देशप्रकाश त्रिवेदी की कलम सेमध्य प्रदेश

गोवा प्रकरण-संघ प्रचारकों की लोकेषणा या वैचारिक सत्ता संघर्ष।

गोवा में संघचालक रहे सुभाष वेलिंगकर को हटाया जाना संघ में बढ़ रही प्रचारकों की लोकेषणा पर लगाम लगाने की कवायद है या संघ के प्रज्ञापुरुषों के बीच चल रहे वैचारिक सत्ता संघर्ष की परिणीति है,इस पर गहन मंथन की जरुरत है।
डेढ़ दशक से संघ में वैचारिक अवधारणाओं को लेकर मतांतर सामने आता रहा है। बुनयादी सिद्धान्तों पर भी संघ की दृढ़ता कमजोर हुई है। भले ही संघ कार्य का विस्तार अनुसांगिक प्रकल्पों के माध्यम से बहुत हुआ है लेकिन वैचारिक स्तर पर कार्यकर्त्ता निर्माण में कही न कही चुक हुई है। इसी का परिणाम है कि नैतिक धरातल पर संघ के अनेक स्वयंसेवक धराशायी हुए है। मध्यप्रदेश में व्यापम प्रकरण इसका उदाहरण है।

गोवा में सरकार और समाज की स्थानिक परस्थितियों के अनुरूप भाजपा का विस्तार हुआ है इस विस्तार यात्रा में संघ का वैचारिक आवरण भी क्षतिग्रस्त हुआ है। यही से सुभाष वेलिंगकर का मतान्तर शुरू होता है।
गोवा में ऊँगली पकड़कर जिन नेताओ को उन्होंने सत्तासीन किया वे ही सत्ता के निर्बन्धो में विचार विमुख हो गए।
यह स्थति कमोबेश हर भाजपा शासित राज्य में है। कही सत्ता और संगठन ने तालमेल बना लिया है तो कही बंद कमरे में संघर्ष जारी है। संस्कृति, भाषा, किसान,मजदुर,लघु उद्योग,शिक्षा, को लेकर संघ के एजेंडे के अनुसार काम नहीं हो रहा है।
समन्वय बैठकों के नाम पर रस्म अदायगी तो हो रही है लेकिन आपसी सहमति का क्रियान्वयन नहीं हो रहा है।
सत्ता में भागीदारी को लेकर भी प्रचारकों की रूचि का प्रकटीकरण भी मोदीजी, मनोहरलाल खट्टर,जैसे प्रचारकों के सत्तासीन होने के बाद होता रहा है। संघ से भाजपा में आए अनेक प्रचारक लाल बत्ती का सुख भोग रहे है।
गोवा प्रकरण भी इसी सत्ता संजीवनी के लिए प्रयास का परिणाम है। प्रचारको को यह गुमान होने लगा है कि जब हम सत्ता दिला सकते है तो सत्ता चला भी सकते है।
फलस्वरूप सीधे सीधे सत्ता में हस्तक्षेप होने लगा है। प्रचारकों की लोकेषणा संघ में गंभीर संकट बनती जा रही है। सुभाष वेलिंगकर प्रकरण इसी की तात्कालिक परिणीति है।

गौरतलब है कि संघ के प्रज्ञापुरुषों में भी आंतरिक संघर्ष की आहट सुनाई देती रहती है। असहमति के स्वर बुलंद होने लगे है।
नागपुर और झंडेवालान में कमरों की दीवारें कानाफूसियों और उलटबासियों की गवाह बनी हुई है।
प्रकारांतर से प्रचारकों की लोकेषणा और संघ के अलमबरदारों में वर्चस्व की लड़ाई का परिणाम गोवा प्रकरण में उभर कर आ गया है।
बहरहाल डॉक्टर साहब के स्वयंसेवको के लिए बताए गए दस गुणों का निरंतर हास् हो रहा है इस पर चिंतन,मनन,और गौर करने की दरकार है।

प्रकाश त्रिवेदी@samacharline