प्रेमचंद ‘नवाब राय ‘ के नाम से लिखा करते थे | कुछ समय बाद …..उर्दू में प्रकाशित होने वाली ज़माना पत्रिका के सम्पादक और उनके अजीज दोस्‍त मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने की सलाह दी। इसके बाद वे प्रेमचन्द के नाम से लिखने लगे।

खास बातउनका अंतिम उपन्यास मंगल सूत्र  उनके पुत्र अमृत राय  ने पूरा किया। 

प्रेमचंद की मूर्ती आज भी लोगो को साहित्यिक एवं सकारात्मक प्रेरणा देती है !
प्रेमचंद की मूर्ती आज भी लोगो को साहित्यिक एवं सकारात्मक प्रेरणा देती है !

मुंशी के विषय में विवाद

प्रेमचंद को प्रायः “मुंशी प्रेमचंद” के नाम से जाना जाता है। प्रेमचंद के नाम के साथ ‘मुंशी’ कब और कैसे जुड़ गया ? इस विषय में अधिकांश लोग यही मान लेते हैं कि प्रारम्भ में प्रेमचंद अध्यापक रहे। अध्यापकों को प्राय: उस समय मुंशी जी कहा जाता था। इसके अतिरिक्त कायस्थों के नाम के पहले सम्मान स्वरूप ‘मुंशी’ शब्द लगाने की परम्परा रही है। संभवत: प्रेमचंद जी के नाम के साथ मुंशी शब्द जुड़कर रूढ़ हो गया। प्रोफेसर शुकदेव सिंह के अनुसार प्रेमचंद जी ने अपने नाम के आगे ‘मुंशी’ शब्द का प्रयोग स्वयं कभी नहीं किया। उनका यह भी मानना है कि मुंशी शब्द सम्मान सूचक है, जिसे प्रेमचंद के प्रशंसकों ने कभी लगा दिया होगा। यह तथ्य अनुमान पर आधारित है। लेकिन प्रेमचंद के नाम के साथ मुंशी विशेषण जुड़ने का प्रामाणिक कारण यह है कि ‘हंस’ नामक पत्र प्रेमचंद एवं ‘कन्हैयालाल मुंशी’ के सह संपादन मे निकलता था। जिसकी कुछ प्रतियों पर कन्हैयालाल मुंशी का पूरा नाम न छपकर मात्र ‘मुंशी’ छपा रहता था

 

साथ ही प्रेमचंद का नाम इस प्रकार छपा होता था- (हंस की प्रतियों पर देखा जा सकता है)।
संपादक
मुंशी, प्रेमचंद
‘हंस के संपादक प्रेमचंद तथा कन्हैयालाल मुंशी थे। परन्तु कालांतर में पाठकों ने ‘मुंशी’ तथा ‘प्रेमचंद’ को एक समझ लिया और ‘प्रेमचंद’- ‘मुंशी प्रेमचंद’ बन गए। यह स्वाभाविक भी है |  सामान्य पाठक प्राय: लेखक की कृतियों को पढ़ता है, नाम की सूक्ष्मता को नहीं देखा करता। आज प्रेमचंद का मुंशी अलंकरण इतना रूढ़ हो गया है कि मात्र ‘मुंशी’ से ही प्रेमचंद का बोध हो जाता है तथा ‘मुंशी’ न कहने से प्रेमचंद का नाम अधूरा-अधूरा सा लगता है।

sign
प्रेमचंद के हस्ताक्षर

 

 

 

case study@samacharline